इलाहाबाद हाईकोर्ट की टिप्पणी, गाय को किसी धर्म से न जोड़ें, राष्ट्रीय पशु घोषित करें

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Published : Sep 1, 2021, 7:34 PM IST

Updated : Sep 2, 2021, 8:46 AM IST

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गोवध संरक्षण अधिनियम से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गंभीर टिप्पणी की है. हाईकोर्ट ने आरोपी की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि गाय का संरक्षण करना सभी की जिम्मेदारी है. गाय का सांस्कृतिक महत्व है और इसकी पूजा की जानी चाहिए, तभी देश समृद्ध होगा. हाईकोर्ट ने गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने की भी वकालत की है.

प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि गाय को सिर्फ धार्मिक नजरिए से नहीं देखना चाहिए. संस्कृति की रक्षा हर नागरिक को करनी चाहिए. कोर्ट ने टिप्पणी की है कि गाय को राष्ट्रीय पशु का दर्जा दिया जाना चाहिए और इसके लिए संसद में बिल लाना चाहिए.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि गाय की पूजा होगी तभी देश समृद्ध होगा. बता दें कि बुधवार को जावेद नाम के शख्स की याचिका को खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने ये गंभीर टिप्पणी की है. जावेद पर गोहत्या रोकथाम अधिनियम की धारा 3, 5 और 8 के तहत केस दर्ज है. कोर्ट ने याचिकाकर्ता की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि गोरक्षा सिर्फ किसी एक धर्म की जिम्मेदारी नहीं है. गाय इस देश की संस्कृति है और इसकी सुरक्षा करना सभी की जिम्मेदारी है.

हाईकोर्ट ने पहले भी जताई थी चिंता

इससे पहले 26 अक्टूबर, 2020 को भी इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गोवध संरक्षण कानून को लेकर अहम टिप्पणी की थी. हाईकोर्ट ने कानून के दुरुपयोग करने और बेसहारा जानवरों की देखभाल की स्थिति पर चिंता जताई थी. न्यायमूर्ति सिद्धार्थ ने गोवध कानून के तहत जेल में बंद रामू उर्फ रहीमुद्दीन के जमानत प्रार्थनापत्र पर सुनवाई के बाद अपने आदेश में चिंता जाहिर की थी. कोर्ट ने याची की जमानत मंजूर करते हुए उसे निर्धारित प्रक्रिया पूरी कर रिहा करने का आदेश दिया है. रामू के जमानत प्रार्थनापत्र में कहा गया था कि प्राथमिकी में याची के खिलाफ कोई विशेष आरोप नहीं है और न ही वह घटनास्थल से पकड़ा गया है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि मांस बरामद होने पर फोरेंसिक लैब में जांच कराए बगैर उसे गोमांस बताकर निर्दोष व्यक्तियों को जेल भेजा जाता है. कोर्ट ने कहा कि प्रदेश में गोवध अधिनियम को सही भावना के साथ लागू करने की जरूरत है. रामू के जमानत प्रार्थनापत्र में कहा गया था कि प्राथमिकी में याची के खिलाफ कोई विशेष आरोप नहीं है. न ही वह घटनास्थल से पकड़ा गया है.

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पुलिस ने बरामद मांस की वास्तविकता जानने का कोई प्रयास नहीं किया कि वह गाय का मांस ही है या किसी अन्य जानवर का. इसके अलावा, पुलिस ने बरामद मांस की वास्तविकता जानने का भी कोई प्रयास नहीं किया कि वह गो मांस ही है या किसी अन्य जानवर का. कोर्ट ने कहा कि ज्यादातर मामलों में जब मांस पकड़ा जाता है तो उसे गो मांस बता दिया जाता है. उसे फोरेंसिंक लैब नहीं भेजा जाता और आरोपी को उस अपराध में जेल जाना होता है जिसमें सात साल तक की सजा है और विचारण प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट की अदालत में होता है.

वहीं, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को एक बड़ा सुझाव दिया है. कोर्ट ने कहा कि गाय को राष्ट्रीय पशु का दर्जा दिया जाना चाहिए और इसके लिए संसद में बिल लाना चाहिए. कोर्ट ने यह भी कहा कि गाय की पूजा होगी तभी देश समृद्ध होगा. हाईकोर्ट के इस सुझाव का भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने स्वागत किया है. उन्होंने कहा कि गाय महत्वपूर्ण है, भारत के संविधान ने अनुच्छेद 48 में राज्य के नीति निदेशक तत्व के रूप में इस बात को उपबंध किया है कि राज्य सरकार गौ संवर्धन के लिए कानून बनाए और गायों की हत्या किए जाने पर कठोरता से कानून बनाया जाए.

राकेश त्रिपाठी

राकेश त्रिपाठी ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार ने अवैध स्लॉटर हाउस को बंद कराने का काम किया है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सरकार में आते ही सबसे पहले अवैध स्लॉटर हॉउस के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की थी. उन्होंने कहा कि आज उत्तर प्रदेश में गायों के संवर्धन के लिए तमाम तरह के नियम बनाए गए हैं, गौशाला बनाई गई हैं, जो तमाम अवैध जमीन भू माफियाओं के कब्जे में थीं, उसे मुक्त कराकर बड़े पैमाने पर गौशाला बनाने का काम किया गया है. हाईकोर्ट का यह निर्णय बहुत ही सराहनीय है और सरकार इस निर्णय के अधीन बहुत पहले से ही गो संवर्धन के लिए कई तरह के प्रयास कर रही है.

बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वैदिक, पौराणिक, सांस्कृतिक महत्व और सामाजिक उपयोगिता को देखते हुए गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने का सुझाव केंद्र सरकार को दिया है. कोर्ट ने कहा कि भारत में गाय को माता मानते हैं. यह हिंदुओं की आस्था का का विषय है. आस्था पर चोट करने से देश कमजोर होता है. हाईकोर्ट ने सुझाव देते हुए यह भी कहा कि जीभ के स्वाद के लिए जीवन छीनने का अधिकार नहीं है.

कोर्ट ने कहा गो मांस खाना किसी का मौलिक अधिकार नहीं है. जीभ के स्वाद के लिए जीवन का अधिकार नहीं छीना जा सकता. बूढ़ी बीमार गाय भी कृषि के लिए उपयोगी है. इसकी हत्या की इजाजत देना ठीक नहीं है. गाय भारतीय कृषि की रीढ़ है. कोर्ट ने कहा पूरे विश्व में भारत ही एक मात्र ऐसा देश है, जहां सभी संप्रदायों के लोग रहते हैं. सबकी पूजा पद्धति भले ही अलग हो, लेकिन सोच सभी की एक है. सब एक दूसरे के धर्म का आदर करते हैं. कोर्ट ने कहा गाय को मारने वाले को छोड़ा तो वह फिर अपराध करेगा. जावेद की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा 29 में से 24 राज्यों में गोवध प्रतिबंधित है. एक गाय जीवन काल में 410 से 440 लोगों का भोजन जुटाती है और गोमांस से केवल 80 लोगों का पेट भरता है.

गोवध को रोकने के लिए इतिहास में किए गए प्रयासों के बारे में बताते हुए कहा कि महाराजा रणजीत सिंह ने गो हत्या पर मृत्यु दण्ड देने का आदेश दिया था. इतना ही नहीं इतिहास में कई मुस्लिम और हिंदू राजाओं ने गोवध पर रोक लगाई थी. गाय का मल-मूत्र असाध्य रोगों में लाभकारी है. गाय की महिमा का वेदों पुराणों में भी बखान किया गया है. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कवि रसखान की रचनाओं को भी कोट किया. कोर्ट ने कहा कि रसखान के कहा था कि जन्म मिले तो नंद के गायों के बीच मिले. गाय की चर्बी को लेकर मंगल पाण्डेय ने क्रांति की थी. संविधान में भी गो संरक्षण पर बल दिया गया है. यह टिप्पणी करते हुए बुधवार को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने गाय काटने के एक आरोपी व्यक्ति जावेद की जमानत याचिका को रद्द कर दिया. यह आदेश न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव ने दिया है. अर्जी पर शासकीय अधिवक्ता एस के पाल र ए जी ए मिथिलेश कुमार ने प्रतिवाद किया.

बता दें कि याची जावेद पर साथियों के साथ खिलेंद्र सिंह की गाय चुराकर जंगल में अन्य गायों सहित मारकर मांस इकट्ठा करते टार्च की रोशनी में देखे जाने का आरोप है. इस आरोप में वह 8 मार्च 2021 से जेल में बंद है. शिकायतकर्ता ने सिर देखकर अपनी गाय की पहचान की थी. मौके पर आरोपी मोटरसाइकिल छोड़ कर भाग गए थे.

65 साल पुराना कानून बदला गया

इससे पहले वर्ष 2020 में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार ने गोवंश संरक्षण को लेकर कानून बनाया था. जून, 2020 में राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने उत्तर प्रदेश गोवध निवारण (संशोधन) अध्यादेश को मंजूरी दे दी थी. इसी के साथ ही यूपी में गोहत्या व गोवंश को शारीरिक नुकसान पहुंचाने पर कठोर सजा वाले प्रावधान लागू हो गए हैं. 2017 में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के साथ ही गौ-रक्षकों में एक उम्मीद जगी थी.

इधर योगी भी पिछले तीन साल से इसे रफ्तार देने में जुटे थे. वर्ष 2017 विधानसभा चुनाव में विपक्ष के इस आरोप को कि सत्ता में बैठे लोग सिर्फ गाय पर राजनीति करते हैं को गंभीरता से लिया और पिछले तीन साल में गोवंश को लेकर सरकार की ओर से उठाए गए कदमों से विपक्ष का मुंह बंद कर दिया है. बता दें कि पिछले तीन सालों में मुख्यमंत्री योगी ने गोकशी, गो संरक्षण, भूसा बैंक, गोसेवा जैसे तमाम मुद्दों पर आधारभूत काम किया है.

मुख्यमंत्री कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार योगी सरकार ने अब तक प्रदेश के 5,02,395 गोवंश की जियो टैगिंग कराई है. प्रदेश में 5062 गोसंरक्षण केंद्र-स्थल को संचालित कर 4,96,269 निराश्रित गोवंश संरक्षित किए गए है. यही नहीं गायों के संरक्षण के लिए प्रदेश की योगी सरकार ने शराब और राज्य के टोल पर 0.5 फीसदी का अतिरिक्त सेस लगाया.

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सरकार ने बेसहारा गौवंश की समस्या के समाधान के लिए प्रदेश के प्रत्येक जनपद में वृहद गौ संरक्षण केंद्र भी बनाया है. यही नहीं सरकार ने गौशालाओं की ऑनलाइन पंजीकरण की व्यवस्था भी की. सरकार ने सत्ता में आते ही अवैध बूचड़खानों को बंद करने के भी निर्देश दिए थे. प्रदेश में अब तक 3228 भूसा बैंक स्थापित किए गए हैं. वहीं, जनवरी 2020 से अब तक गोकशी में कुल 1324 मुकदमे दर्ज हुए है.

Last Updated :Sep 2, 2021, 8:46 AM IST
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