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विशेष : मोदी जी, चलिए कुछ काम करें !

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Published : May 8, 2020, 4:55 PM IST

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प्रतीकात्मक तस्वीर.

कोरोना एक नई वास्तविकता है और हमें इसके साथ ही जीना और काम करना होगा. इससे डरने का कोई कारण नहीं है. बेशक कोरोना अत्यधिक संक्रामक है, लेकिन इसकी मृत्यु दर बहुत कम है. अब हम लॉकडाउन नहीं कर सकते. हमें काम करने दिया जाना चाहिए. यमराज को चुनने दें कि वह किसे लेकर जाना चाहता है, लेकिन उस दिन तक हम अपने परिवार, अपने प्रियजनों और अपने राष्ट्र के लिए अपना कर्तव्य निभाएंगे.

भारतीयों आपने भारत को कोरोना वायरस से दूर रखने के प्रयत्न में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है. भारतीय मृत्यु दर 3.27% है, शाबाश! अब ज़रूरी हो गया है कि हम अपनी सारी ऊर्जाओं का तालमेल बिठाकर, वेंटिलेटर को हटा दें और भारत और उसकी विविध अर्थव्यवस्था को अपने दम पर सांस लेने दें. भारत को काम पर वापस जाने की जरूरत है. लाल, हरा या नारंगी, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. वायरस रहेगा और हमें इसके साथ काम करने के लिए खुद को तैयार करना होगा.

आश्चर्यजनक रूप से चिकित्सा के मोर्चे पर हमने अच्छा प्रदर्शन किया है, क्योंकि भारत की स्वास्थ्य लाभ दर 42,533 मामलों (4 मई 2020) में 27.5% है, केवल 1,391 की मृत्यु हुई है. इस बीच भारतीय अर्थव्यवस्था चरमरा रही है, जितना वायरस ने हमें नुकसान पहुंचाया है, उससे कहीं ज्यादा कर्फ्यू ने हमें नुकसान पहुँचाया है.

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, 40 करोड़ भारतीय कामगार गरीबी के अंधेरे में समा जाएंगे और अभिजीत बनर्जी (नोबेल पुरस्कार विजेता) ने भविष्यवाणी की कि हमारे सकल घरेलू उत्पाद कोरोना वायरस के कारण "10-15%" तक तेजी से लुढ़क सकती हैं.

क्या यह तस्वीर गंभीर नज़र आती है? यह अभी और बदतर हो सकती है, अगर आपना अपना ध्यान उन हजारों लोगों की ओर करें जो अपने घरों तक पहुंचने को बताब धीरे-धीरे भुखमरी और विनाश की ओर बढ़ रहे हैं. हम आज भी वह आगरा की मार्मिक तस्वीर को अपने मन से नहीं निकाल पा रहे हैं, जिसमें कुत्तों से साथ एक आदमी चुल्लू में सड़क पर बिखरा दूध समेट रहा था.

आगरा जैसे हॉट स्पॉट और संगरोध शिविरों में ठुसे हुए लाखों लोग 'अछूतों' की एक नई पीढ़ी बन गए हैं. राज्य द्वारा हमरी अंतिम सीमान्त यानि हमारे शरीर पर नियंत्रण करने के लिए जैव राजनीति का प्रयोग किया जा रहा है.

मगर अब समय आ गया है कि इस फोड़े पर चीरा लगाकर मवाद बहा दिया जाए. क्योंकि अगर अब भी अर्थव्यवस्था को नहीं खोला गया तो हम एक बेहद विकृत वास्तविकता का सामना कर सकते हैं- एक उग्र नागरिक अशांति और अधिक हिंसा.

वायरोलॉजी 101 यानी विषाणु विज्ञान 101

वायरस प्रकृति के जंगली प्राणी हैं. उनके लिए न दवा है न टीका काम आ सकता है, क्योंकि न वो जीवित हैं न अजीवित है. वह अपने मेज़बान के अनुकूल होकर जीवित हो जाते हैं, वरना अधिकांश समय मृत रहते हैं. एक पत्थर की तरह. विकास में मनुष्य, पौधों और जानवरों की तरह हमें इनकी भूमिका को भी नकारना नहीं चाहिए.

