ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण धरती पर मंडरा रहा विनाश का खतरा

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Published : Jun 17, 2020, 10:33 PM IST

impact on earth due to global warming

ग्लोबल वॉर्मिंग तेजी से अपने पैर पसार रहा है. इसके कारण सूखा, बेमौसम बरसात और बाढ़ आम बात हो गई है. कृषि के विकास पर भी विपरीत असर पड़ रहा है. पोलर क्षेत्र और ग्लेशियरों पर बर्फ की चादरें तेजी से पिघल रही हैं. इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है, उत्पाद के लिए जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल और इसे लेकर सरकारों की आर्थिक नीतियां. ग्लोबल वॉर्मिंग को रोकने के लिए इन नीतियों में बदलाव की जरूरत है.

हैदराबाद : ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण आने वाली आपदाओं की तीव्रता मानवता को बुरी तरह प्रभावित करती है. मौसम अपने चक्र को बदल रहा है. जिसके परिणाम से बाढ़ बढ़ रही है.

प्रकृति का रोष बिना भेदभाव के सभी राष्ट्रों को परेशान कर रहा है. जहां तक ​​भारत का संबंध है. जलवायु परिवर्तन पर पहली व्यापक रिपोर्ट 80 वर्षों में विनाशकारी घटनाओं का खुलासा कर रही है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) देश के 20 प्रतिशत जिलों में पिछले एक साल में अध्ययन करता है और डेढ़ साल सिंचाई पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का मूल्यांकन करता है.

फसलें और बगीचे प्रभावित
यह 150 से अधिक जिलों में फसलों, बगीचों और पशुधन ,जलवायु परिवर्तन प्रभावित हुए है. पिछले 10 वर्षों में कई अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टों में भारत और अन्य देशों के साथ होने वाले नुकसान का अनुमान शामिल है. गर्मी की लहरों की तीव्रता तीन से चार गुना बढ़ जाएगी, और तीस सेंटीमीटर तक समुद्र के स्तर को बढ़ जाएगे. छह साल पहले खबर थी कि चार दशकों के भीतर, हिमालय में ग्लेशियर की 13 फीसदी लहरें गिर चुकी हैं, जिससे जलवायु पर इस परिवर्तन के प्रभाव से व्याकुलता पैदा हुई है.

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मानव जीवन को खतरा

पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने से रोकने के लिए अगर तत्काल कदम नहीं उठाए गए, तो देश को भारी विनाश का सामना करना पड़ेगा. एक ठोस संयुक्त कार्रवाई के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को तुरंत सूचित करना चाहिए.कार्बन उत्सर्जन के अत्यधिक जारी होने के कारण ग्लोबल वॉर्मिंग हो रही है. ग्लेशियरों के पिघलने और समुद्र के स्तर में वृद्धि के कारण कई समस्याओं हो सकती है.समुद्र तटों में शहर जलमग्न हो सकते है. अशांत जलवायु चक्र बाढ़ आ सकता है और अकाल का परिणाम हो सकता है. फसलों और कुल मानव जीवन को खतरा हो सकता है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारतीय उपमहाद्वीप की 4 करोड़ हेक्टेयर भूमि पर बाढ़ का खतरा है और 68 प्रतिशत क्षेत्र सूखाग्रस्त है.

धान की खेती में खतरा

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट ने तीन महीने पहले यह स्पष्ट कर दिया था कि जलवायु संतुलन के कारण धान की खेती में 100 प्रतिशत, मक्का का लगभग 90 प्रतिशत और सोयाबीन की 80 प्रतिशत खेती प्रभावित होगी. विशेषज्ञों ने चेतावनी दी कि जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में केले का उत्पादन घट जाएगा.

विश्व बैंक ने पिछले साल ही चेतावनी दी थी कि अगर भारत ने सुधारात्मक कदम नहीं उठाए, तो 2050 तक यह विदेशों से खाद्यान्न आयात करने की अनिश्चित स्थिति में होगा. भूमि के तापमान नियंत्रण के लिए बढ़ते वन आवरण, ऊर्जा संरक्षण, भूमि उपयोग, परिवहन, निर्माण और औद्योगिक क्षेत्रों में सकारात्मक सुधार, फसल के पैटर्न में बदलाव सरकारों के एजेंडे का एक अभिन्न हिस्सा होना चाहिए. यदि शासक वर्ग समय पर नहीं जागते हैं, तो प्राकृतिक आपदाएं हमारे जीवन के साथ खिलवाड़ करेंगी.

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