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जानें, चीन के साथ विरोध के स्वर में क्यों जन भावना के साथ नहीं कांग्रेस

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Published : Jul 9, 2020, 9:21 PM IST

गलवान घाटी में दिए गए 20 भारतीय सैनिकों के बलिदान पर कांग्रेस खुलकर चीन की आलोचना क्यों नहीं कर पाती है जबकि पूरे देश में चीन के प्रति गुस्से की लहर दौड़ रही है. क्यों 2008 में चीन और कांग्रेस पार्टी के बीच हुए समझौते को सार्वजनिक करने से पार्टी डरती है.

जन भावना के साथ नहीं है कांग्रेस पार्टी
जन भावना के साथ नहीं है कांग्रेस पार्टी

हैदराबाद : कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष सोनिया गांधी की अध्यक्षता में चल रहे राजीव गांधी फाउंडेशन (आरजीएफ) को मिले दान के बारे में कई जानकारियां जनता के बीच तेजी से फैल रही हैं. इसकी जांच की घोषणा होने के बाद कांग्रेस पार्टी ने भी भारतीय जनता पार्टी पर जवाबी हमला कर तो दिया लेकिन इससे कांग्रेस पार्टी को कोई खास फायदा होता नजह नहीं आ रहा क्योंकि जनता के मन में राजीव गांधी फाउंडेशन के ही खिलाफ कई सवाल पैदा होते जा रहे हैं.

कांग्रेस पार्टी को इसकी सफाई जरूर देनी चाहिए कि नेहरू-गांधी परिवार के आधिपत्य वाली कांग्रेस पार्टी की ही तरह एक और संगठन आरजीएफ है, उसने कैसे चीन से दान ले लिया. चीन- एक ऐसा देश जो भारत से दोस्ती की आड़ में पीठ में छुरा घोंपने का काम करता है और बार-बार देश की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता पर वार करता है. इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि 2008 में कांग्रेस पार्टी और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (CCP) के बीच हुए समझौते का खुलासा करने में क्यों झिझक रही है.

इस समझौते पर हस्ताक्षर कांग्रेस पार्टी के उस समय के पार्टी महासचिव राहुल गांधी और सीसीपी के अधिकारियों ने कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी और उस समय के चीन के उप राष्ट्रपति शी जिनपिंग के सामने किया था. जनता की बढ़ती मांग के बावजूद नेहरू-गांधी परिवार इस एमओयू को सार्वजनिक करने से झिझक रहे हैं. वे किस बात से डरे हुए हैं.

एमओयू पर हस्ताक्षर समारोह की एक तस्वीर पोस्ट करते हुए प्रसिद्ध वकील महेश जेठमलानी ने हाल ही में ट्वीट किया और कहा कि पार्टी को अनिवार्य रूप से इस समझौते का विवरण सार्वजनिक करना चाहिए ताकि देश की जनता में गलतफहमी का माहौल न पैदा हो. साथ ही उन्होंने ये भी लिखा कि चीन भारत देश का दुश्मन था और है.

जेठमलानी ने कहा कि सीसीपी एक शत्रु संघ है. सीसीपी भारतीय क्षेत्र के कब्जे का समर्थन करता है और अन्य क्षेत्रों पर भी दावा करता है. सीसीपी के साथ कोई भी समझौता सीसीपी के स्टैंड को मान्य करता है और यूएपीए एक्ट (Prevention of Corruption Act) के तहत एक दंडनीय है. उन्होंने भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम और 1976 और 2010 के विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियमों के तहत संभावित अपराधों की सीबीआई जांच का भी सुझाव दिया है.

यह सवाल ऐसे समय में और अधिक प्रासंगिक हो गया है जब हाल ही में लद्दाख में भारत-चीन की हिंसक झड़प में 20 भारतीय सैनिकों की जान चली गई. घोटाले का एक और एंगल भी है, जिसमें पार्टी द्वारा संचालित आरजीएफ में धन प्रवाह का है जो और भी ज्यादा भयानक है. इस घोटाले में जो पैसा प्रधानमंत्री नेशनल रिलीफ फंड (जो मुख्य रूप से प्राकृतिक आपदाओं के समय में लोगों की मदद के लिए है) के लिए जमा किया गया उसे आरजीएफ में ट्रांसफर कर दिया गया. ये तब किया गया जब पार्टी 2004 से 2014 तक केंद्र में सत्ता में रही.

नेहरू-गांधी के अलावाडॉ.मनमोहन सिंह जो उस समय प्रधान मंत्री थे उनको स्पष्ट करना चाहिए कि कैसे उन्होंने जनता के धन का इसतरह दुरुपयोग होने दिया. उन्हें यह भी बताना चाहिए कि क्यों कुछ केंद्रीय मंत्रालयों, सरकारी विभागों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों ने आरजीएफ को दान दिया.

चीन की सरकार से मिले कांग्रेस पार्टी को दान के बारे में खबर ने हलचल मचा दी है क्योंकि इससे लेन-देन की पवित्रता दूषित होती है और भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता पर प्रभाव पड़ता हैं. कांग्रेस पार्टी जो स्वतंत्रता आंदोलन के समय से मोर्चे पर थी उसने लंबे समय तक जनता का विश्वास अर्जित किया. कांग्रेस पार्टी के लिए जनता की श्रद्धा तब फीकी पड़ने लगी जब इंदिरा गांधी का पार्टी में आगमन हुआ. इंदिरा गांधी के आने के बाद पार्टी निजी लिमिटेड कंपनी का क्लोन बन गई जिसे नेहरू-गांधी परिवार ने कसकर पकड़ रखा था. नतीजतन, उन्होंने भारत को एक वास्तविक राजतंत्र बना दिया.

यह इस हद तक बढ़ गया कि प्रत्येक प्रमुख सरकारी योजना, सार्वजनिक भवन, राष्ट्रीय संस्थानों, विश्वविद्यालयों, छात्रवृत्ति और खेल की घटनाओं को इस परिवार के सदस्यों के नाम पर रखा जाने लगा. यहां तक ​​कि भारत के सबसे दक्षिणी बिंदु पैग्मेलियन प्वाइंट को फिर से इंदिरा प्वाइंट नाम दिया गया और हिमालय में एक चोटी का नाम राजीव पीक रखा गया.

यह सब परिवार की छोटी मानसिकता को दर्शाता है. क्योंकि इसकी जांच दशकों से नहीं हुई, यह परिवार अपने पारिवारिक संगठन को चलाने के लिए दुश्मन देश से भी दान लेने से नहीं हिचकता.

परिवार के हक की भावना कुछ इस तरह है कि बीजिंग ओलंपिक में सोनिया गांधी शामिल हुई प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह नहीं. चीन ने उनके बेटे राहुल गांधी, उनकी बेटी प्रियंका और दामाद रॉबर्ट वाड्रा की खूब आवभगत की. इस बारे में ट्वीट करते हुए सांसद शोभा करंदजले ने कहा कि यह प्रधानमंत्री कार्यालय का मजाक नहीं है बल्कि भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली का भी मजाक है.

इसलिए गलवान घाटी में दिए गए 20 भारतीय सैनिकों के बलिदान पर कांग्रेस खुलकर चीन की आलोचना नहीं कर पाती है जबकि पूरे देश में चीन के प्रति गुस्से की लहर दौड़ रही है.

मजबूत जन भावना नरेंद्र मोदी सरकार को देश की क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा के लिए कड़े कदम उठाने के लिए मजबूर करेगी. कांग्रेस पार्टी इस राष्ट्रीय भावना के साथ क्यों नहीं है. प्रत्येक भारतीय को सवाल पूछना चाहिए.

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