ETV Bharat / bharat

अलग और चिंताजनक है भारत-चीन का लद्दाख में गतिरोध

author img

By

Published : May 26, 2020, 10:54 PM IST

Updated : May 27, 2020, 1:30 PM IST

india-china-stand-off-in-ladakh-is-different-and-disturbing-says-c-uday-bhaskar
कांसेप्ट इमेज

चीन ने भारत में फंसे अपने नागरिकों को वापस बुलाने का फैसला लिया है जबकि यहां पर उसके कुछ हजार नागरिक ही रहते हैं. इसके ठीक उलट दूसरे कई देशों में, जहां कोरोना का संक्रमण अधिक है, लाखों की संख्या में चीनी नागरिक रहते हैं. राजनीतिक और सैनिक मन-मुटाव को आगे ले जाकर बीजिंग ने यह घोषणा की है कि कोरोना वायरस महामारी के चलते लॉकडाउन में फंसे अपने नागरिकों को वह अगले सप्ताह यानी जून की शुरुआत में वापस बुला लेगा. पढ़ें पूरा लेख...

भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय संबंधों में सीमा से जुड़ा जो तनाव अभी दिखाई दे रहा है, वह 'क्षेत्रीयता' और हाल के घटनाक्रमों से जुड़ा है. मुख्यतः यह चार हजार किलोमीटर लंबी 'गैर-सीमांकित' वास्तविक नियंत्रण रेखा से संबंधित है.

विवादित नियंत्रण रेखा पर अभी जो सैन्यबल जमा हुआ है, वह सामान्य स्तर से बहुत ज्यादा है और भारतीय मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, चीन के 1,200 से 1,500 सैनिक भारतीय सेना की आंखों में आंखे डालकर पूर्वी लद्दाख की पांगोंग झील के उत्तरी किनारे और गालवान नदी के तराई सहित पांच इलाकों में तैनात किए जा चुके हैं.

गनीमत है कि अब तक भारत और चीन ने कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है, जिसे भड़काने वाला या असंयमित समझा जाए. लेकिन क्या इस प्रकार की समझदारी या संयम तब तक जारी रह पाएगी, जब तक उनके बीच की यह तनाव भरी परिस्थिति धीरे-धीरे कम न हो जाए?

इस राजनीतिक और सैनिक मन-मुटाव को आगे ले जाकर बीजिंग ने यह घोषणा की है कि कोरोना वायरस महामारी के चलते लॉकडाउन में फंसे अपने नागरिकों को वह अगले सप्ताह यानी जून की शुरुआत में वापस बुला लेगा. चीन का यह निर्णय केवल भारत तक मर्यादित है, जहां चीन के कुछ ही हजार नागरिक हैं, जबकि दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में उसके लाखों लोग फंसे हुए हैं.

इसलिए जनसंख्या की दृष्टि से विश्व के दो सबसे बड़े देशों के संबंध में आई तंगदिली के बारे में विचार करने की आवश्यकता है ताकि यह समझ में आए कि यह तनाव किस कारण उत्पन्न हुआ और आगे इसके क्या नतीजे होंगे.

भारत और चीन को क्रमशः 1947 और 1949 में आजादी मिली. हालांकि, दोनों की संस्कृतियां बहुत प्राचीन हैं और दोनों ही देशों ने बड़े साम्राज्य देखे हैं, एक आधुनिक राष्ट्र के रूप में वे अब भी युवा ही माने जाएंगे.

औपनिवेशिक शासन में 19वीं शताब्दी में मानचित्र बने और फलस्वरूप सीमाएं भी औपनिवेशिक मजबूरी के हिस्से के रूप में बनाई गईं. भारत और चीन दोनों की सहमति से सीमाएं नहीं बनीं.

दोनों ही देशों के बीच जटिल सीमा विवाद को लेकर अक्टूबर 1962 में एक संक्षिप्त युद्ध हुआ, जिसका कोई हल न निकला और पिछले 70 वर्षों से असहज यथास्थिति चली आ रही है. इसलिए दोनों ही देशों के पास वास्तविक नियंत्रण रेखा है, जोकि काल्पनिक है और एक अधिकार सीमा रेखा है, जहां तक सेनाएं गश्त लगा सकती हैं.

इस प्रकार से एक चीनी अधिकार रेखा है और एक भारतीय अधिकार रेखा है. दोनों ही देशों के लिए यह तर्कसंगत होता कि दोनों की अधिकार रेखा वास्तविक नियंत्रण रेखा के पीछे हो, जब तक सीमाओं का राजनीतिक हल न निकल जाए. लेकिन जमीनी हकीकत बिल्कुल अलग है.

