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विशेष लेख : 20 साल बाद भी IC- 814 अपहरण है बुरा सपना...

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Published : Dec 24, 2019, 9:02 AM IST

Updated : Dec 24, 2019, 10:24 AM IST

IC-814 के अपहरण के दौरान और उसके बाद भारत में कई तरह की घटनाएं हुईं. इनमें से एक बात ये साफ हुई कि अफगान, तालिबान, पाकिस्तान आईएसआई के समर्थन में हैं और वह कश्मीर में सक्रिय आतंकवादी संगठनों के भी संपर्क में हैं. पढे़ं IC-814 के अपहरण पर ईटीवी भारत के न्यूज एडिटर बिलाल भट्ट का विशेष लेख...

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मसूद अजहर

1999 में दिल्ली से नेपाल आने वाली एयर इंडिया की फ्लाइट आईसी 814 के अपहरण के 20 साल बाद क्या बदला है? इस विमान और उसमें करीब 188 यात्रियों को अपहरणकर्ताओं से छुड़ाने के बदले भारत को तीन कुख्यात आतंकवादियों को छोड़ना पड़ा था और यह सब अफगानिस्तान के कंधार में हुआ. उस वक्त कंधार तालिबान के शासन में था.

छोड़े गए तीन आतंकवादियों में से दो आज भी आजाद घूम रहे हैं और पाकिस्तान से अपने कामों को अंजाम दे रहे हैं. इनमें कश्मीरी आतंकवादी संगठन अल उमर मुजाहिदीन का लीडर मुश्ताक अहमद जरगर उर्फ मुश्ताक लतराम और जैश-ए-मोहम्मद का लीडर मौलाना मसूद अजहर शामिल है. तीसरा आतंकवादी शेख ओमर (जो एक ब्रिटिश नागरिक था) बाद में पाकिस्तान में अमेरिकी पत्रकार डेनियल पर्ल की हत्या के आरोप में गिरफ्तार हुआ और फिर मौत के तख्ते पर पहुंचा.

अपहरण के बाद से ही मुश्ताक अहमद छुपा ही रहा और उसने कभी अन्य आतंकवादियों की तरह काम नहीं किया. वहीं, मसूद अजहर भारत के खिलाफ सक्रिय रहा और उसने घाटी में आतंकवाद को बढ़ावा देने का भी काम किया है. उसने कश्मीर और अन्य जगहों पर फिदायीन हमलों की शुरुआत की. भारतीय संसद और जम्मू-कश्मीर विधानसभा पर हमला करने वालों में अजहर भी शामिल था. अजहर ने सबसे पहले श्रीनगर के एक लड़के अफाक अहमद शाह को मानव बम बनाया और उसने श्रीनगर के बादामी बाग आर्मी बेस पर हमला किया. हालांकि, अजहर का ये हमला नाकामयाब रहा था.

विमान अपहरण से पहले अजहर को जेल से भगाने की भी कोशिश की गई थी, जो नाकामयाब रही. अजहर के भाई यूसुफ ने जेल तोड़ने और अपहरण की सारी प्लैनिंग की और इन दोनों ही कामों को अंजाम देने की तैयारियों में करीब डेढ़ साल का समय लगा. एक भारतीय अब्दुल लतीफ ने यूसुफ को इन कामों के लिए पैसे, नकली दस्तावेज और मुंबई में घर दिलाने में मदद की.

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इस अपहरण को रोका जा सकता था अगर काठमांडू में मौजूद भारतीय खूफिया एजेंसियों के अफसर उन्हें मिली चेतावनी पर गंभीरता से ध्यान देते. रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (RAW) के जिस अधिकारी ने इस चेतावनी को गंभीर नहीं बताया था, बाद में वह भी उसी विमान पर यात्री के रूप में पाया गया. उस अधिकारी की पत्नी, तत्तकालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यालय में एक ताकतवर स्थान पर पोस्टेड थी.

अगर वह रॉ का अधिकारी विमान पर नहीं होता, तो अपहरित विमान के सबसे पहले अमृतसर हवाई अड्डे पर उतरने के बाद, सेना एक्शन के लिए तैयार थी. ये इसलिए नहीं हो सका क्योंकि रॉ अपने अधिकारी को सुरक्षित बचाना चाहती थी, और इसलिये हवाई जहाज को आगे जाने दिया गया. हड़बड़ी के कारण विमान में ईंधन भी नहीं भरा जा सका. तेल में ईंधन की कमी के कारण उसे दूसरी बार लाहौर में उतारा गया.

