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महालया यानी कि देवीपक्ष की शुरुआत, जानिए मूर्तिकार इसी दिन क्यों बनाते हैं 'मां' के नेत्र

महालया (Mahalaya) का महत्व इसलिए खास होता है क्योंकि इसी दिन को देवी के आगमन (Devi ke aagman) का दिन कहा जाता है. इस दिन को देवी पक्ष की शुरुआत (Start of Devi paksha) का दिन माना जाता है. साथ ही ये दिन पितृपक्ष की विदाई (Last day of pitru paksh) का दिन होता है. इस दिन हर एक पितर की पूजा (Pitar ki pooja) कर तर्पण (Tarpan) किया जाता है, ताकि पितर विदाई के दिन तृप्त होकर जाएं और अपने परिजनों को आशिर्वाद दें.

beginning of devi paksha
देवीपक्ष की शुरूआत
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Published : Oct 4, 2021, 12:15 PM IST

Updated : Oct 5, 2021, 7:05 AM IST

रायपुरः शारदीय नवरात्र (Shardaiya navaratra) की तैयारियां देश में हर कोने में जोर-शोर से जारी है. महालया (Mahalaya) एक ऐसा दिन है जिसे पितृपक्ष (Pitru paksh) का अंत और देवी पक्ष (Devi paksh) की शुरुआत के रूप में देखा जाता है. महालया (Mahalya) के दिन जिन मृत व्यक्ति की तिथि ज्ञात नहीं होता उनका श्राद्ध किया जाता है. वहीं, इस दिन जो लोग नवरात्र में घर में घटस्थापना (Ghatasthapana at home in Navratri) व पूजा-अर्चना करते हैं, वो इस दिन को पूरा दिन तैयारियों में लगा देते हैं. कहा जाता है कि इस दिन को देवी पक्ष की शुरुआत (Start of Devi paksha) भी माना जाता है. कई जगहों पर इस दिन से ही मां के मंत्रों की ध्वनि सुनाई देने लगती है. मां के पूजा मंडपों को भी अंतिम रूप इसी दिन दे दिया जाता है.

जिन राज्यों में दुर्गा पूजा (Durga pooja) धूमधाम से मनाया जाता है, उन राज्यों में भी महालया का विशेष महत्व है. लोग महालया की साल भर प्रतीक्षा करते हैं. हिंदू धर्म में महालया का अपना एक अलग ही महत्व होता है. यह अमावस्या (Amawashya) के दिन मनाया जाता है, जो पितृपक्ष समाप्ति का दिन होता है. साथ ही इस दिन को देवी पक्ष की शुरुआत के रूप में भी माना जाता है.

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महालया का क्या है अर्थ

महालया का अर्थ होता है-देवी-देवताओं के साथ पितर का आह्वान. इसी दिन पितरों का विसर्जन होता है और मातृ पक्ष की शुरुआत हो जाती है. शास्त्रों के अनुसार महालया पितृ पक्ष के अमावस्या एक ही दिन मनाया जाता है. इस बार यह 6 अक्टूबर को महालया है. इस दिन मूर्तिकार मां दुर्गा की आंखें तैयार करते हैं. इसके बाद मां दुर्गा की प्रतिमा को अंतिम रूप दिया जाता है. दुर्गा पूजा आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है. इस बार यह 7 अक्टूबर से शुरू हो रहा है जबकि मां दुर्गा की विशेष पूजा 11 अक्टूबर से शुरू होकर 15 अक्टूबर दशमी तक चलती रहेगी.

ऐतिहासिक महत्व

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन अत्याचारी राक्षस महिषासुर का संहार करने के लिए भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान महेश ने मां दुर्गा के रूप में एक शक्ति सृजित किया था. महिषासुर को वरदान था कि कोई भी देवता या मनुष्य उसका वध नहीं कर सकता है. ऐसा वरदान पाकर महिषासुर राक्षसों का राजा तो बन गया था. वह लगातार देवताओं पर ही आक्रमण करता रहता था. एक बार देवताओं से युद्ध हुआ और वे हार गए. इसके बाद देवलोक में महिषासुर का राज हो गया. तब सभी देवताओं ने भगवान विष्णु के साथ-साथ आदिशक्ति की आराधना की थी. इसी दौरान देवताओं के शरीर से एक दिव्य रोशनी निकली. उसने मां दुर्गा का स्वरूप धारण किया. 9 दिन तक चले भीषण युद्ध के बाद मां दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था. महालया को मां दुर्गा के धरती पर आगमन का दिन माना जाता है. मां दुर्गा शक्ति की देवी है.

महालया में पितरों का तर्पण है महत्वपूर्ण

महालया के दिन पितरों को अंतिम विदाई दी जाती है, क्योंकि ये पितृपक्ष का अंतिम दिन होता है. इस दिन पितरों को दूध, तिल, कुशा, पुष्प और गंध मिश्रित जल से तृप्त किया जाता है. इस दिन पितरों की पसंद का भोजन बनाया जाता है और विभिन्न स्थानों पर प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है. इसके अलावा इसका पहला हिस्सा गाय को, दूसरा देवताओं को, तीसरा हिस्सा कौवे को, चौथा हिस्सा कुत्ते को और पांचवा हिस्सा चीटियों को दिया जाता है . फिर जल से तर्पण करने से पितरों की प्यास बुझती है. कहते हैं कि इस दिन हर पितर की पूजा की जाती है, ताकि वो अपनी विदाई के समय तृप्त होकर जाएं और हमें आशिर्वाद दें.

