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इस्लामिक स्टेट के हिमायती दो साहित्यकारों की किताबें AMU ने कोर्स से हटाई

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Published : Aug 1, 2022, 4:32 PM IST

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (Aligarh Muslim University) प्रशासन ने इस्लामिक स्टेट के दो हिमायती साहित्यकारों (Muslim State two litterateurs) की किताबों को कोर्स से हटा दिया गया है.

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अलीगढ़: अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (Aligarh Muslim University) ने इस्लामिक स्टेट के हिमायती दो लेखकों की किताबें कोर्स से हटा दी हैं. इस्लामिक स्टडीज विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर इस्माइल ने बताया कि लेखक मौलाना अब्दुल आला मौदूदी और लेखक सैयद कुतुब ने इस्लामिक स्टेट का समर्थन किया था. इसलिए उनकी किताबों को सभी कोर्सों से हटाया गया है.

अलीगढ़ विश्वविद्यालय प्रशासन ने यह निर्णय सामाजिक कार्यकर्ता मधु किश्वर सहित 20 से ज्यादा शिक्षाविदों के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखे जाने के बाद लिया गया है. शिक्षाविदों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 27 जुलाई को पत्र लिखा था. जिसमें लिखा गया था कि एएमयू, जामिया मिलिया इस्लामिया और हमदर्द यूनिवर्सिटी सहित राज्य के वित्त पोषित कई विश्वविद्यालयों में इन लेखकों की किताबें पढ़ाई जा रही है. पत्र में पाकिस्तान के कट्टर इस्लामिक प्रचारक और जमात-ए-इस्लामी के संस्थापक मौलाना अबुल आला मौदूदी की किताबों के पढ़ाए जाने पर सवाल उठाया गया था. शिक्षाविदों ने पत्र में कहा कि हिंदू समाज संस्कृति और सभ्यता पर लगातार हो रहे हमले ऐसे ही पाठ्यक्रम के प्रत्यक्ष के परिणाम हैं.

शिक्षाविदों ने पत्र में इस बात का भी जिक्र किया है कि पाकिस्तानी लेखक अबुल आला मौदूदी हर जगह गैर मुसलमानों के नरसंहार की बात करते हैं. उनकी शिक्षाएं गैर मुस्लिम विरोधी है. साथ ही पूर्व पूर्ण इस्लामीकरण के लिए प्रतिबद्ध है. कई आतंकी संगठन भी मौजूदी के विचारों को अपना आदर्श बताते हैं. AMU के इस्लामिक स्टडीज विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर मोहम्मद इस्माइल का कहना है, कि बोर्ड की बैठक के बाद मौदूदी और सैयद कुतुब लेखकों की सभी किताबें सिलेबस से हटा दी गई हैं. उन्होंने बताया कि BA और MA में अब तक पढ़ाई जा रही इनकी किताबों में आपत्तिजनक कुछ नहीं लिखा है. इन लेखकों की किताबें लंबे समय से एएमयू में पढ़ाई जा रही थी. दो लेखकों ने कुरान की रोशनी में इस्लामिक स्टेट की बात कही है. वह भी लोकतंत्र से जुड़ा हुआ है. वहीं, सऊदी अरब ने भी दोनों लेखकों की किताबों को प्रतिबंधित किया हुआ है. क्योंकि उनकी किताबों में लोकतंत्र की बात कही गई है.

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बता दें कि मौलाना अबुल आला मौदूदी का जन्म 1930 में हैदराबाद में हुआ था. इन्हें जमात ए इस्लामी हिंद के संस्थापकों के रूप में जाना जाता है. 1942 से 1967 तक की अवधि में पाकिस्तान की अनेक जेलों में रहे थे. वहीं, 1953 में उनकी किताब कादियानी मसला को आधार बनाकर फौजी अदालत ने उन्हें फांसी की सजा सुनाई. जो बाद में आजीवन कारावास में तब्दील हुई. मौदूदी ने 100 से अधिक किताबें लिखी हैं. जो कि 40 देशों की भाषाओं में ट्रांसलेट की गई है. 1979 में न्यूयॉर्क में मौदूदी की मृत्यु हो गई थी.

वहीं, सैयद कुतुब मिस्र के रहने वाले थे और सन 1906 में पैदा हुए थे. उन्हें सलाफी जिहादवाद का पिता माना जाता है. इन्होंने भी 40 से अधिक किताबें लिखी हैं. जिसमें सामाजिक न्याय और माली मफाई अल तारीख और कुरान की छाया में चर्चित प्रमुख किताबें रही हैं. 1966 में मिस्र के राष्ट्रपति जमाल अब्दुल नासिर की हत्या की साजिश रचने का दोषी ठहराया गया और उसी मामले में उन्हें फांसी की सजा दी गई .

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