आईसी 814 के अपहरण के दौरान और उसके बाद भारत में कई तरह की घटनाएं हुईं. इनमें से एक बात ये साफ हुई कि अफगान, तालिबान, पाकिस्तान आईएसआई के समर्थन में हैं और वह कश्मीर में सक्रिय आतंकवादी संगठनों के संपर्क में भी हैं. दूसरी बात यह सामने आई कि कश्मीर और अन्य जगहों पर आतंकवाद को फैलाने में मसहूद अजहर एक अहम भूमिका निभा रहा है. वह कई अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठनों से जुड़ने वाली कड़ी है. अपनी रिहाई के तुरंत बाद अजहर द्वारा शुरू किए गए, जैश-ए-मोहम्मद ने कश्मीर में आतंकवाद के एक नए अध्याय की शुरुआत की.

अजहर ने नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस और पाकिस्तान के बालाकोट से काम करना शुरु किया क्योंकि भारतीय खूफिया एजेंसी का ध्यान इस्लामाबाद या मुजफराबाद पर होता था. जहां से ज्यादातर आतंकी संगठन काम करते थे.

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हिजबुल मुजाहिद्दीन, अल उमर, जमात-ए-मुजाहिद्दीन जैसे संगठनों से अलग, जैश की विचारधारा पैन इस्लामिक है. उसकी विचारधारा, आईएसआईएस से संबंध रखने वाले लोगों की विचारधारा से मेल खाती है और इसलिए अजहर भारत के लिए और खतरनाक हो जाता है. उसके संगठन के ज्यादातर लोग वहाबी विचारधारा के होते हैं, जो राष्ट्र में यकीन नहीं करते और राष्ट्र में यकीन करने वाले लोगों को मारने में पीछे नहीं हटते.

अजहर और उसका परिवार जैश के लड़ाकों के लिए प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन करता है. इन शिवरों और जैश की विचारधारा से ही भारत पर खतरनाक हमले करने वाले आतंकवादियों को चुना जाता है. हांलाकि, कहा जाता है कि मसूद अजहर अब सक्रिय आतंकवादी गतिविधियों से दूर है, लेकिन उसका संगठन और उसकी विचारधारा आज भी आतंकवाद को एक नई और खतरनाक दिशा देने का काम कर रही है.

जिन लोगों ने कंधार विमान अपहरण को देखा है वह समझते हैं कि भारत के लिए ऐसे आंतकवादियों को रोकना कितना जरूरी है. उस विमान पर सात दिनों तक बंधक रहे लोगों के दर्द को आजतक देश कम नहीं कर सका है. उन्हें न्याय तब ही मिल सकेगा, जब मसूद अजहर जैसे आतंकियों को सजा मिलेगी.

अजहर को मार गिराने के लिए कई ऑपरेशन किए गए लेकिन किसी में कामयाबी नहीं मिली. ये बात भी भारतीय सेना को परेशान करने वाली है. 2018 में हुए बालाकोट हमले का मकसद भी अजहर को मार गिराने का ही था. भारत द्वारा अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने के प्रयासों को चीन ने लगातार रोका है, इस कारण अजहर भारत के खिलाफ पाकिस्तान के लिए बेहतरीन हथियार बन गया है.

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भारतीय सुरक्षा एजेंसी को सुरक्षा के लिए किसी तरह का कोई समझौता नहीं करना चाहिए. उन्हें चाहे किसी व्यक्ति या किसी संस्थान पर खतरे की जानकारी मिले, हर जानकारी को पूरा महत्व देना चाहिये. कंधार अपहरण से पहले इसी समन्व्य की कमी के कारण इस हादसे को नहीं रोका जा सका.

अगर रॉ की नेपाल शाखा को मिली खतरे की जानकारी को अफसरों द्वारा गंभीरता से लिया गया होता तो हालात कुछ और ही होते. न सिर्फ अपहरणकर्ताओं को पकड़ा जा सकता, बल्कि इस घटना से पैदा होने वाले कई हालातों को भी रोका जा सकता था. संसद पर हमला, बालाकोट पर जवाबी कार्रवाई और अजहर को संयुक्त राष्ट्र में अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित कराने के लिए भारत की मेहनत 24 दिसंबर 1999 की उस घटना का ही एक पहलू है. अब एक कसम खाने की जरूरत है कि भारत को नुकसान पहुंचाने वाले मसूद अजहर को हम पनपने नहीं देंगे.

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Last Updated : Dec 24, 2019, 10:24 AM IST
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