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महान मित्र और मार्गदर्शक थे नरसिम्हा राव : मनमोहन सिंह

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Published : Jun 28, 2020, 6:55 AM IST

Updated : Jun 28, 2020, 8:11 AM IST

पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के जन्मशती वर्ष पर भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और राव की नेतृत्व वाली सरकार में वित्त मंत्री रहे डॉ. मनमोहन सिंह ने उनसे मिलने और उनके साथ काम करने के किस्से को लेकर स्मृति पत्र लिखा है. जानें मनमोहन ने क्या कुछ लिखा...

PV NARSIMHA RAO
पीवी नरसिम्हा राव को श्रद्धांजलि

डॉ. मनमोहन सिंह, भारत के पूर्व प्रधानमंत्री

मेरा परिचय पीवी नरसिम्हा राव से तब हुआ जब 1988 में वह विदेश मंत्री थे, तब मैं दक्षिण आयोग में महासचिव था. उस दौरान जब वह जिनेवा आए थे तब हम एक-दूसरे से मिले थे. सरकार के गठन के दिन साल 1991 में नरसिम्हा राव ने मुझे बुलाया और कहा, 'आओ, मैं तुम्हें वित्त मंत्री बनाना चाहता हूं.' मैं वित्त मंत्री के रूप में शपथ लेने के लिए राष्ट्रपति भवन पहुंचा. वित्त मंत्री का पद स्वीकार करने से पहले मैंने नरसिम्हा राव से कहा कि मैं उस पद को तभी स्वीकार करूंगा, जब मुझे उनका पूरा समर्थन मिलेगा.

उन्होंने मजाक करते हुए जवाब दिया, 'तुम्हें पूरी आजादी होगी. यदि नीतियां सफल होती हैं, तो हम सभी इसका श्रेय लेंगे. यदि वह विफल होती हैं, तो आपको जाना होगा.' शपथ ग्रहण समारोह के बाद, प्रधानमंत्री राव ने विपक्षी नेताओं की एक बैठक बुलाई. मैंने नेताओं को जानकारी दी, जिसके बाद मुझे ऐसा आभास हुआ कि विपक्ष स्तब्ध रह गया है. प्रधानमंत्री ने मुझे आर्थिक सुधार के लिए पूर्ण स्वतंत्रता दी.

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पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव और डॉ. मनमोहन सिंह (फाइल फोटो)

आर्थिक सुधार अचानक नहीं हुए. उस समय दूरदर्शी राजनीतिक नेतृत्व के बिना यह ऐतिहासिक परिवर्तन संभव नहीं था. सामाजिक न्याय के साथ आर्थिक विकास में तेजी लाने के लिए हमारी आर्थिक नीतियों को फिर से उन्मुख करने के महत्व को समझने वाली पहली राजनीतिक नेता इंदिरा गांधी थीं. उनके द्वारा उठाए गए कदमों को नई सूचना युग के महत्व को समझते हुए राजीव ने आगे बढ़ाया. राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार द्वारा 1980 के दशक में अंतिम पांच वर्षों में आर्थिक सुधारों को नई दिशा में आगे बढ़ाया गया.

नरसिम्हा राव ने निडरता के साथ आर्थिक सुधारों में भूमिका निभाई है, हमें उसके लिए श्रद्धांजलि अर्पित करनी चाहिए. 1991 में जब प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार बनी, जब मैं वित्त मंत्री था, तब आर्थिक सुधारों की शुरुआत हुई थी. प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के नेतृत्व में हमने अपनी आर्थिक नीतियों के संबंध में और हमारी विदेश नीति के संबंध में महत्वपूर्ण निर्णय लिए.

हमारे द्वारा शुरू किए गए सुधारों के महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक भारतीय अनुभव की अनूठी प्रकृति थी. हम दिए गए किसी एक फॉर्मूले पर नहीं टिके. मुझे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के तत्कालीन प्रबंध निदेशक माइकल कैमडेसस के साथ राव की मुलाकात याद है.

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पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव और डॉ. मनमोहन सिंह (फाइल फोटो)

नरसिम्हा राव ने उनसे कहा कि भारत में सुधारों को भारतीय सरोकारों के प्रति सचेत रहना होगा. हम एक लोकतंत्र हैं. हमारे लोगों के हितों की रक्षा होनी चाहिए. हमने आईएमएफ को बताया कि हम अपने संरचनात्मक समायोजन कार्यक्रम के परिणामस्वरूप एक भी सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारी को नौकरी खोने नहीं दे सकते हैं. मेरा मानना ​​है कि हमने यह आश्वासन दिया कि सुधारों को हमारी प्राथमिकताओं के अनुरूप कैलिब्रेट किया जाएगा.

प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव भारतीय विदेश नीति में यथार्थवाद को सामने लाए. उन्होंने पड़ोसी देशों के साथ भारत के संबंधों को बेहतर बनाने की कोशिश की. 1993 में राव ने चीन के साथ रिश्तों में आई कड़वाहट को कम करने के लिए चीन का दौरा भी किया. भारत ने दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) के अन्य देशों के साथ दक्षिण एशियाई अधिमान्य व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर भी किए. उन्होंने भारत को कई पूर्व और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों से जोड़ने के लिए 'लुक ईस्ट पॉलिसी' भी लॉन्च की.

नरसिम्हा राव के नेतृत्व में सरकार ने महत्वाकांक्षी बैलिस्टिक मिसाइल प्रौद्योगिकी कार्यक्रम शुरू किया और भारत के बाहरी सुरक्षा कार्यक्रम को बढ़ाने के लिए 1992 में ऑगमेंटेड सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (एएसएलवी) और पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (पीएसएलपी) का सफलतापूर्वक परीक्षण किया. 1994 में पृथ्वी मिसाइल का पहला सफल परीक्षण किया गया और बाद में इसे मध्यवर्ती श्रेणी की बैलिस्टिक मिसाइल के रूप में विकसित किया गया.

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मुझे भारत के महान सपूत की याद में श्रद्धांजलि देते हुए बहुत खुशी हो रही है, जो एक दोस्त और मार्गदर्शक थे. मैंने उन्हें बहुत करीब से देखा है. वह वास्तव में राजनीति में एक सन्यासी थे. वह एक आधुनिकतावादी थे, जो हमारी परंपरा और लोकाचार में डूबे हुए थे. वह एक दुर्लभ विद्वान और राजनेता थे, जिन्होंने न केवल हमारी आर्थिक बल्कि विदेशी नीतियों को भी दिशा दी. उनकी कई भाषाओं पर कमान थी.

Last Updated : Jun 28, 2020, 8:11 AM IST
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