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विशेष : चीन और पाकिस्तान के गहराते संबंध, भारत को दो मोर्चों पर रहना होगा तैयार

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Published : Jul 4, 2020, 1:31 PM IST

Updated : Jul 4, 2020, 3:11 PM IST

पाकिस्तान के उत्तरी लद्दाख सीमा पर 20,000 सैनिकों को भेजने और चीन के कश्मीरी आतंकी समूहों के साथ बातचीत करने की खबरें सामने आ रही है. वहीं चीन और पाकिस्तान के संबंध 1962 के चीन-भारतीय सीमा युद्ध से ही मजबूत होते जा रहे हैं. ऐसे में भारत को चीन और पाकिस्तान दोनों से एक साथ मुकाबला करने के लिए तैयार रहना होगा.

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चीन और पाकिस्तान के गहराते संबंध

हैदराबाद : पाकिस्तान के उत्तरी लद्दाख सीमा पर 20,000 सैनिकों को भेजने और चीन के कश्मीरी आतंकी समूहों के साथ बातचीत करने की खबरों ने हाल-फिलहाल के परिदृश्य में दो युद्धों की आशंका दिखाई दे रही हैं. ऐसे में भारत को चीन और पाकिस्तान दोनों से एक साथ मुकाबला करना होगा और साथ ही कश्मीर या उत्तर पूर्व के अन्य भागों में आतंकवादी समूहों से निबटना होगा.

चीन और पाकिस्तान अपने रिश्ते को अक्सर पहाड़ों से ऊंचा, समुद्र से गहरा, स्टील से अधिक मजबूत और शहद से अधिक मीठा कहते हैं.

चीन और पाकिस्तान संबंधों के मुख्य बिंदु
पाकिस्तान और चीन के बीच संबंधों को मजबूत करने में कई बिंदु अहम भूमिका निभा रहे हैं.

भौगोलिक निकटता
पाकिस्तान एकमात्र ऐसा देश है, जिसके साथ चीन ने सीमा विवाद को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझा लिया था. मार्च 1963 में चीन और पाकिस्तान दोनों ने सीमा समझौते पर हस्ताक्षर किए. गिलगित-बाल्टिस्तान और पीओके, चीन के शिनजियांग उइगर स्वायत्त क्षेत्र से जुड़े हैं. वे 523 किलोमीटर की सीमा साझा करते हैं.

पाकिस्तान का भू-रणनीतिक स्थान
पाकिस्तान का रणनीतिक स्थान भी एक महत्वपूर्ण बिंदु है. पाकिस्तान, भारत, अफगानिस्तान और ईरान के साथ सीमा साझा करता है. इसके अलावा यह अरब सागर के तट के किनारे भी बसा है. यह तीन महत्वपूर्ण क्षेत्रों- दक्षिण, पश्चिम और मध्य एशिया के बीच है. यह ऊर्जा संपन्न मध्य एशियाई और मध्य पूर्वी देशों के करीब है. चीन ने इस रणनीतिक स्थान का लाभ उठाना शुरू कर दिया. 1970 के दौरान काराकोरम राजमार्ग का निर्माण हुआ. चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) भी इस क्षेत्र से गुजरता है.

भारतीय बिंदु
1962 के चीन-भारतीय सीमा युद्ध के मद्देनजर ही चीन और पाकिस्तान के संबंध बने और मजबूत हुए हैं. भारत ने दोनों ही देशों के साथ युद्ध लड़े हैं. भारत और पाकिस्तान के संघर्ष के दौरान पाकिस्तान की तरफ चीन का झुकाव और समर्थन, हथियारों की आपूर्ति, परमाणु और मिसाइल कार्यक्रम में सहायता चीन-पाकिस्तान के संबंधों को पुष्ट करता है.

आर्थिक संबंध

  • 2013 में दोनों देशों के बीच क्षेत्रीय संपर्क और व्यापार बढ़ाने के इरादे से चीन ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) बनाया. यह वाणिज्यिक परियोजना है, जिसका उद्देश्य दक्षिण-पश्चिमी पाकिस्तान से चीन के उत्तर-पश्चिमी स्वायत्त क्षेत्र शिंजियांग तक ग्वादर बंदरगाह, रेलवे और हाइवे के माध्यम से तेल और गैस का कम समय में वितरण करना है. CPEC बीजिंग के ट्रिलियन-डॉलर बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का हिस्सा है.
  • चीन ने काराकोरम हाईवे (KKH), हेवी मैकेनिकल कॉम्प्लेक्स (HMC), पाकिस्तान एयरोनॉटिकल कॉम्प्लेक्स (PAC), परमाणु ऊर्जा संयंत्रों, सड़कों, राजमार्गों, बांधों, थर्मल पावर प्रोजेक्ट्स, सीमेंट प्लांट्स, ग्लास फैक्ट्रियों जैसे मेगा प्रोजेक्ट्स में निवेश किया.
  • ग्वादर रणनीतिक रूप से स्थित प्राकृतिक बंदरगाह में एक है, जिसे पाकिस्तान ने फरवरी 2013 में चौतरफा बुनियादी ढांचे के विकास के लिए चीन को सौंप दिया है. ग्वादर से चीन हिंद महासागर के भीतर भारतीय नौसेना पर नजर बनाए रहता है.

