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70 साल की उम्र में बने यूनिवर्सिटी टॉपर, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद करेंगे सम्मानित

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Published : Sep 26, 2019, 8:38 PM IST

Updated : Oct 2, 2019, 3:37 AM IST

ईटीवी भारत से बात करते ब्रजकिशोर ठाकुर

पढ़ने की कोई उम्र नहीं होती, इस कहावत को सच कर दिखाया है 70 साल के सेवानिवृत्त शिक्षक ब्रजकिशोर ठाकुर ने. इन्होंने रांची विश्वविद्यालय के पीजी विभाग से न केवल ज्योतिष विज्ञान की पढ़ाई की बल्कि टॉपर भी बन गए. अब 30 सितंबर को दीक्षांत समारोह में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ब्रजकिशोर ठाकुर को सम्मानित करेंगे. जानें पूरा विवरण

रांची: पढ़ेंगे तभी तो बढ़ेंगे, इन चार शब्दों में इंसान की सफलता के तमाम मंत्र छिपे हुए हैं. इस मंत्र को साकार किया है रांची के टाटीसिल्वे में रहने वाले सेवानिवृत्त शिक्षक ब्रजकिशोर ठाकुर ने. जिस उम्र में लोग आराम की जिंदगी जीना चाहते हैं , उस पड़ाव पर आकर फिर से छात्र बनने की तमन्ना रखना, कोई छोटी बात नहीं है.

सेवानिवृत्ति के 7 साल बाद इन्होंने रांची विश्वविद्यालय के पीजी विभाग से ज्योतिष विज्ञान की पढ़ाई की और टॉपर भी बने. अब इनको 30 सितंबर को रांची विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह के दौरान भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद सम्मानित करेंगे.

ईटीवी भारत में सबसे पहले शिक्षक ब्रजकिशोर ठाकुर से बातचीत की. पहला सवाल यही था कि उम्र के इस पड़ाव पर ज्योतिष विज्ञान में पोस्ट ग्रेजुएट करने के पीछे क्या वजह थी और युवाओं के बीच जब आप पढ़ाई करने पहुंचे तब कैसा अनुभव हुआ. उन्होंने कहा कि उन्होंने पोते की कुंडली बनवाई थी और उसी समय उनके जेहन में यह बात आई कि क्यों ना ज्योतिष विज्ञान को बारीकी से समझा जाए.

ईटीवी भारत से बात करते ब्रजकिशोर ठाकुर

इसके पीछे उन्होंने तर्क दिया कि वह चुकी गणित और फिजिक्स के टीचर रहे हैं इसलिए ज्योतिष विज्ञान को समझने में उन्हें सहूलियत होगी. जब रांची विश्वविद्यालय के पीजी विभाग में पहुंचे तो अपने बेटे की उम्र के छात्रों के साथ तालमेल बनाने में इन्हें कोई दिक्कत नहीं आई.

साल 2010 में हुए थे सेवानिवृत्त

उन्होंने कहा कि शिक्षक बनने के बाद 1977 में इनकी पहली पोस्टिंग उस वक्त के रांची जिले में मौजूद घाघरा के एसएस हाई स्कूल में हुई थी. 1985 में जब गुमला जिला बना तब यह स्कूल गुमला जिले में चला गया. मास्टर साहब ने बताया कि उस दौर में आदिवासियों के बच्चों को स्कूल तक लाने के लिए यह खुद गांव-गांव घूमा करते थे. फिर 1995 में इनका ट्रांसफर रांची के टाटीसिल्वे स्थित राज्यकीयकृत उच्च विद्यालय में हो गया. इस स्कूल में पढ़ाते हुए साल 2010 में सेवानिवृत्त हुए. मास्टर साहब ने बताया कि आज भी मैट्रिक के बच्चों को गणित और फिजिक्स पढ़ाने के लिए उन्हें समय-समय पर बुलाया जाता है.

ये भी पढ़ें- झारखंड में थल सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत, राष्ट्रपति निशान परेड में रहे मौजूद

खगड़िया के रहने वाले हैं ब्रजकिशोर ठाकुर
ब्रजकिशोर ठाकुर मूल रूप से बिहार के खगड़िया जिला स्थित परबत्ता थाना क्षेत्र के डुमरिया खुर्द गांव के रहने वाले हैं. बीएससी करने के बाद इन्हें शिक्षक की नौकरी मिल गई और 1977 में गुमला जिला के घाघरा में आ गए. इनके दो बेटे हैं जिनमें से बड़ा बेटा मुकेश ठाकुर ने घाघरा स्थित एसएस हाई स्कूल से ही मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की और आज रेलवे में नौकरी कर रहे हैं. वहीं इनके छोटे बेटे ने टाटीसिलवे स्थित सरकारी स्कूल से मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की और आज बीएसएफ में इंस्पेक्टर के पद पर तैनात हैं. ईटीवी भारत की टीम ने आज की शिक्षा व्यवस्था से लेकर गुरु शिष्य संबंध से जुड़े तमाम सवाल पूछे, जिसका इन्होंने खुलकर जवाब दिया.

ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि सीखने के लिए कोई उम्र सीमा नहीं होती. अगर इंसान ठान ले तो कुछ भी कर सकता है. इन्हें अब 30 सितंबर का इंतजार है जब राष्ट्रपति के हाथो सर्टिफिकेट मिलेगा. रांची विश्वविद्यालय का 33वां दीक्षांत समारोह 30 सितंबर को होगा. इस समारोह में राष्ट्रपित रामनाथ कोविंद स्नातक और परास्नातक विभागों के 46 टॉपरों को 56 गोल्ड मेडल देंगे. खास बात ये है कि इन टॉपरों में 45 छात्राएं हैं.

Intro:मिलिए एक ऐसे मास्टर साहब से जिन्होंने रिटायरमेंट के 7 साल बाद कुछ ऐसा किया कि उन्हें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद करेंगे सम्मानित


रांची

पढ़ेंगे तभी तो बढ़ेंगे. इन चार शब्दों में इंसान की सफलता के तमाम मंत्र छिपे हुए हैं. इस मंत्र को साकार किया रांची के टाटीसिल्वे में रहने वाले सेवानिवृत्त शिक्षक ब्रज किशोर ठाकुर ने. जिस उम्र में लोग आराम की जिंदगी जीना चाहते हैं , उस पड़ाव पर आकर फिर से छात्र बनने की तमन्ना रखना, कोई छोटी बात नहीं है. सेवानिवृत्ति के 7 साल बाद इन्होंने रांची विश्वविद्यालय के पीछे विभाग से ज्योतिष विज्ञान की पढ़ाई की और टॉपर भी बने. अब इनको 30 सितंबर को रांची विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह के दौरान भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद सम्मानित करेंगे. ईटीवी भारत में सबसे पहले शिक्षक ब्रजकिशोर ठाकुर से बातचीत की. पहला सवाल यही था कि उम्र के इस पड़ाव पर ज्योतिष विज्ञान में पोस्ट ग्रेजुएट करने के पीछे क्या वजह थी और युवाओं के बीच जब आप पढ़ाई करने पहुंचे तब कैसा अनुभव हुआ. उन्होंने कहा कि उन्होंने पोते की कुंडली बनवाई थी और उसी समय उनके जेहन में यह बात आई कि क्यों ना ज्योतिष विज्ञान को बारीकी से समझा जाए. इसके पीछे उन्होंने तर्क दिया कि वह चुकी गणित और फिजिक्स के टीचर रहे हैं इसलिए ज्योतिष विज्ञान को समझने में उन्हें सहूलियत होगी. जब रांची विश्वविद्यालय के पीजी विभाग में पहुंचे तो अपने बेटे की उम्र के छात्रों के साथ तालमेल बनाने में इन्हें कोई दिक्कत नहीं आई. उन्होंने कहा कि शिक्षक बनने के बाद 1977 में इनकी पहली पोस्टिंग उस वक्त के रांची जिले में मौजूद घाघरा के एसएस हाई स्कूल में हुई थी. 1985 में जब गुमला जिला बना तब यह स्कूल गुमला जिले में चला गया. मास्टर साहब ने बताया कि उस दौर में आदिवासियों के बच्चों को स्कूल तक लाने के लिए यह खुद गांव-गांव घूमा करते थे. फिर 1995 में इनका ट्रांसफर रांची के टाटीसिल्वे स्थित राज्यकीयकृत उच्च विद्यालय में हो गया. इस स्कूल में पढ़ाते हुए साल 2010 में सेवानिवृत्त हुए. मास्टर साहब ने बताया कि आज भी मैट्रिक के बच्चों को गणित और फिजिक्स पढ़ाने के लिए उन्हें समय-समय पर बुलाया जाता है.

बृज किशोर ठाकुर जी मूल रूप से बिहार के खगड़िया जिला स्थित परबत्ता थाना क्षेत्र के डुमरिया खुर्द गांव के रहने वाले हैं. बीएससी करने के बाद इन्हें शिक्षक की नौकरी मिल गई और 1977 में गुमला जिला के घाघरा में आ गए. Body:इनके दो बेटे हैं जिनमें से बड़ा बेटा मुकेश ठाकुर ने घाघरा स्थित एसएस हाई स्कूल से ही मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की और आज रेलवे में नौकरी कर रहे हैं. वही इनके छोटे बेटे ने टाटीसिलवे स्थित सरकारी स्कूल से मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की और आज बीएसएफ में इंस्पेक्टर के पद पर तैनात हैं. ईटीवी भारत की टीम ने आज की शिक्षा व्यवस्था से लेकर गुरु शिष्य संबंध से जुड़े तमाम सवाल पूछे, जिसका इन्होंने खुलकर जवाब दिया.

Conclusion:बेहद रोमांचित है मास्टर साहब

ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि सीखने के लिए कोई उम्र सीमा नहीं होती. अगर इंसान ठान ले तो कुछ भी कर सकता है. इन्हें अब 30 सितंबर का इंतजार है जब राष्ट्रपति के हाथो सर्टिफिकेट मिलेगा. मास्टर साहब ने बताया कि एक शिक्षक के नाते यह उपलब्धि मेरे लिए बहुत मायने रखती है लेकिन मैं इस बात से बेहद रोमांचित हूं कि मुझे राष्ट्रपति के हाथों सम्मान मिलेगा.
Last Updated :Oct 2, 2019, 3:37 AM IST
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