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Quit India Movement Anniversary: इसलिए असफल हुआ भारत छोड़ो आंदोलन

भारत छोड़ो आंदोलन की वर्षगांठ (Quit India Movement Anniversary ) के मौके पर ईटीवी भारत आपको इस आंदोलन के शुरूआत के साथ-साथ इसके असफल होने के बारे में भी जानकारी दे (Quit India Movement)रहा.

Quit India Movement Anniversary
भारत छोड़ो आंदोलन
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Published : Aug 7, 2022, 6:24 PM IST

रायपुर: महात्मा गांधी ने 8 अगस्त 1942 को ब्रिटिश शासन को समाप्त (Quit India Movement Anniversary) करने अर्थात अंग्रेजों को देश के भगाने का आह्वान और मुंबई में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के सत्र दौरान भारत छोड़ो आंदोलन की शुरूआत की थी. गांधीजी ने क्रिप्स मिशन की विफलता के बाद, मुंबई के गोवालिया टैंक मैदान में दिए गए अपने भारत छोड़ो भाषण में "करो या मरो" का नारा दिया था. इस दिन देश स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि देकर, स्वतंत्रता संग्राम के दौरान शहीदों के सर्वोच्च बलिदानों को याद करता (Quit India Movement) है.

इसलिए शुरू किया गया भारत छोड़ो आंदोलन: मानव इतिहास में सदा ही जालिम और विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा किये गए दमन तथा अत्याचार का विरोध होता रहा है. जब-जब मानव का विरोध सफल हुआ, उसे स्वतंत्रता मिली. 1942 में होने वाला ‘भारत छोडो आंदोलन’ भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास में एक ऐसी ही महत्वपूर्ण राजनीतिक घटना है. समस्त देश में फैलने वाले इस आंदोलन ने अंग्रेजों को भारतीय राष्ट्रवाद की शक्ति का परिचय दिया.

यह भी पढ़ें: आजादी का अमृत महोत्सव: जब कंडेल सत्याग्रह में शामिल होने छत्तीसगढ़ आए थे महात्मा गांधी

ये थे आंदोलन के कारण:

  • क्रिप्स मिशन की विफलता से यह स्पष्ट हो गया था कि ब्रिटिश सर्कार द्वितीय विश्व युद्ध में भारतीयों की अनिच्छुक साझेदारी तो रखना चाहती थी, लेकिन किसी सम्मानजनक समझौते के लिए तैयार नहीं थी.नेहरू और गांधी भी जो इस फ़ासिस्ट-विरोधी युद्ध को किसी तरह कमजोर करना नहीं चाहते थे, इस निष्कर्ष पर पहुंच गए थे कि और अधिक चुप रहना यह स्वीकार कर लेना होगा कि ब्रिटिश सरकार को भारतीय जनता की इच्छा जाने बिना भारत का भाग्य तय करने का अधिकार है. अतः कांग्रेस ने अंग्रेजों को भारत छोड़ने को कहा.
  • भारत छोडो आंदोलन के पीछे एक और महत्वपूर्ण कारण यह था कि विश्व युद्ध के कारण जरुरी सामान की कीमते बहुत बढ़ गयी थीं. आवश्यक वस्तुओं की बाजार में भारी कमी हो गई थी. बंगाल और उड़ीसा में सरकार ने नावों को इस संदेह में जब्त कर लिया कि कहीं इनका प्रयोग जापानियों द्वारा न किया जाये. सिंचाई की नहरों को सूखा दिया गया, जिससे फसलें सूखने लगीं. सिंगापुर और रंगून पर जापानियों के कब्जे के बाद कलकत्ता पर बम बरसाए गए, जिससे हजारों लोग शहर छोड़कर फाग गए.
  • मलाया और वर्मा को ब्रिटिश सरकार ने जिस तरह खाली किया यानि सिर्फ गोरे लोगों को सुरक्षित निकला गया और स्थानीय जनता को उसके भाग्य पर छोड़ दिया गया. भारतीय जनता भी अब यही सोचकर परेशान थी कि यदि जापानियों का भारत पर हमला हुआ तो अंग्रेज यहां भी ऐसा ही करेंगे. अतः राष्ट्रिय आंदोलन के नेताओं ने जनता में विश्वास पैदा करने के लिए संघर्ष छेड़ने का निश्चय किया.
  • विश्वयुद्ध में ब्रिटिश सरकार की स्थिति देखकर जनता का विश्वास घट गया था. लोग बैंकों और डाकघरों से जमा पैसा निकलने लगे थे. उस पैसे को सोने-चांदी में निवेश करने लगे थे. अनाज की जमाखोरी अचानक बहुत बढ़ गयी थी.

भारत छोड़ो आंदोलन क्यों असफल हुआ: भारत छोड़ो आंदोलन जिसे अगस्त क्रांति के नाम से भी जाना जाता है. भारतीय जनता के अदम्य साहस और लड़ाकूपन की अद्वितीय मिशाल है. उसका दमन भी उतना ही पाशविक और अभूतपूर्व था. जिन परिस्थितियों में यह संघर्ष छेड़ा गया. वैसी प्रतिकूल स्थितियां भी राष्ट्रीय आंदोलन में अब तक नहीं आई थीं.युद्ध का सहारा लेकर अंग्रेज सर्कार ने स्वयं को सख्त-से-सख्त कानूनों से लैस कर लिया था. शांतिपूर्ण गतिविधियों को भी प्रतिबंधित कर दिया था. अब प्रश्न यह उठता है कि जब परिस्थितियां इतनी प्रतिकूल थीं और कठोर दमन लगभग निश्चित था, तब भी इतना बड़ा संघर्ष छेड़ना क्यों जरुरी था.

