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हम मजबूर: गोद में बच्चा और पैरों में घाव लिए फिर से घर छोड़कर निकले मजदूर

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Published : Nov 24, 2020, 6:56 AM IST

जब महामारी आई, तो वे दौड़ पड़े अपने घर...नंगे पांव...न धूप देखी न छांव...पसीना पोछते...बच्चों को सीने से लगाए...खाली पेट...चल आए कि दो वक्त की रोटी मिल जाएगी...लेकिन वो नहीं जानते थे कि एक दिन उन्हें लौटना पड़ेगा...ठीक वैसे ही, जैसे वे चले आए थे...निराश और नाउम्मीद...ये उस राज्य के मजदूर हैं, जो फिर से पलायन के लिए निकल पड़े हैं, जिस राज्य की सरकार मनरेगा के तहत सबसे ज्यादा रोजगार देने और प्रदेश में मंदी न होने का दावा कर रही है.

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रायपुर: एक तरफ छत्तीसगढ़ सरकार जोर-शोर से दावा कर रही है कि मजदूरों को रोजगार देने के मामले में राज्य पूरे देश में नंबर एक पर काबिज है. इस सरकारी आंकड़े की पोल दिवाली के बाद से हर गांव से शुरू हुआ पलायन खोल रहा है. छत्तीसगढ़ के गांवों में कितनी खुशहाली है, समाज का निचला तबका जो रोज कमाता और रोज खाता है वो कितना खुशहाल है, इसकी एक बानगी ETV भारत की रिपोर्ट में आप देखिए.

छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार प्रदेश में 1 दिसंबर से धान की खरीदी शुरू करेगी. लेकिन पहली बार प्रदेश में ऐसा देखा जा रहा है कि धान खरीदी के ठीक पहले बड़ी संख्या में बेरोजगार और मजदूर रोजगार की तलाश में अन्य राज्यों की ओर पलायन कर रहे हैं. दिवाली के बाद से राजधानी के बस स्टैंड में रोज विभिन्न जिलों से पहुंचे सैंकड़ों मजदूरों को रोजगार की तलाश में परदेस जाते देखा जा सकता है. काम की तलाश में मजदूर एक बार फिर अपना घर छोड़ने को मजबूर हो गए हैं.

वीडियो में देखें मजदूर की मजबूरी..

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काम न मिलने की वजह से

प्रदेश की भूपेश सरकार बड़े-बड़े दावे करने से नहीं चूकती है. सरकार मनरेगा के तहत सबसे अधिक रोजगार, किसानों की खुशहाली के लिए नई-नई योजनाएं, रोजगार के नए-नए अवसर की बात कहती है. लेकिन प्रदेश के विभिन्न जिलों से मजदूरों का पलायन दोबारा शुरू हो गया है. ऐसे में सरकार के दावों पर सवाल खड़े हो रहे हैं. ETV भारत ने राजधानी से अन्य प्रदेशों की पलायन कर रहे मजदूरों से जानकारी ली है. इस दौरान मजदूरों ने अपने पलायन के मुख्य कारण बताए हैं. साथ ही ETV भारत ने कैबिनेट मंत्रियों से भी इस पर सवाल किए लेकिन मंत्री सवालों के सामने कोई ठोस जवाब नहीं रख सके. इस पर राजनीति भी शुरू हो गई है. पूर्व CM रमन सिंह ने प्रदेश सरकार पर निशाना साधा है.

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मार्च में पैदल वापस आए थे, अब लौट रहे

ETV भारत ने छत्तीसगढ़ से पलायन के लिए राजधानी पहुंचे लोगों से बात की, तो उन्होंने बताया कि मार्च में लॉकडाउन के बाद लौटे थे. एक मजदूर ने बताया कि लॉकडाउन में वह पैदल घर लौटा था. लेकिन रोजगार न होने के कारण मजबूरी में वापस परदेस कमाने जा रहा है. उसने कहा कि कोरोना से अब डर नहीं लग रहा है. उसके गांव के करीब 100 लोग बाहर रोजगार की तलाश में जा चुके हैं. ऐसे में वह घर पर रहकर रोजगार का इंतजार नहीं कर सकता है.

कहां गए सरकार के दावे ?

बता दें कोरोना संक्रमण के शुरूआती दिनों में जब मजदूर छत्तीसगढ़ की ओर लौट रहे थे. तो सरकार ने उनका स्वागत करते हुए कहा था कि उन्हें उनके घर पर काम दिया जाएगा. कौशल के आधार पर काम उपलब्ध काराए जाने की बात कही गई थी. जुलाई महीने में भी सरकार ने रोजगार कैंप लगाने की बात कही थी. लेकिन मजदूरों को इसका फायदा मिलता नहीं दिख रहा है.