हालांकि दोनों ही देशों की फौजों द्वारा वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास आक्रामक गश्त लगाने के कारण कई बार तनाव की परिस्थिति पैदा हो चुकी है, लेकिन राजीव गांधी के कार्यकाल के दौरान हुए समझौते की वजह से, जिसे प्रधानमंत्री नरसिंह राव के समय 1993 में अमलीजामा पहनाया गया, पिछले 25 से ज्यादा सालों में दोनों तरफ से गुस्से में एक भी गोली नहीं चली. हालांकि पिछले एक दशक में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सैनिक तनाव की तीन बड़ी घटनाएं हो चुकी हैं –

  • देप्संग 2013
  • चुमार (2014)
  • डोकलाम (2017)

लेकिन हर बार इनका राजनीतिक-कूटनीतिक रास्ते से हल निकाल लिया गया.

भारत के अनुसार, अप्रैल के तीसरे सप्ताह से चीनी फौज लद्दाख की वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चुपचाप अपनी उपस्थिति मजबूत बना रही है. क्या कारगिल जैसा तो नहीं? मई की शुरुआत में चीनी सेना के कई स्थानों पर नियंत्रण रेखा को पार करने की सूचना मिली और सैनिकों की संख्या पांच हजार से ऊपर हो गई है, जिससे परिस्थिति नाजुक बन गई है.

इसे संक्षेप में समझें तो यह आमने-सामने की परिस्थिति संख्या और गुणवत्ता दोनों ही तरह से इस मायने में अलग है कि पूर्वी लद्दाख में जहां चीनी फौज ने वास्तविक नियंत्रण रेखा का उल्लंघन किया है, सैनिकों की संख्या ज्यादा है, जैसा पहले नहीं देखा गया था. गुणात्मक रूप से यह उल्लंघन इसलिए अलग है कि वह 489 किलोमीटर तक लद्दाख में विस्तरित है.

उदाहरण के लिए गलवानी की घाटी ऐसी जगह है, जहां पहले कभी आक्रामक उल्लंघन या गश्त लगाने के अधिकार के लिए चीनी सेना ने कोई हलचल पिछले कई दशकों में नहीं की थी. अप्रैल से हुए कई उल्लंघन इस बात को इंगित करते हैं कि इसके पीछे उच्चस्तर पर योजना की गई होगी क्योंकि यह रोजमर्रा की गश्त का भाग नहीं हो सकती. सामान्य गश्त पूरी नियंत्रण रेखा पर साल में 600 सैनिकों द्वारा किए जाने का रिवाज है.

इस प्रकार वर्तमान तनाव की परिस्थिति गंभीर साबित हो सकती है, जिसे तात्कालिक रूप से राजनीतिक रास्ते से हल किया जाना चाहिए. चीन का इस प्रकार के कदम उठाने के पीछे क्या कारण हैं, यह स्पष्ट नहीं है. मेरा अनुमान है कि किसी एक पक्ष या दोनों पक्षों द्वारा आक्रामक गश्त लगाना भी इसका एक कारण हो सकता है और दूसरे पक्ष पर प्रभावी नजर रखे जाने के कारण छावनियों और सैनिकों की तैनाती पहली बार दिख जाना, दूसरा एक कारण हो सकता है.

चीनी फौज की आक्रामकता में एक निश्चित पैटर्न है, चाहे वह दक्षिण चीनी समुद्र में एसियान देशों के मद्देनजर हो या भारत की वास्तविक नियंत्रण रेखा पर उसकी गतिविधि. चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग के नेतृत्व में बीजिंग चीन के सीमाक्षेत्र पर अपना हक ज्यादा दिखाने की कोशिश में है, खासकर ताइवान को लेकर.

क्या मौजूदा गतिरोध सैन्य तनाव के उच्चस्तर तक बढ़ा रहेगा. दोनों देशों में भावनात्मक राष्ट्रवाद की प्रकृति के बारे में समान व्याख्यान है और सोशल मीडिया-वारियर्स द्वारा अपमानजनक ऑडियो विजुअल मीडिया स्थिति को बिगाड़ सकता है. दोनों देशों के नेतृत्व पर कोरोना वायरस महामारी एक चुनौती है. ऐसे में आशा रखी जानी चाहिए कि दोनों ही देश विवेक और संयम से काम लेंगे.

- सी. उदय भास्कर

Last Updated :May 27, 2020, 1:30 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.