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संडे मोटिवेशन स्टोरी: विवेक सेवानी की कहानी, ट्रेन से दोनों पैर कटे लेकिन हौसले ने बनाया पैरा प्लेयर

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Published : Nov 27, 2022, 5:47 AM IST

Updated : Nov 25, 2023, 6:15 PM IST

Vivek Sewani किसी शायर ने क्या खूब कहा है मंजिल उन्हीं को मिलती है जिनके सपनों में जान होती है. पंख से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है. इन शब्दों को सही साबित कर रहे हैं राजधानी रायपुर के विवेक सेवानी. आज अपने हौसलों की बदौलत उन्हें नया जीवन मिला है.विवेक के जीवन में एक ऐसा हादसा हुआ जिसके कारण उनकी जिंदगी बदल गई. Vivek Sewani of Raipur became an example for people

Vivek Sewani lost his legs in train accident
रायपुर के विवेक सेवानी लोगों के लिए बने मिसाल

रायपुर : कभी कभी हम सोचते कुछ हैं और होता कुछ है. ऐसा ही कुछ हुआ रायपुर में रहने वाले विवेक सेवानी के साथ . जिन्होंने अपनी जिंदगी सबसे खतरनाक समय बिताया है. विवेक जब 15 साल थे तब उन्होंने ट्रेन हादसे में अपने दोनों पैर खो दिए. यह हादसा इतना भयानक था कि उनका इस जीवन में रह पाना भी मुश्किल था. डॉक्टरों ने विवेक का बच पाना मुश्किल ही कह दिया था हालांकि अपनी जीवटता के कारण वे बच पाए. उन्हें नया जीवन तो मिला लेकिन दोनों पैर खोने की वजह से उनका जीवन पूरी तरह से बदल गया.लेकिन विवेक ने हार नहीं मानी. आज विवेक अपने आप को एक योद्धा की तरह तैयार कर रहे हैं. जीवन में आने वाली सारी बाधाओं को आसानी से पार करने के लिए वो तैयार हो रहे हैं. ( Vivek Sewani of Raipur became an example for people)

संडे मोटिवेशन स्टोरी
कैसे हुआ था हादसा : विवेक ने बताया कि वे अपने स्कूल टूर में घूमने गए थे. ट्रेन से लौटते वक्त एक्सीडेंट हुआ. वो अपने दोस्तों के साथ गेट पर खड़े थे. हैदराबाद के पहले जब ट्रेन शाद नगर स्टेशन पहुंची. तो विवेक ट्रेन की गेट से गिरे. इस दौरान वो प्लेटफॉर्म और ट्रेन के बीच में फंस गए.इस हादसे ने उनकी जिंदगी बदल दी. (Vivek Sewani lost his legs in train accident)

एयरफोर्स में भर्ती होने का सपना टूटा : विवेक ने बताया कि उनका सपना एयर फोर्स में भर्ती होने का था. हादसे के वक्त विवेक गोंदिया के मिलिट्री स्कूल में ही पढ़ाई कर रहे थे. उनका सपना था कि वो सेना में अपनी सेवा दें. लेकिन ऐसी हालत में सेना में भर्ती नही हो सकते. फिर भी विवेक मानते हैं कि आज वो जिंदा है तो सिर्फ इसलिए क्योंकि उन्होंने पांच साल कड़ी ट्रेनिंग ली थी.story of divyanga vivek sewani


विवेक ने बताया कि '' इस घटना की वजह से मैं नही चाहता कि कोई चीज रूके. पहले कुछ करने की इच्छा थी. लेकिन अब खुद की खुशी और पेरेंट्स की खुशी के लिए बड़ा करने की इच्छा है. हारना नहीं है , हार कभी नही माननी है. इस घटना के बाद में डिप्रेशन में था. लेकिन अपने मम्मी पापा के सामने मैं कभी नहीं रोया. अगर मैं टूट जाता तो मेरे मम्मी पापा को कौन देखता. दुर्घटना के कारण 18 दिनों तक अस्पताल में था. वो 18 दिन बेहद तकलीफ में बीते. आज भी मुझे दर्द महसूस होता है, लेकिन मैं हंसता ही रहता हूं, मेरी हंसी के पीछे के दुख को मैं छिपा लेता हूं.