रायपुर: महात्मा गांधी ने 8 अगस्त 1942 को ब्रिटिश शासन को समाप्त (Quit India Movement Anniversary) करने अर्थात अंग्रेजों को देश के भगाने का आह्वान और मुंबई में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के सत्र दौरान भारत छोड़ो आंदोलन की शुरूआत की थी. गांधीजी ने क्रिप्स मिशन की विफलता के बाद, मुंबई के गोवालिया टैंक मैदान में दिए गए अपने भारत छोड़ो भाषण में "करो या मरो" का नारा दिया था. इस दिन देश स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि देकर, स्वतंत्रता संग्राम के दौरान शहीदों के सर्वोच्च बलिदानों को याद करता (Quit India Movement) है.

इसलिए शुरू किया गया भारत छोड़ो आंदोलन: मानव इतिहास में सदा ही जालिम और विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा किये गए दमन तथा अत्याचार का विरोध होता रहा है. जब-जब मानव का विरोध सफल हुआ, उसे स्वतंत्रता मिली. 1942 में होने वाला ‘भारत छोडो आंदोलन’ भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास में एक ऐसी ही महत्वपूर्ण राजनीतिक घटना है. समस्त देश में फैलने वाले इस आंदोलन ने अंग्रेजों को भारतीय राष्ट्रवाद की शक्ति का परिचय दिया.

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ये थे आंदोलन के कारण:

  • क्रिप्स मिशन की विफलता से यह स्पष्ट हो गया था कि ब्रिटिश सर्कार द्वितीय विश्व युद्ध में भारतीयों की अनिच्छुक साझेदारी तो रखना चाहती थी, लेकिन किसी सम्मानजनक समझौते के लिए तैयार नहीं थी.नेहरू और गांधी भी जो इस फ़ासिस्ट-विरोधी युद्ध को किसी तरह कमजोर करना नहीं चाहते थे, इस निष्कर्ष पर पहुंच गए थे कि और अधिक चुप रहना यह स्वीकार कर लेना होगा कि ब्रिटिश सरकार को भारतीय जनता की इच्छा जाने बिना भारत का भाग्य तय करने का अधिकार है. अतः कांग्रेस ने अंग्रेजों को भारत छोड़ने को कहा.
  • भारत छोडो आंदोलन के पीछे एक और महत्वपूर्ण कारण यह था कि विश्व युद्ध के कारण जरुरी सामान की कीमते बहुत बढ़ गयी थीं. आवश्यक वस्तुओं की बाजार में भारी कमी हो गई थी. बंगाल और उड़ीसा में सरकार ने नावों को इस संदेह में जब्त कर लिया कि कहीं इनका प्रयोग जापानियों द्वारा न किया जाये. सिंचाई की नहरों को सूखा दिया गया, जिससे फसलें सूखने लगीं. सिंगापुर और रंगून पर जापानियों के कब्जे के बाद कलकत्ता पर बम बरसाए गए, जिससे हजारों लोग शहर छोड़कर फाग गए.
  • मलाया और वर्मा को ब्रिटिश सरकार ने जिस तरह खाली किया यानि सिर्फ गोरे लोगों को सुरक्षित निकला गया और स्थानीय जनता को उसके भाग्य पर छोड़ दिया गया. भारतीय जनता भी अब यही सोचकर परेशान थी कि यदि जापानियों का भारत पर हमला हुआ तो अंग्रेज यहां भी ऐसा ही करेंगे. अतः राष्ट्रिय आंदोलन के नेताओं ने जनता में विश्वास पैदा करने के लिए संघर्ष छेड़ने का निश्चय किया.
  • विश्वयुद्ध में ब्रिटिश सरकार की स्थिति देखकर जनता का विश्वास घट गया था. लोग बैंकों और डाकघरों से जमा पैसा निकलने लगे थे. उस पैसे को सोने-चांदी में निवेश करने लगे थे. अनाज की जमाखोरी अचानक बहुत बढ़ गयी थी.

भारत छोड़ो आंदोलन क्यों असफल हुआ: भारत छोड़ो आंदोलन जिसे अगस्त क्रांति के नाम से भी जाना जाता है. भारतीय जनता के अदम्य साहस और लड़ाकूपन की अद्वितीय मिशाल है. उसका दमन भी उतना ही पाशविक और अभूतपूर्व था. जिन परिस्थितियों में यह संघर्ष छेड़ा गया. वैसी प्रतिकूल स्थितियां भी राष्ट्रीय आंदोलन में अब तक नहीं आई थीं.युद्ध का सहारा लेकर अंग्रेज सर्कार ने स्वयं को सख्त-से-सख्त कानूनों से लैस कर लिया था. शांतिपूर्ण गतिविधियों को भी प्रतिबंधित कर दिया था. अब प्रश्न यह उठता है कि जब परिस्थितियां इतनी प्रतिकूल थीं और कठोर दमन लगभग निश्चित था, तब भी इतना बड़ा संघर्ष छेड़ना क्यों जरुरी था.

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