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तब भाजपा-शिवसेना की तरह ही कांग्रेस-एनसीपी के बीच थी तल्खी

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Published : Nov 2, 2019, 1:42 PM IST

Updated : Nov 2, 2019, 8:00 PM IST

अशोक चव्हाण और शरद पवार ( डिजाइन फोटो)

महाराष्ट्र में सरकार बनाने को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है. शिवसेना और भाजपा एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजी कर रहे हैं. इस बीच कांग्रेस और एनसीपी ने अपने-अपने पत्ते नहीं खोले हैं. लेकिन सबसे रुचिकर बात ये है कि महाराष्ट्र में यह कोई नई स्थिति नहीं है. इसके पहले कांग्रेस और एनसीपी के बीच भी तब ऐसी ही तल्खी थी, जैसी आज भाजपा और शिवसेना के बीच है. आइए जानते हैं कब-कब बनी थी ऐसी स्थिति.

मुंबईः महाराष्ट्र में चुनाव परिणाम घोषित होने के एक सप्ताह बाद भी नई सरकार का गठन नहीं हो पाया है, लेकिन विधानसभा के सूत्रों के अनुसार यह देरी अभूतपूर्व नहीं है और तत्काल राष्ट्रपति शासन लगाना जरूरी नहीं होगा.

राज्य में 24 अक्टूबर को विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद अधिक सीटें जीतने वाली गठबंधन सहयोगी भाजपा और शिवसेना के बीच मुख्यमंत्री के पद को लेकर गतिरोध बना हुआ है.

हालांकि सूत्रों ने बताया कि राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी विधानसभा का पहला सत्र बुला सकते हैं.

भाजपा नेता सुधीर मुणगंतीवार ने आज कहा कि अगर सात नवंबर तक नई सरकार नहीं बनती है, तो महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लग सकता है.

राज्य की 13वीं विधानसभा का कार्यकाल 9 नवंबर को समाप्त हो रहा है.

पढ़ें- BJP-शिवसेना को छोड़कर, सभी पार्टियां एक दूसरे से बात कर रही हैं : संजय राउत

विधानसभा के सूत्रों ने पहचान उजागर नहीं होने की शर्त पर कहा कि राज्यपाल को नई विधानसभा का सत्र आहूत करने के लिए कैबिनेट की सिफारिश जरूरी है, लेकिन यदि कैबिनेट में फिलहाल मुख्यमंत्री भी हों, तो पर्याप्त होगा.

सूत्रों के अनुसार नवनिर्वाचित विधायकों की अधिसूचना राज्यपाल को प्रेषित कर दी गई है तथा 25 अक्टूबर को नई विधानसभा का गठन कर दिया गया.

उन्होंने कहा कि राज्यपाल सदस्यों के शपथ ग्रहण के लिए सत्र बुला सकते हैं.

1999 और 2004 में सरकार गठन में दो सप्ताह से ज्यादा की देरी हुई थी, जब चुनाव में जीतने वाले सहयोगी दलों कांग्रेस तथा राकांपा के बीच सत्ता बंटवारे पर सहमति नहीं बन पा रही थी.

1999 में कांग्रेस ने शरद पवार की नवनिर्मित राकांपा के साथ मिलकर नई सरकार बनाई थी, लेकिन इससे पहले मुख्यमंत्री के पद और मंत्रियों को लेकर काफी रस्साकशी हुई थी. उस समय कांग्रेस के विलासराव देशमुख को मुख्यमंत्री बनाया गया था.

इसी तरह की स्थिति 2004 में देखने को मिली जब राकांपा को ज्यादा सीटें मिलीं और उसने मुख्यमंत्री के पद की मांग उठाई. हालांकि यह शीर्ष पद कांग्रेस के पास ही रहा तथा राकांपा को दो अतिरिक्त मंत्रालय दिये गये.

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महाराष्ट्र में सरकार बनाने को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है. शिवसेना और भाजपा एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजी कर रहे हैं. इस बीच कांग्रेस और एनसीपी ने अपने-अपने पत्ते नहीं खोले हैं. लेकिन सबसे रुचिकर बात ये है कि महाराष्ट्र में यह कोई नई स्थिति नहीं है. इसके पहले कांग्रेस और एनसीपी के बीच भी तब ऐसी ही तल्खी थी, जैसी आज भाजपा और शिवसेना के बीच है. आइए जानते हैं कब-कब बनी थी ऐसी स्थिति. 





तब भाजपा-शिवसेना की तरह ही कांग्रेस-एनसीपी के बीच थी तल्खी



मुंबईः महाराष्ट्र में चुनाव परिणाम घोषित होने के एक सप्ताह बाद भी नई सरकार का गठन नहीं हो पाया है, लेकिन विधानसभा के सूत्रों के अनुसार यह देरी अभूतपूर्व नहीं है और तत्काल राष्ट्रपति शासन लगाना जरूरी नहीं होगा.



राज्य में 24 अक्टूबर को विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद अधिक सीटें जीतने वाली गठबंधन सहयोगी भाजपा और शिवसेना के बीच मुख्यमंत्री के पद को लेकर गतिरोध बना हुआ है.



हालांकि सूत्रों ने बताया कि राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी विधानसभा का पहला सत्र बुला सकते हैं.



भाजपा नेता सुधीर मुणगंतीवार ने आज कहा कि अगर सात नवंबर तक नई सरकार नहीं बनती है, तो महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लग सकता है.



राज्य की 13वीं विधानसभा का कार्यकाल 9 नवंबर को समाप्त हो रहा है.



विधानसभा के सूत्रों ने पहचान उजागर नहीं होने की शर्त पर कहा कि राज्यपाल को नई विधानसभा का सत्र आहूत करने के लिए कैबिनेट की सिफारिश जरूरी है, लेकिन यदि कैबिनेट में फिलहाल मुख्यमंत्री भी हों, तो पर्याप्त होगा.



सूत्रों के अनुसार नवनिर्वाचित विधायकों की अधिसूचना राज्यपाल को प्रेषित कर दी गई है तथा 25 अक्टूबर को नई विधानसभा का गठन कर दिया गया.



उन्होंने कहा कि राज्यपाल सदस्यों के शपथ ग्रहण के लिए सत्र बुला सकते हैं.



1999 और 2004 में सरकार गठन में दो सप्ताह से ज्यादा की देरी हुई थी, जब चुनाव में जीतने वाले सहयोगी दलों कांग्रेस तथा राकांपा के बीच सत्ता बंटवारे पर सहमति नहीं बन पा रही थी.



1999 में कांग्रेस ने शरद पवार की नवनिर्मित राकांपा के साथ मिलकर नई सरकार बनाई थी, लेकिन इससे पहले मुख्यमंत्री के पद और मंत्रियों को लेकर काफी रस्साकशी हुई थी. उस समय कांग्रेस के विलासराव देशमुख को मुख्यमंत्री बनाया गया था.



इसी तरह की स्थिति 2004 में देखने को मिली जब राकांपा को ज्यादा सीटें मिलीं और उसने मुख्यमंत्री के पद की मांग उठाई. हालांकि यह शीर्ष पद कांग्रेस के पास ही रहा तथा राकांपा को दो अतिरिक्त मंत्रालय दिये गये.

 


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Last Updated :Nov 2, 2019, 8:00 PM IST
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