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खेत के काम में मजदूरी कम

छत्तीसगढ़ में ऐसा माना जाता है कि खरीफ सीजन की फसल कटाई के बाद बड़े पैमाने पर मजदूर पलायन करते हैं. धान की कटाई होने के बाद मजदूरों के पास काम नहीं रह जाता. यही कारण है कि सालों से यहां के मजदूर काम न होने की वजह से पलायन करने को मजबूर हैं. लेकिन ETV भारत से बातचीत के दौरान एक मजदूर ने बताया कि इसके अलावा किसान के खेत में काम करने पर बहुत कम मजदूरी मिलती है. उसने बताया कि खेत की निंदाई में 70 रुपए और धान कटाई की 80 रुपए रोजी है. इतने कम पैसों में गुजारा नहीं चल रहा है. महंगाई के दौर में 70-80 रुपए में परिवार का पेट भी नहीं भरा जा सकता है.

मनरेगा का काम बंद

एक मजदूर ने बताया कि मनरेगा के तहत 100 दिन रोजगार का दावा भले ही सरकार करे लेकिन काम 100 दिन नहीं मिल रहा है. साथ ही कई जिलों में काम पूरी तरह बंद है. एक मजदूर ने बताया कि फिलहाल उसके इलाके में मनरेगा के तहत कोई काम नहीं है. अगले 3 महीने तक ऐसे ही हालात रहेंगे. एक अन्य मजदूर ने बताया कि मनरेगा के तहत गर्मी के दिनों में ही काम मिल पाता है. उसके गांव में मनरेगा का कोई काम अभी नहीं खुला है. ऐसे में बाहर जाकर पैसे कमाना उनकी मजबूरी है.

बता दें हाल ही में गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू ने कहा था कि कोरोना संक्रमण होने के बावजूद मनरेगा के तहत पूरे देश में सबसे अधिक रोजगार छत्तीसगढ़ की सरकार मजदूरों को उपलब्ध करा रही है. साथ ही उन्होंने दावा किया था कि पढ़े-लिखे बेरोजगार युवकों के लिए भी सरकार नई योजनाएं लागू कर रही है. लेकिन दावे और मजदूरों के बताए गए हकीकत के बीच एक बड़ा अंतर देखने को मिल रहा है.

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महंगाई ने तोड़ी कमर

बातचीत के दौरान यह बात भी सामने आई कि छत्तीसगढ़ में महंगाई आसमान छू रही है. मजदूर का कहना है कि वह 60 रुपए किलो में टमाटर नहीं खरीद सकता है. महंगाई के दौर में खाली हाथ भी नहीं बैठ सकता है. कोरोना काल के दौरान बढ़ी सब्जी की कीमत को अब तक कम नहीं किया जा सका है. मजदूर ने यह भी दावा किया कि सरकार खेत मालिक किसानों की मदद तो कर रही है, लेकिन जिन मजदूरों के पास खेत नहीं है. उनकी मदद ही नहीं हो पा रही है.

मंत्रियों के जवाब से झलकती लाचारी !

ETV भारत ने इस मुद्दे पर खाद्य मंत्री अमरजीत भगत से बात की. बातचीत के दौरान अमरजीत भगत ने कहा कि फिलहाल मजदूर बाहर राज्य नहीं जा रहे हैं, लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि मजदूर बाहर नहीं जाते. उन्होंने कहा कि कुछ ओरिएंटेड लेबर हैं, जो खास तौर पर ईंट भट्ठा और वेल्डिंग का काम करते हैं. उन मजदूरों के पलायन से कोई रोक नहीं सकता है.

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पलायन पर राजनीति भी शुरू

पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह ने मजदूरों के पलायन के मुद्दे पर सरकार को घेरना शुरू कर दिया है. उन्होंने कहा कि सरकार ने न तो मजदूर के आने के वक्त कोई सुविधा दी थी. न ही उनकी कोई मदद की गई है. उन्होंने कहा कि एक ओर धान की कटाई चल रही है. तो दूसरी ओर मजदूर रोजगार के लिए बाहर जा रहे हैं.

प्रशासन ने रोके पलायन

छत्तीसगढ़ में मजदूरों का पलायन चरम पर है. कई जगह जिला प्रशासन ने मजदूरों के पलायन को रोका है. सैकड़ों की संख्या में एक साथ पलायन के लिए निकले मजदूरों को जिला प्रशासन ने अन्य प्रदेशों में जाने नहीं दिया. नवंबर में 2 बड़े मामले सामने आए.

  • महासमुंद के पिथौरा थाना क्षेत्र में मजदूरों और बच्चों को दलाल के चंगुल से छुड़ाया गया है. पुलिस ने 167 मजदूर और 55 बच्चों को मजदूर दलाल के चंगुल से छुड़ाया है. मजदूर दलाल गांव में बस पिकअप भेजकर मजदूरों को उत्तर प्रदेश ले जाने का काम कर रहे थे.
  • बलौदाबाजार में कसडोल एसडीएम टेकचंद अग्रवाल ने अधिकारियों के साथ मिलकर करीब 350 मजदूरों के पलायन को रोका है. तीन बस और एक पिकअप वाहन में सवार होकर 350 मजदूर उत्तर प्रदेश ईंट भट्ठा में काम करने ले लिए पलायन कर रहे थे.
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