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'वायु प्रदूषण में पराली का योगदान चार से 30 फीसद , ठोस उपाय जरूरी'

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Published : Oct 18, 2020, 10:40 PM IST

stubble contribution in air pollution
प्रदूषण बढ़ने में 30 फीसदी तक हो सकता है पराली जलने का योगदान

सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायरमेंट की कार्यकारी निदेशक अनुमिता रॉय चौधरी के मुताबिक पराली ही वायु प्रदूषण का एकमात्र कारण नहीं है. उन्होंने कहा कि वायु प्रदूषण में करीब 30 फीसदी योगदान पराली का हो सकता है, ऐसे में इस प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए सख्त कदम उठाने होंगे.

नई दिल्ली : सर्दियों की शुरुआत से पहले एक बार फिर दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ने लगा है. इसमें पराली जलाए जाने को लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने अलग-अलग दावे किए हैं. इस संबंध में पर्यावरणविद और किसानों के भी अपने-अपने पक्ष हैं. पंजाब में किसानों ने पराली जलाने को लेकर सरकार से आर्थिक मदद की मांग की है.

वायु प्रदूषण में पराली व अन्य कारकों की क्या भूमिका है, इस संबंध में 'सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायरमेंट' (सीएसई) की कार्यकारी निदेशक अनुमिता रॉय चौधरी ने विस्तार से जानकारी दी है. उन्होंने कहा है कि सरकारें अपने स्तर से आपातकालीन कदम उठा रही हैं, लेकिन इसके लिए ठोस और स्थायी उपाय किए जाने चाहिए. पढ़ें पांच महत्वपूर्ण सवालों के जवाब-

सवाल: वायु प्रदूषण बढ़ने में पराली जलाने के योगदान को लेकर केंद्र एवं दिल्ली सरकार में बहस देखने को मिली है। ऐसे में सवाल यह है कि क्या सर्दियों के समय प्रदूषण बढ़ने का मुख्य कारण पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में पराली का जलाया जाना है?

जवाब: सर्दियों में वायु प्रदूषण बढ़ने का मुख्य कारण यह है कि तापमान कम होता है और हवा थम जाती है. जिससे प्रदूषक कण जम जाते हैं. हवा में गति नहीं होने से प्रदूषण हट नहीं पाता है. वाहनों, ऊर्जा संयंत्रों, निर्माण गतिविधियों से उत्पन्न प्रदूषक तत्व भी नहीं हट पाते हैं. पराली जलाने का काम अक्टूबर-नवंबर के बीच होता है. इस पर नियंत्रण करना होगा, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि पराली ही दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण का एकमात्र कारण है. पराली को लेकर सख्त कदम उठाने होंगे, लेकिन इसके साथ ही दूसरे स्रोतों पर नियंत्रण करना भी जरूरी है.

सवाल: अब तक हुए अध्ययनों के हिसाब से इस मौसम के दौरान दिल्ली-एनसीआर के प्रदूषण में पराली जलाने का कितना योगदान है?

जवाब: जब पराली जलती है तो हवा की गति और दिशा पर निर्भर करता है कि धुएं का असर दिल्ली या किसी दूसरे स्थान पर कितना होगा. जो आंकड़े मौजूद हैं, वे दिखाते हैं कि प्रदूषण बढ़ने में पराली जलने का योगदान चार से 30 फीसदी तक हो सकता है. पराली प्रदूषण बढ़ने का स्थायी स्रोत नहीं है. गाड़ियां, निर्माण कार्य, कचरा जलाया जाना और कुछ अन्य औद्योगिक गतिविधियां ऐसे स्थायी स्रोत हैं जिनसे पूरे साल प्रदूषण होता है.

सवाल: यह कोविड महामारी का समय है और प्रदूषण लोगों की चिंता बढ़ा सकता है. ऐसे में बतौर पर्यावरण विशेषज्ञ आपका क्या अनुमान है कि पिछले साल के मुकाबले इस बार प्रदूषण की स्थिति कैसी होगी?

जवाब: विभिन्न अस्पतालों द्वारा किए गए अध्ययन से पता चलता है कि सर्दियों के समय सांस संबंधी समस्याएं बढ़ जाती हैं. इस साल एक और चिंता कोविड को लेकर है. अब तक के अध्ययन दिखाते हैं कि जिन लोगों के फेफड़े और श्वसन तंत्र कमजोर है, उनके लिए कोविड बड़ा खतरा है. ऐसे में चिकित्सकों की तरफ से चेतावनी दी जा रही है कि लोगों को सर्दियों में पूरी सावधानी बरतनी होगी. प्रदूषण बढ़ने की शुरुआत हो गई है और संबंधित प्राधिकारों को त्वरित कदम उठाने होंगे, अन्यथा वायु प्रदूषण का स्तर पहले के वर्षों की तरह ही बढ़ सकता है.

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सवाल: इन हालात में वायु प्रदूषण के स्तर को नियंत्रित रखने के लिए क्या कदम उठाने होंगे?

जवाब: पहले प्रदूषण का स्तर बहुत ज्यादा बढ़ने पर निर्माण कार्य बंद कर दिए जाते थे, लेकिन इस बार अर्थव्यवस्था की स्थिति को देखते हुए ऐसे कदम उठाना आसान नहीं होगा. व्यवस्थागत सुधार में समय लगता है. अब सर्दी बेहद नजदीक आ चुकी है. ऐसे में हम आपात कदम उठा सकते हैं. आपात कदमों के संदर्भ में बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करने की नीति अपनानी होगी. मसलन, कचरा जलाए जाने पर सख्ती से रोक लगाई जाए, निर्माण गतिविधियों के दौरान धूल को नियंत्रित करने के लिए प्रभावी कदम उठाए जाएं और लकड़ियां जलाने को रोकने के लिए लोगों को सब्सिडी पर एलपीजी दी जाए. इस तरह के कई अन्य कदम उठाए जाने चाहिए.

सवाल: प्रदूषण नियंत्रित करने के लिए दिल्ली सरकार और अन्य संबंधित राज्यों की सरकारों एवं प्रशासनिक इकाइयों की ओर से हाल के समय में उठाए गए कदम कितने संतोषजनक हैं?

जवाब: दिल्ली और एनसीआर में दो तरह की कार्ययोजना पर अमल हुआ है. एक है समग्र कार्ययोजना, जिसके तहत प्रदूषण के सभी स्रोतों को नियंत्रित करने से जुड़े उपाय शामिल हैं. दूसरी है आपात स्थिति की कार्ययोजना. समग्र कार्ययोजना के तहत कुछ काम जरूर हुए हैं. मसलन, कई प्रदूषण फैलाने वाले ऊर्जा संयंत्रों का बंद होना और पुराने डीजल वाहनों का परिचालन बंद करना. कई दूसरी चीजें भी आगे बढ़ी हैं. कुछ चीजें आगे नहीं बढ़ी हैं. मसलन कचरा जलाने को लेकर कोई खास ठोस कदम नहीं उठाया गया है. सार्वजनिक परिवहन सेवा में जैसा सुधार होना चाहिए था, वह नहीं हुआ है. सम-विषम जैसे कदम आपात स्थिति में उठाए जाते हैं, लेकिन हमें आपात कदम के साथ ही समग्र कार्ययोजना पर गंभीरता दिखानी होगी. स्थायी कदम और आपात कदम में अंतर होता है, इसे लोगों को समझना होगा.

(पीटीआई-भाषा)

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