इस्लामिक वर्ल्ड फैक्टर

  • पाकिस्तान ने ही ईरान और सऊदी अरब के साथ चीन के राजनयिक संबंध स्थापित किए.
  • शिनजियांग में मुस्लिम अल्पसंख्यकों के प्रति नीतियों की आलोचना करने और इस मुद्दे को ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन (OIC) में ले जाने के लिए सदस्य इस्लामिक राज्यों को रोकने में पाकिस्तान एक अहम भूमिका निभा रहा है.
  • मुस्लिम राष्ट्र और चीन के मुस्लिम आबादी के साथ होती बर्बरता की आलोचना करने के बाद भी पाकिस्तान, चीन को राजनयिक समर्थन देता है.
  • 2009 में तुर्की ने बीजिंग की 'दमनात्मक' नीतियों का मुद्दा उठाया. विशेष रूप से, जुलाई 2009 के दौरान शिनजियांग में 197 से अधिक लोग मारे गए थे. कुछ सदस्य देशों ने इस मुद्दे को ओआईसी में ले जाना चाहा, लेकिन इस्लामाबाद ने उन्हें रोक दिया.
  • पाकिस्तान ने सदस्य इस्लामिक राज्यों की सफलतापूर्वक पैरवी करते हुए कहा कि उइगरों को संभालने सहित सभी मुद्दों को चीन के साथ द्विपक्षीय रूप से संबोधित किया जाना चाहिए, लेकिन ओआईसी के माध्यम से नहीं.

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रक्षा क्षेत्र में सहयोग

  • रक्षा क्षेत्र में, चीन ने संयुक्त उत्पादन के साथ प्रवेश किया. चीन ने लाइसेंस दिया, पाकिस्तानी तकनीशियनों को प्रशिक्षित किया और टेक्नोलॉजी भी ट्रांसफर की.
  • चीनी लाइसेंस से पाकिस्तान ने बंदूकें, विमान (ट्रेनर और लड़ाकू दोनों), टैंक और एंटी टैंक मिसाइलों का उत्पादन किया. दोनों देशों ने संयुक्त रूप से एक उन्नत विमान, जेएफ -17, नौसेना फ्रिगेट और पनडुब्बियों (निर्माणाधीन) का विकास किया है.

अमेरिकी बिंदु
पाकिस्तान शुरुआत से ही सेना और आर्थिक सहायता के लिए अमेरिका पर निर्भर था. दोनों ने 1950 के दशक के दौरान रक्षा संधि पर हस्ताक्षर किए, 1980 के दशक में अफगानिस्तान पर सोवियत आक्रमण के दौरान सहयोग किया. फिर भी, वे एक निरंतर संबंध विकसित करने में विफल रहे. यूएस-पाकिस्तान संबंधों में आ रही बाधाओं ने इस्लामाबाद को बीजिंग की ओर धकेला है.

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चीन ने कब-कब की पाकिस्तान की मदद

  • चीन ने विशेष रूप से वैश्विक दबाव बढ़ने के बावजूद इस्लामाबाद का समर्थन किया है.
  • 1972 में, बांग्लादेश के प्रवेश को रोकने के लिए पाकिस्तान के अनुरोध पर चीन ने संयुक्त राष्ट्र में अपने पहले वीटो का उपयोग किया.
  • भारत ने 2009, 2016, 2017 और मार्च 2019 में मसूद अजहर को 'वैश्विक आतंकवादी' घोषित करने के लिए कहा, लेकिन हर बार चीन ने इसका विरोध किया.
  • पाकिस्तान फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) की ब्लैक लिस्ट में शामिल होने से बचने में कामयाब रहा क्योंकि चीन, तुर्की और मलेशिया ने पाकिस्तान का समर्थन किया था.
  • वहीं चीन ने अनुच्छेद 370 को रद्द कराने के लिए तीन बार कोशिश की.
Last Updated :Jul 4, 2020, 3:11 PM IST
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