इनमें से जो हानिकारक हैं, वह हम पर हमला करते है और हितकारी हम में से प्रत्येक की मदद करते हैं. हर रोज, जीवित और स्वस्थ रखते हैं. समय के साथ हमने नुकसानदेह विषाणुओं के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता और आनुवंशिक प्रतिरोध को विकसित किया है.

मीडिया टीका संबंधी खबरों से भरा हुआ है, लेकिन टीका कोई स्थायी इलाज नहीं है, जैसा कि हमने इन्फ्लूएंजा के मामले में देखा है, रोगजनक की बदलती प्रकृति के कारण प्रत्येक मौसम में नए टीकों की आवश्यकता होती है. सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि आधी सदी बीत जाने के बावजूद मानवता आजतक एचआईवीका टीका देने में असफल रही है.

दुनियाभर के डॉक्टरों, वैज्ञानिक और महामारी विज्ञानियों ने पहले से ही चमत्कारी समाधान-कोरोना वायरस के टीके की प्रभावशीलता पर सवाल उठा दिया है.

भारत इस टीके के लिए मूर्खतापूर्ण प्रतीक्षा नहीं कर सकता है, जो भारत में मौजूद किस्म के उत्परिवर्तन को देखते हुए काम करेगा या नहीं यह भी अभी साफ नहीं है.

इतिहास से सबक लेते हुए इस वायरस या इन्फ्लुएंजा के खिलाफ मज़बूत प्रतिरोधक शक्ति ही एक दीर्घकालिक विकल्प है.

वैसे भी कोई भी टीका उपलब्ध नहीं होने के बावजूद हमने वायरस को कम करने और कम मृत्यु दर को प्राप्त करने में कामयाबी हासिल की है.

अब इस कोविड-19 की तुलना वास्तव में घातक बीमारी टीबी से करते हैं. सालाना 15 लाख से अधिक लोग इससे मर जाते हैं. क्या इसके कारण हम अर्थव्यवस्था को ठप कर देते हैं? नहीं.

हम काम करते रहते हैं, साथ ही बिना किसी परीक्षण के लाखों लोगों को अर्थव्यवस्था में शामिल होने का मौका भी देते हैं. कोरोना अलग क्यों होना चाहिए? कोरोना की तुलना में टीबी एक खतरनाक दैत्य है, हर तरह से.

चर-निर्भर-कंप्यूटर-मॉडलिंग को अस्वीकार करने और विदेशी वास्तविकताओं का विकल्प तलाशने का वक़्त आ गया है. भारत को और अधिक व्यावहारिक होने की जरूरत है. हम किसी टीके के बिना रोग को नियंत्रित करने में कामयाब रहे हैं.

हमें अब अपनी अर्थव्यवस्था को बंद नहीं करना चाहिए, बल्कि उसे बचाने के लिए विकल्प के रूप में पूरी तरह से फिर से शुरू करना चाहिए और जिससे पहले कि प्रोत्साहन मिलना खत्म हो जाए और हमारी आर्थिक स्थिति तबाही की ओर बढ़ती चली जाए. साथ ही लाखों को कोरोना से नहीं, बल्कि कुपोषण और खराब स्वास्थ्य से मरने के लिए छोड़ दिया जाएगा.

सूक्षम लघु और माध्यम कंपनियों के लिए मौत की घंटी पहले से ही बज रही है. अब हम लॉकडाउन नहीं कर सकते हैं.

वापसी का रास्ता

कोरोना एक नई वास्तविकता है और हमें इसके साथ ही जीना और काम करना होगा. इससे डरने का कोई कारण नहीं है. बेशक कोरोना अत्यधिक संक्रामक है, लेकिन इसकी मृत्यु दर बहुत कम है. यह एक आशा की किरण है. खतरे को कम आंकते हुए, बल्कि कथित तौर पर दिल्ली में सड़क दुर्घटना से मरने की संभावना कोरोना से अधिक है.