रायपुरः शारदीय नवरात्र (Shardaiya navaratra) की तैयारियां देश में हर कोने में जोर-शोर से जारी है. महालया (Mahalaya) एक ऐसा दिन है जिसे पितृपक्ष (Pitru paksh) का अंत और देवी पक्ष (Devi paksh) की शुरुआत के रूप में देखा जाता है. महालया (Mahalya) के दिन जिन मृत व्यक्ति की तिथि ज्ञात नहीं होता उनका श्राद्ध किया जाता है. वहीं, इस दिन जो लोग नवरात्र में घर में घटस्थापना (Ghatasthapana at home in Navratri) व पूजा-अर्चना करते हैं, वो इस दिन को पूरा दिन तैयारियों में लगा देते हैं. कहा जाता है कि इस दिन को देवी पक्ष की शुरुआत (Start of Devi paksha) भी माना जाता है. कई जगहों पर इस दिन से ही मां के मंत्रों की ध्वनि सुनाई देने लगती है. मां के पूजा मंडपों को भी अंतिम रूप इसी दिन दे दिया जाता है.

जिन राज्यों में दुर्गा पूजा (Durga pooja) धूमधाम से मनाया जाता है, उन राज्यों में भी महालया का विशेष महत्व है. लोग महालया की साल भर प्रतीक्षा करते हैं. हिंदू धर्म में महालया का अपना एक अलग ही महत्व होता है. यह अमावस्या (Amawashya) के दिन मनाया जाता है, जो पितृपक्ष समाप्ति का दिन होता है. साथ ही इस दिन को देवी पक्ष की शुरुआत के रूप में भी माना जाता है.

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महालया का क्या है अर्थ

महालया का अर्थ होता है-देवी-देवताओं के साथ पितर का आह्वान. इसी दिन पितरों का विसर्जन होता है और मातृ पक्ष की शुरुआत हो जाती है. शास्त्रों के अनुसार महालया पितृ पक्ष के अमावस्या एक ही दिन मनाया जाता है. इस बार यह 6 अक्टूबर को महालया है. इस दिन मूर्तिकार मां दुर्गा की आंखें तैयार करते हैं. इसके बाद मां दुर्गा की प्रतिमा को अंतिम रूप दिया जाता है. दुर्गा पूजा आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है. इस बार यह 7 अक्टूबर से शुरू हो रहा है जबकि मां दुर्गा की विशेष पूजा 11 अक्टूबर से शुरू होकर 15 अक्टूबर दशमी तक चलती रहेगी.

ऐतिहासिक महत्व

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन अत्याचारी राक्षस महिषासुर का संहार करने के लिए भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान महेश ने मां दुर्गा के रूप में एक शक्ति सृजित किया था. महिषासुर को वरदान था कि कोई भी देवता या मनुष्य उसका वध नहीं कर सकता है. ऐसा वरदान पाकर महिषासुर राक्षसों का राजा तो बन गया था. वह लगातार देवताओं पर ही आक्रमण करता रहता था. एक बार देवताओं से युद्ध हुआ और वे हार गए. इसके बाद देवलोक में महिषासुर का राज हो गया. तब सभी देवताओं ने भगवान विष्णु के साथ-साथ आदिशक्ति की आराधना की थी. इसी दौरान देवताओं के शरीर से एक दिव्य रोशनी निकली. उसने मां दुर्गा का स्वरूप धारण किया. 9 दिन तक चले भीषण युद्ध के बाद मां दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था. महालया को मां दुर्गा के धरती पर आगमन का दिन माना जाता है. मां दुर्गा शक्ति की देवी है.

महालया में पितरों का तर्पण है महत्वपूर्ण

महालया के दिन पितरों को अंतिम विदाई दी जाती है, क्योंकि ये पितृपक्ष का अंतिम दिन होता है. इस दिन पितरों को दूध, तिल, कुशा, पुष्प और गंध मिश्रित जल से तृप्त किया जाता है. इस दिन पितरों की पसंद का भोजन बनाया जाता है और विभिन्न स्थानों पर प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है. इसके अलावा इसका पहला हिस्सा गाय को, दूसरा देवताओं को, तीसरा हिस्सा कौवे को, चौथा हिस्सा कुत्ते को और पांचवा हिस्सा चीटियों को दिया जाता है . फिर जल से तर्पण करने से पितरों की प्यास बुझती है. कहते हैं कि इस दिन हर पितर की पूजा की जाती है, ताकि वो अपनी विदाई के समय तृप्त होकर जाएं और हमें आशिर्वाद दें.

Last Updated : Oct 5, 2021, 7:05 AM IST
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