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आंध्र प्रदेश के कुर्मा गांव में आज भी प्राचीन वैदिक वर्णाश्रम प्रथाओं का होता है पालन

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Published : Dec 17, 2022, 6:15 PM IST

Updated : Dec 17, 2022, 7:11 PM IST

आधुनिकता के इस दौर में आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले का कुर्मा गांव आज भी बिजली और स्मार्टफोन से संचालित किसी भी सुविधा का उपयोग किए बिना ग्रामीण प्राकृतिक परिवेश में सभी काम करते हैं. इतना ही नहीं यहां प्राचीन वैदिक वर्णाश्रम प्रथाओं का पालन किया जाता है.पढ़िए पूरी रिपोर्ट...

Ancient Vedic Varnashram practice of Kurma village
कुर्मा गांव की प्राचीन वैदिक वर्णाश्रम प्रथा

एक रिपोर्ट

अमरावती : आधुनिकता के इस दौर में आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले का कुर्मा गांव आज भी बिजली और स्मार्टफोन से संचालित किसी भी सुविधा का उपयोग किए बिना ग्रामीण प्राकृतिक परिवेश में सभी काम करते हैं. इतना ही नहीं यहां के लोगों ने अपने आपको प्रकृति के मुताबिक न केवल अपने आप को ढाल लिया है जिससे वे उसी के अनुसार काम करते हैं. एक तरफ जहां खासकर स्मार्टफोन उपलब्ध होने के बाद मनुष्य का जीवन बदल गया है लेकिन यहां पर स्मार्टफोन ही नहीं अन्य आधुनिक सुविधाओं का उपयोग नहीं किया जाता है. इस गांव की खासियत है कि यहां पर बिजली नहीं है और न ही यहां सीमेंट और लोहे का उपयोग इमारतों को बनाने के लिए नहीं किया जाता है.

यहां पर शिक्षा के लिए शुल्क नहीं लिया जाता है. एक तरफ लोग उच्च अध्ययन और बड़ी नौकरियों के साथ एक समृद्ध जीवन जीते हैं और वे सोचते हैं कि यह जीवन का अंतिम अर्थ नहीं है. इससे इतर परमात्मा तक पहुंचने के लिए विकास के तरीके के रूप में वे धार्मिक जीवन जीते हैं. इस गांव में लोग आज भी पुराने तरीकों का पालन कर एक अलग रास्ते पर चल रहे हैं. इस गांव को एक ऐसे गांव के रूप में पहचाना जाता है जो अभी भी प्राचीन वैदिक वर्णाश्रम प्रथाओं के अनुसार संचालित होता है.

लोग प्राचीन भारतीय प्रथाओं का करते हैं पालन - इस गांव में लोग प्राचीन भारतीय प्रथाओं और गुरुकुल के जीवन की तरह जीवन व्यतीत करते हैं. यहां पर 200 साल पुराना भारतीय ग्रामीण जीवन, परंपराएं, प्रथाएं, खान-पान, पहनावा और पेशा कुर्मा गांव को खास बना देते हैं. इस गांव की स्थापना जुलाई 2018 में भक्ति वेदांत स्वामी प्रभुपाद, अंतरराष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ के संस्थापक और उनके शिष्यों द्वारा की गई थी. चंद लोगों से शुरू हुए इस गांव में अब 12 परिवार, 16 गुरुकुल के छात्र और छह ब्रह्मचारियों सहित 56 लोग हैं. गांव के लोग दुनिया को वापस सनातन धर्म की ओर मोड़ने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं क्योंकि ब्रिटिश शासन के तहत भारतीय वर्णाश्रम प्रणाली अस्त-व्यस्त हो गई थी और इस उद्देश्य के लिए अभियान और सेवा कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं.

मिट्टी से बने घर या झोपड़ी में रहते हैं लोग- एक तरफ आधुनिकता के दौर में आदमी जहां मशीन की तरह काम करने से बीमार पड़ जाता है. लेकिन यहां के लोग प्रकृति के साथ जीवन यापन करते हुए खुश रहते हैं. इतना ही नहीं गांव के सभी लोग धनी परिवारों में पैदा होने के साथ ही उच्च शिक्षा हासिल करने के साथ लाखों में वेतन वाली कंपनियों में काम किया है. लेकिन मशीनी जिंदगी से ऊब कर वे सब कुछ पीछे छोड़कर प्राकृतिक वातावरण अपने परिवार के साथ कुर्मा गांव में रहते हैं. इन ग्रामीणों का कहना है कि मिट्टी से बने घर या छोटी सी झोपड़ी में रहने से जो खुशी होती है वह कार और बंगले से मिलने वाली खुशी से अधिक होती है.