विवेक ने बताया कि वे अभी बीसीए 3rd ईयर में पढ़ाई कर रहे हैं. साइबर सिक्योरिटी में अपना करियर बनाना चाहते हैं. साइबर सिक्योरिटी के जरिए देश की एजेंसियों में काम कर देश की सेवा करना विवेक का लक्ष्य है. विवेक ने बताया कि जब किसी के साथ ऐसी घटना घटती है तो इंसान डिप्रेशन में चले जाता है. ऐसी घटनाओं से जिंदगी पूरी तरह से ऊपर नीचे हो जाती है.आपके दोस्त बदल जाते हैं. दोस्तों की सोच बदल जाती है.परिवार की स्थिति बदल जाती है.लेकिन हार हम बिल्कुल भी नहीं मान सकते.भगवान अपने सबसे ताकतवर सिपाही को ही खतरनाक जंग लड़ने देता है. सबसे मुश्किल टेस्ट उन्हीं को देना होता है. जो उनके बेस्ट स्टुडेंट होते है.उनका स्ट्रांग सोल्जर हूं. तभी भगवान ने यह जंग लड़ने दी.

पैरा स्पोर्ट्स की तैयारी कर रहे विवेक : विवेक ने बताया की वो पैरा स्पोर्ट्स की तैयारी कर रहे हैं.वे पैरा ओलंपिक में वेटलिफ्टिंग में देश के लिए खेलना चाहता हूं. मैं रोजाना अपने फिटनेस पर काम कर रहा हूं. 2 घंटे जिम में वर्कआउट करता हूं, मेरी दिली इच्छा है कि देश के लिए मैडल लेकर आऊं.'' (Vivek preparing for para sports)

विवेक ने बताया कि '' शुरुआती दिनों में मुझे बाहर जाने में बेहद डर लगता था, लोग मेरे बारे में क्या सोचेंगे लोग हंसी उड़ाएंगे.लेकिन बेहद हेल्पिंग है. मेरे एक डर हुआ करता था वह डर खत्म हो गया है. आज एक नॉर्मल इंसान जिनके पैर हैं. उनके ही तरह में 80 से 90 प्रतिशत सारी चीजें कर रहा हूं.''


पिता विवेक को मानते हैं शेर : विवेक के पिता नवीन सेवानी ने बताया कि '' 8 नवंबर 2017 मुझे स्कूल के प्रिंसिपल का फोन आया. किसी भाई का एक्सीडेंट हो गया है. उसकी दोनों टांगे नहीं है.यह सुनते ही मैं सदमे में चला गया.तुरंत हम लोग हैदराबाद के लिए रवाना हुए.जब हम वहां पहुंचे तो विवेक बेहोश था. 18 दिन हैदराबाद में इलाज चला.मेरे से ज्यादा हिम्मत विवेक की मम्मी को है.मेरी हालत बहुत खराब थी .रास्ते भर मै रोता हुआ गया था.मेरे बेटे में हिम्मत है और आज सारी बाधाओं को पार कर रहा है और आज हम भी खुश हैं.आज विवेक सारा काम खुद से कर लेता है. चाहे घर के काम हो या बाहर के वह खुद से कॉलेज और जिम जाता है, हैकर बनने की इच्छा है इसके साथ ही वह जिम जाकर शरीर भी बना रहा है उसकी मेहनत को देखकर मुझे बहुत अच्छा लगता है मेरा बेटा शेर है..

भले ही आज विवेक ने अपने दोनों पैरों को खो दिया है. लेकिन उन्होंने दौड़ने का हौसला नहीं छोड़ा है.विवेक आज समाज के लिए मिसाल है. जिन्होंने अपने शरीर से महत्वपूर्ण अंग तो खो दिए. लेकिन अपने सपनों को पूरा करने का जज्बा बरकरार रखा है.

Last Updated : Nov 25, 2023, 6:15 PM IST
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