कृषि को बहुत पहले ही खोला जा चुका है. इसका मतलब है कि 70% भारतीय कामगार और अर्थव्यवस्था वापस ढर्रे पर आ गए हैं. अब हमें तुरंत लघु और माध्यम उद्योग को भी पटरी पर लाना चाहिए. भारत को प्रारंभ करने का यह सबसे आसान तरीका है. सभी राज्यों के भीतर सभी काम से संबंधित आवाजाही को खोला जाना चाहिए.

हम कुछ समय के लिए मनोरंजक गतिविधियों को प्रतिबंधित कर सकते हैं, लेकिन मुख्य और परिधीय आर्थिक गतिविधियां शुरू होनी चाहिए. मंदी खत्म नहीं हुई है और हमें संकट के समय में दुनिया को आपूर्ति प्रदान करने के लिए तैयार रहना चाहिए. यह मेक-इन-इंडिया के लिए वास्तविक प्रदर्शन होगा.

चूंकि व्यक्तिगत प्रतिरक्षा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी, आयुष मंत्रालय के माध्यम से सरकार को एक प्रोटोकॉल जारी करने की आवश्यकता है, जिसका लोग अनुसरण कर सकते हैं. उदाहरण के लिए, विटामिन और अतिरिक्त आहार पूरक जो व्यक्ति अपने स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए साथ ही व्यावसायिक अपने श्रमिकों को प्रदान कर सकते हैं.

बेशक, 65 की आयु से अधिक लोगों को जो सबसे कमजोर हैं- बूढ़े लोगों को बचाने का दायित्व सरकार का है, लेकिन यह उन लोगों के प्रति भी दायित्व है, जो कमजोर समूह में नहीं हैं. हममें से प्रत्येक को यह चुनाव करने की अनुमति दी जानी चाहिए कि क्या हम काम करना चाहते हैं या अपने घरों में बंद रहना चाहते हैं और अपने बच्चों, माताओं और पत्नियों को भूखे देखना चाहते हैं.

मैं अपने लिए और अपने देश के उन लाखों लोगों के लिए स्वतंत्रता और काम करने का अधिकार चुनता हूं, जो केवल गरिमा और अपने बच्चों को खिलाने का अधिकार चाहते हैं. वह न तो दान चाहते हैं और न ही धनी या सरकार की दया चाहते हैं. वह अपने पसीने के श्रम से भोजन अर्जित करने का मौका चाहते हैं. इसलिए जब भी मौत आए, तो वह उन्हें सम्मान के साथ ले जाए.

मृत्यु सभी जीवन का प्राकृतिक अंत है, इसलिए इसका सामना करने के लिए कोई डर नहीं होना चाहिए. हमें किस बात से डरना चाहिए, हमारे प्रियजनों की पीड़ा और दर्द और उनके प्रति हमारे धर्म या कर्तव्य का पालन करने में असमर्थता से. भोजन और पानी के साथ-साथ पैसा बहुत जरूरी है.

हमें काम करने दिया जाना चाहिए. यमराज को चुनने दें कि वह किसे लेकर जाना चाहता है, लेकिन उस दिन तक हम अपने परिवार, अपने प्रियजनों और अपने राष्ट्र के लिए अपना कर्तव्य निभाएंगे.

हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं और व्यवसायों के लिए काम करें और उनका उत्थान करें. यदि हम अभी और प्रयास करें, तो हम वह आर्थिक शक्ति बन जाएंगे, जो हम बनना चाहते हैं.

भय के दिन खत्म हो गए हैं. यह समय है जब हम सभी अपने कर्तव्य का पालन करें, गरिमा, प्रचुरता और खुशी के जीवन का पुनर्निर्माण करें.

इंद्र शेखर सिंह द्वारा
(निदेशक - नीति और आउटरीच- नेशनल सीड एसोसिएशन ऑफ इंडिया)

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