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सिगरेट-गुटखा और खैनी के कारण 13 लाख लोग हर साल मरते हैं, सरकार तंबाकू पर ही बैन क्यों नहीं लगाती ?

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Published : Oct 29, 2021, 3:50 PM IST

एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में करीब 27.5 करोड़ लोग तंबाकू का सेवन करते हैं. हर साल करीब 5 लाख लोग मुंह के कैंसर का शिकार होते हैं. औसतन13 लाख भारतीय टोबैको से होने वाली बीमारियों को कारण मौत के मुंह में चले जाते हैं. देश के अरबों रुपये इसके इलाज में खर्च हो जाते हैं. देश के सभी राज्यों में गुटखा पर प्रतिबंध लगाया गया है. मगर सरकार तंबाकू के उत्पादन पर ही रोक क्यों नहीं लगाती है ?

ban on tobacco product
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हैदराबाद : मुंबई में शाहिद आजमी मर्डर केस में एक गवाह कोर्ट में पान मसाला खाकर आ गया. जब उससे वकीलों ने जिरह शुरू की तो वह साफ तौर से बोल नहीं पाया. इससे नाराज कोर्ट ने उस पर सौ रुपये का जुर्माना लगा दिया. इससे पहले ऐसा वाकया अगस्त 2020 में दिखा था, जब सुप्रीम कोर्ट में एक मुकदमे के दौरान वकील गुटखा कर बहस करने लगे थे. इस पर सर्वोच्च अदालत ने कड़ी नाराजगी जाहिर की थी. देश के हर कोने में पान मसाला, गुटखा और पान से निकली पिचकारी दीवारों पर दिख जाती है.

पान मसाला और गुटखे की खपत का आलम यह है कि देश के 28 राज्यों और 3 केंद्रशासित प्रदेश में संघीय खाद्य सुरक्षा और विनियमन (निषेध) अधिनियम 2011 के तहत गुटखा निर्माण और बिक्री पर प्रतिबंध लगा है. सच यह है कि भारत में पान मसाला का बाजार 2020 में 45,585 करोड़ रुपये के मूल्य पर पहुंच गया. अगले 5 साल में यह 75000 करोड़ रुपये के आंकड़े को पार कर सकता है. दुकानों में गुटखा पान मसाला और तंबाकू के कॉम्बो पैक में बेचा जा रहा है.

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स्मोकलेस तंबाकू यानी गुटखा और खैनी वाले 70 फीसदी लोग भारत के हैं.

ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे इंडिया के अनुसार, 2016-17 तक भारत में व्यस्कों की 29 फीसद आबादी लोग तंबाकू प्रोडक्ट का उपयोग कर रही थी. इसमें से करीब 20 करोड़ लोग स्मोकलेस तंबाकू यानी खैनी, गुटखा, सुपारी जैसे उत्पाद चबा रहे हैं. हालांकि तंबाकू में सेवन सबसे बड़ा हिस्सा सिगरेट का है. लैंसेट जर्नल की रिपोर्ट 'ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज' भारत में 15 से 24 साल के 2 करोड़ युवा स्मोकिंग करते हैं.

बीएमसी मेडिसिन रिसर्च जर्नल के मुताबिक, धुआंरहित तंबाकू के प्रयोग से होने वाली बीमारियों के 70 प्रतिशत रोगी भारत में हैं. पाकिस्तान में इसमें 7 फीसदी और बांग्लादेश का 5 फीसदी का योगदान है. धुआंरहित तंबाकू यानी गुटखा और खैनी से मुंह और गले के कैंसर से 2017 में ही 90 हजार लोगों की मौत हो गई. इसके अलावा हर्ट डिजीज से से 2,58,000 लोगों की जान गई. रियेक्ट (रिसर्च एक्शन फॉर टोबैको कंट्रोल) के अनुसार भारत में हर साल लगभग13 लाख लोगों की मौत तंबाकू से होने वाली बीमारियों को कारण होती है. करीब 40 प्रतिशत मुंह के कैंसर कारण धुआं रहित तंबाकू का उपयोग ही है.

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सिगरेट दुनिया में सबसे अधिक खपत वाला तंबाकू प्रोडक्ट है.

टाटा मेमोरियल सेंटर के निदेशक आरए बडवे के अनुसार, भारत में सबसे ज्यादा मुंह के कैंसर के होते हैं. वर्ष 2020 में दुनिया में कैंसर के जितने केस आए, उसके एक तिहाई मरीज भारत में थे. भारत ने 2020 में मुंह के कैंसर के इलाज में 2,386 करोड़ रुपये खर्च किए. यह आंकड़े सरकारी और इंश्योरेंस कंपनी के खर्चों से मिले हैं. इसके अलावा बीमार के परिजनों ने जो रकम व्यक्तिगत तौर से खर्च की, उसका आंकड़ा उपलब्ध नहीं है.

हेल्थ स्टडी में यह सामने आया है कि तंबाकू से उपयोग गंभीर बीमारियां होती हैं तो सरकारें इसकी खेती और प्रोसेसिंग पर बैन क्यों नहीं लगाती है ? एसोचैम (ASSOCHAM) के मुताबिक, भारत में तकरीबन 4.57 करोड़ लोग तंबाकू उद्योग से जुड़े हैं. इसके अलावा देश में तकरीबन 60 लाख किसान तंबाकू की खेती करते हैं. इससे करीब दो करोड़ खेतिहर मजदूरों की आजीविका चलती है.

भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तंबाकू उत्पादक और निर्यातक है. वित्त वर्ष 2020 में तंबाकू और तंबाकू प्रोडक्ट का कुल निर्यात 904.87 मिलियन अमेरिकी डॉलर रहा. 2020 में वैश्विक तंबाकू बाजार का आकार 932.11 बिलियन अमरीकी डॉलर था और 2021 में 949.82 बिलियन अमरीकी डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है.

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तंबाकू उत्पादन में चीन और ब्राजील के बाद भारत विश्व में तीसरे नंबर पर है.

मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक, भारत सरकार सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पादों के उपयोग की उम्र सीमा 18 से बढाकर 21 वर्ष करने जा रही है. इसके लिए सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पाद (विज्ञापन और व्यापार और वाणिज्य, उत्पादन, आपूर्ति और वितरण निषेध) संशोधन अधिनियम, 2020 का मसौदा भी तैयार किया गया है.

सरकार सिगरेट पर मूल्य का करीब 52.7 फीसदी, बीड़ी पर 22 फीसदी और अन्य तंबाकू उत्पादों के लिए 63.8 फीसदी टैक्स वसूलती है. जनस्वास्थ्य समूह और डब्ल्यूएचओ ने तंबाकू प्रोडक्ट पर 75 फीसदी टैक्स लगाने की सिफारिश की है, ताकि इसके यूजर्स की तादाद कम हो. मगर सच यह है कि तंबाकू उत्पादों की खपत तभी कम होगी, जब लोग इससे खुद ही दूरी बनाएंगे.

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