जगदलपुर : बस्तर में जैविक खेती की अपार संभावनाएं हैं. यहां की जलवायु जैविक खेती के लिए अनुकूल भी है. लिहाजा ऑर्गेनिक फार्मिंग को बढ़ावा देने के लिए बस्तर में पहली बार काले गेहूं की खेती की जा रही है. 11 किसानों ने काले गेहूं अपने खेतों में लगाए हैं. पोषक तत्वों से परिपूर्ण काले गेहूं के बीज कृषि विज्ञान केंद्र के रिसर्च के बाद बस्तर के चुनिंदा किसानों को मुहैया कराए गए हैं. काला गेहूं पोषक तत्वों से भरपूर है. भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों ने इसे विकसित किया है.
बस्तर में पहली बार काले गेहूं की खेती शहीद गुंडाधुर कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिक डॉक्टर आदिकांत प्रधान की देख-रेख में खेती की जा रही है. कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर आदिकांत प्रधान ने बताया कि जिस तरह से वर्तमान में जलवायु परिवर्तन हो रहा है. उसके हिसाब से काला गेहूं मानव शरीर के लिए बहुत फायदेमंद है. वैज्ञानिक ने बताया कि बस्तर में जैविक खेती की अपार संभावनाएं हैं. इसे ध्यान में रखते हुए काले गेहूं की खेती की जा रही है. इसे सरकारी परियोजना के माध्यम से बस्तर जिले के कुल 11 किसानों को बीज उपलब्ध कराई गई है, जिसमें बकावंड ब्लॉक के नौ किसान और जगदलपुर विकासखंड के दो किसान शामिल हैं.
पंजाब में हुई काले गेहूं की खोज
कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि काले गेहूं की खोज पंजाब के मोहाली स्थित नेशनल एग्री फूड बायोटेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर डॉक्टर जॉर्ज ने की है. बस्तर के कृषि वैज्ञानिकों ने इसका बीज छह से 10 हजार रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से भोपाल से मंगाया है. चुनिंदा किसानों को बीज देने के साथ ही अनुसंधान केंद्र के भीतर भी बुआई की गई है. रिसर्च भी चल रहा है.
रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में कारगर
वैज्ञानिक ने बताया कि इस गेहूं की खास बात यह है कि यह शरीर को रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने की ताकत देता है. शरीर को सही मात्रा में फाइबर भी मिलता है. पेट के रोगों में भी इससे लाभ मिल सकता है. यह गेहूं आयरन, जिंक, प्रोटीन और एंटीऑक्सीडेंट युक्त है. यही वजह है कि यह दवाई के रूप में काम करेगा. वहीं पोषण तत्व भी प्रचुर मात्रा में होने की वजह से यह आने वाले जलवायु और मौसम को देखते हुए मानव शरीर के लिए काफी फायदेमंद है.
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डायटीशियन प्रांजल श्रीवास्तव से जब ईटीवी भारत ने बात की तो उन्होंने बताया कि जिंक और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होने पर काला गेहूं सेहत के लिए फायदेमंद होगा. उन्होंने बताया कि रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का गुण अगर अनाज में है, तो बीमारियां अपने आप दूर होंगी. डायटीशियन ने ये भी कहा कि हम अनाज को किस फॉर्म में खा रहे हैं, इसका भी बहुत असर होता है. अनाज को पकाने के माध्यम से उसके पोषक तत्व खत्म होते हैं या बने रहते हैं.
11 किसान कर रहे काले गेहूं की खेती
कृषि वैज्ञानिक ने कहा कि 11 किसानों ने अपने खेतों में काले गेहूं लगाए हैं. करीब 90 से 100 दिनों में इसकी फसल पक कर तैयार हो जाएगी. बस्तर में पूरी तरह से इस पर रिसर्च कर अन्य किसानों को भी इसे अपने खेतों में लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा. कृषि विज्ञान अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिक ने कहा, आने वाले 90 दिनों से वैज्ञानिकों को इसका इंतजार है. इसमें आंकड़े देखे जाएंगे कि किस प्रकार का उत्पादन हुआ है, जो परिवर्तन किया जाना रहेगा उसपर भी ध्यान दिया जाएगा.
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सामान्य गेहूं जैसा दाम
रिसर्च में यह भी देखा जा रहा है कि इसकी सिंचाई के लिए कितना पानी लग रहा है. उन्होंने कहा कि सामान्य गेहूं और काले गेहूं की फसल तैयार करने में ज्यादा अंतर नहीं है. उसकी दर भी लगभग बराबर है. कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि विदेश में काले गेहूं की डिमांड बढ़ी है. बस्तर में प्रायोगिक तौर पर रिसर्च के बाद आने वाले सालों में इसका प्रोडक्शन बढ़ाया जाएगा. मार्केट में यह आसानी से उपलब्ध हो सकेगा.
किसानों को 100 दिन पूरे होने का इंतजार
जगदलपुर ब्लॉक के किसान पद्मनाथ ने बताया कि वे एक्सपेरीमेंट के तौर पर अपने खेत के 60 डिसमिल में काले गेहूं की खेती कर रहे हैं. सामान्य गेहूं की तरह ही काले गेहूं की सिंचाई कर रहे हैं. किसान ने बताया कि लागत में अब तक खाद पानी और बीज का जो भी खर्चा आया है, उतनी लागत काले गेहूं की फसल करने में लगाई गई है. इसकी खेती से मुनाफा भी अच्छा होगा. किसान भी इंतजार कर रहे हैं कि 100 दिनों के बाद इसकी फसल कैसी होगी और अगर इसकी डिमांड बढ़ेगी तो इसका ज्यादा से ज्यादा उत्पादन किया जाएगा. कृषि वैज्ञानिक ने कहा कि मार्केट में इसकी डिमांड बढ़ने के बाद अन्य किसानों को भी अपने खेतों में काली गेहूं लगाने के लिए उन्हें प्रोत्साहित किया जाएगा.