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मां की ममता: एचआईवी पीड़ित 34 महिलाओं ने दिया स्वस्थ बच्चों को जन्म

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Published : Nov 28, 2020, 9:29 AM IST

एचआईवी पीड़ित ने दिया बच्चों को जन्म
एचआईवी पीड़ित ने दिया बच्चों को जन्म

मध्य प्रदेश के जबलपुर लेडी एल्गिन अस्पताल में बीते दिनों एचआईवी पॉजिटिव 34 महिलाओं ने स्वास्थ बच्चों को जन्म दिया, जो एचआइवी से पूरी तरह सुरक्षित हैं. जहां चिकित्सकों व कर्मचारियों ने जान जोखिम में डालकर एचआईवी संक्रमित महिलाओं का प्रसव कराया.

भोपाल : लाइलाज एचआईवी संक्रमण गर्भ में पल रहे शिशुओं का बाल भी बांका नहीं कर पाया. जबलपुर के लेडी एल्गिन अस्पताल में बीते दिनों एचआईवी पॉजिटिव 34 महिलाओं ने स्वास्थ बच्चों को जन्म दिया, जो एचआईवी से पूरी तरह सुरक्षित हैं. जहां चिकित्सकों व कर्मचारियों ने जान जोखिम में डालकर एचआईवी संक्रमित महिलाओं का प्रसव कराया. कुछ महिलाओं ने सीजेरियन प्रसव (ऑपरेशन) से शिशुओं को जन्म दिया. दरअसल बीते 46 माह में एल्गिन अस्पताल में करीब 135 एचआइवी संक्रमित महिलाएं चिन्हित की गईं. इनमें 34 पहले से एचआइवी की चपेट में थीं.

एचआईवी पीड़ित 34 महिलाओं ने दिया स्वस्थ बच्चे को जन्म

सीजेरियन में जोखिम, दवाओं का सहारा

लेडी अस्पताल में पदस्थ डॉक्टर संजय मिश्रा बताते हैं कि गर्भ में पल रहे बच्चे को एचआईवी संक्रमण का खतरा तब तक नहीं रहता, जब तक कि वह अपनी मां के खून के संपर्क में न आएं. इसलिए जन्म के तुरंत बाद एचआईवी से बचाव के लिए मां को उपयोगी दवाई भी पिलाई गईं. चिकित्सकों के मुताबिक गर्भावस्था के समय एचआईवी संक्रमण महिलाओं की समय-समय पर जांच व उपचार किया जाता है, पर प्रसव के दौरान जोखिम और भी बढ़ जाता है. सिजेरियन प्रसव के समय अधिक सावधानी रखनी पड़ती है. कई बार तो ऐसा भी हुआ है कि जब एचआईवी संक्रमित महिला का ऑपरेशन करने वाले चिकित्सक खतरे में पड़ गए, ऐसे मामलों में चिकित्सकों को वायरस से छुटकारा पाने के लिए दवाइयों का सेवन भी करना पड़ता है.

परीक्षण केंद्र
परीक्षण केंद्र

HIV पीड़ित महिलाओं की होती है बार-बार काउंसलिंग

लेडी एल्गिन अस्पताल जबलपुर में एचआईवी संक्रमित महिलाओं को समझाइश देने के लिए चिकित्सक भी मौजूद रहते हैं, जो कि गर्भवती महिलाओं को इस लाइलाज बीमारी से लड़ने और जीतने के लिए मोटिवेट करते हैं.

जन्म के तुरंत बाद से 45 दिन तक दवा

चिकित्सकों का कहना है कि गर्भ में पल रहे शिशुओं को एचआईवी संक्रमण का खतरा नहीं रहता है. गर्भस्थ शिशु प्लेसेंटा के जरिए मां से जुड़ा रहता है. जिसके चलते एचआइवी वायरस उस तक नहीं पहुंच पाता है, लेकिन प्रसव के दौरान खून के संपर्क में आने से संभवित खतरा बना रहता है, इसलिए जन्म के तुरंत बाद एचआइवी संक्रमण से बचाव में उपयोगी दवा उन्हें पिलाई जाती है. इस दवा की एक खुराक शिशु को 45 दिन तक नियमित रूप से दी जाती है.

कोरोना के कारण कम हो पाई जांचें

सुरक्षित मातृत्व कार्यक्रम के सहारे मातृ व शिशु मृत्यु दर प्रभावी रोकथाम के प्रयास किए जा रहे हैं. गर्भवती महिलाओं को पंजीकृत कर प्रसव और उसके बाद तक देखभाल की जाती है. उन्हें पोषण आहार दिया जाता है, ताकी बच्चा कुपोषित न हो. उनकी एचआइवी जांच कराई जाती है. कोरोना के कारण योजना प्रभावित हुई है. साल बीतने की कगार पर है सिर्फ 5 हजार 560 गर्भवती महिलाओं की एचआईवी जांच हो पाई है. एचआइवी संक्रमित महिलाओं के उपचार व प्रसव की दिशाा में एल्गिन अस्पताल में बेहतर कार्य किए गए. एचआइवी संक्रमित मां से जन्मे बच्चों को 45 दिन नियमित दवा की खुराक देकर संक्रमण से बचाया जाता है.

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