फसल के साथ सब्जी भी उगाते हैं ग्रामीण- न केवल देश के विभिन्न राज्यों से बल्कि अन्य देशों से भी अपने परिवारों को छोड़कर कई लोग भगवान की सेवा के लिए कुर्मा गांव आ रहे हैं. सादा जीवन उच्च विचार इस गांव वालों की विशेषता है. यह सिद्ध करते हुए कि ऊन और कपड़ा जैसी आवश्यक सामग्री प्रकृति से प्राप्त की जा सकती है, ये प्राकृतिक खेती से ही प्राप्त होती हैं. इसीक्रम में इस साल सभी ग्रामीणों ने मिलकर 198 बोरी अनाज की फसल ली और पर्याप्त मात्रा में सब्जियां भी उगाई जा रही हैं. गांव में बीज बोने से लेकर कटाई तक वे दूसरों पर निर्भर नहीं हैं. फलस्वरूप वे रसायन मुक्त खेती से अपनी मनपसंद सब्जियां उगाने के साथ पशुपालन भी करते हैं.

घर को रेत, चूना, गुड़, तूर दाल, करेला और मेथी को पुराने तरीके से मिलाकर बनाते हैं- इतना ही नहीं गांव में पके फल और चावल खाए जाते हैं, साथ ही यहां के लोग अपने कपड़े के लिए बुनकर और घर बनाने के लिए राजमिस्त्री तक बन जाते हैं. यहां की विशेषता है कि यहां पर घर को रेत, चूना, गुड़, तूर दाल, करेला और मेथी को पुराने तरीके से मिलाकर बनाया जाता है. निर्माण में सीमेंट या लोहे का प्रयोग नहीं किया गया है. वहीं ग्रामीण केसर के रस से कपड़े धोते हैं.

छात्र तेलुगु, संस्कृत, अंग्रेजी और हिंदी धाराप्रवाह बोलते हैं - कुर्मा गांव में शिक्षा वर्णाश्रम व्यवस्था के तहत है. यहां छात्र तेलुगु, संस्कृत, अंग्रेजी और हिंदी धाराप्रवाह बोलते हैं. इस आश्रम में दैनिक दिनचर्या सुबह 4:30 बजे देवता की आरती के साथ शुरू हो जाती है. प्रात:काल भजन और प्रसाद ग्रहण करने के बाद वे अपने दैनिक कार्यों में लग जाते हैं. वहीं ग्रामीण कृषि, गृह निर्माण और धर्म प्रचार में शामिल हो जाते हैं. शाम को आध्यात्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. गांव में गुरुकुल में पढ़ने वाले छात्रों को मुफ्त शिक्षा के अलावा सभी विज्ञान, वैदिक शास्त्र आधारित शिक्षा प्रणाली, आत्मसंयम का अनुशासन, सदाचार, विज्ञान के अध्ययन के साथ-साथ कृषि, हस्तकला, ​​माता-पिता और गुरु की सेवा भी सिखाई जाती है.

अन्य क्षेत्रों के बहुत से लोग जो कर्मा गांव के बारे में जानने के लिए आए थे और यहां आते हैं और लोगों द्वारा अपनाई जाने वाली प्रथाओं को सीखते हैं. हर दिन सैकड़ों लोग कुर्मा गांव में आते हैं, जो एक प्राचीन ग्रामीण वातावरण और आध्यात्मिक विचार से मिश्रित है. ग्रामीणों का कहना है कि बिजली होगी तो सुविधाएं भी बढ़ेंगी और उसके लिए पैसे की जरूरत होगी, जिससे जीवन मशीनी हो जाएगा और लोग भी मशीनी हो जाएंगे. यह गांव दिखाता है किहमारे पूर्वज क्या थे और आज के जीवन और तब के जीवन के तरीके में क्या अंतर है.

मौजूदा तकनीक में लोग और युवा व्हाट्सएप, लैपटॉप और फोन के साथ समय बिता रहे हैं. इस वर्तमान समाज में हमारे पूर्वजों जैसा होना कठिन प्रतीत होता है. लेकिन यहां आने के बाद काफी शांति और खुशी मिलती है. इस्कॉन लोगों को यह विश्वास दिलाना चाहता था कि ईश्वर केवल तकनीक के बारे में नहीं है, यह प्रकृति और बहुत कुछ के बारे में है.

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Last Updated : Dec 17, 2022, 7:11 PM IST
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