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झीरम हमले को याद कर भर आईं चश्मदीद की आंखें, कहा-मेरे सामने महेंद्र कर्मा को गले में नक्सलियों ने मारी थी गोली

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Published : May 23, 2021, 1:56 PM IST

Updated : May 23, 2021, 5:10 PM IST

झीरम नक्सल हमले में घायल और प्रत्यक्षदर्शी डॉ. शिवनारायण द्विवेदी ने ETV भारत से खास बातचीत की. उन्होंने बताया कि जिन्होंने अपने परिजन खोए वो चुप हैं लेकिन वे न्याय के लिए आवाज उठाते रहेंगे.

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झीरम नक्सल हमले में घायल और प्रत्यक्षदर्शी डॉ शिवनारायण द्विवेदी का इंटरव्यू

रायपुर: झीरम घाटी नक्सली हमले की 25 मई को बरसी है. इस घटना को 8 साल बीत चुके हैं. एक बार फिर झीरम की बरसी पर परिवर्तन यात्रा के काफिले में शामिल लोगों की आंखें नम हो गई हैं. इन लोगों को आज भी वह दिन याद है. जब नक्सलियों ने झीरम घाटी में कांग्रेस के काफिले पर हमला किया था. डॉ. शिवनारायण द्विवेदी का कहना है कि घटना को 8 साल होने को है. प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है उसके बावजूद अब तक झीरम नक्सल हमले की जांच पूरी नहीं हो पाई है. द्विवेदी ने कहा कि प्रदेश में कांग्रेस सरकार को ढाई साल हो चुके हैं. सिर्फ ढाई साल ही बचे हैं. लेकिन अब तक झीरम मामले में कोई प्रगति नहीं दिख रही है. कांग्रेस सरकार में ये जांच पूरी नहीं हो पाई तो फिर कभी नहीं हो पाएगी.

झीरम नक्सली हमले में घायल और प्रत्यक्षदर्शी डॉ शिवनारायण द्विवेदी ने की ETV भारत से खास बातचीत

कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश सचिव डॉ. शिवनारायण द्विवेदी झीरम हमले के प्रत्यक्षदर्शी हैं. द्विवेदी भी झीरम नक्सली हमले के दौरान उस काफिले में मौजूद थे और उनकी आंखों के सामने एक-एक कर नक्सलियों ने महेंद्र कर्मा सहित कई नेताओं को मौत के घाट उतार दिया. आज भी द्विवेदी इस घटना को याद कर कांप उठते हैं. उनके मन में एक डर बैठा हुआ है. आलम ये है कि द्विवेदी आज भी झीरम के उन रास्तों से नहीं गुजरते जहां पर यह घटना हुई थी.

झीरम नक्सली हमले में घायल और प्रत्यक्षदर्शी डॉ शिवनारायण द्विवेदी ने की ETV भारत से खास बातचीत

झीरम नक्सली हमले की बरसी पर डॉ शिवनारायण द्विवेदी ने ETV भारत से खास खास बातचीत की. उन्होंने बताया कि किस तरह से नक्सलियों ने काफिले पर हमला किया और उसके बाद काफिले में शामिल नेताओं को ले जाकर मौत के घाट उतार दिया.

सवाल: आखिर 25 मई 2013 को क्या हुआ था ?

जवाब: डॉक्टर शिव नारायण द्विवेदी ने बताया कि उस दिन लगभग 3:30 बजे थे. जब उनका काफिला झीरम घाटी पहुंचा. उस दौरान नक्सलियों ने ब्लास्ट कर एक गाड़ी को उड़ा दिया था और अंधाधुंध फायरिंग शुरू की. इस फायरिंग में कई लोगों को गाड़ी में ही गोली लग गई थी और कुछ जान बचाने के लिए गाड़ी से उतर कर जमीन पर लेट गए थे. इस दौरान द्विवेदी, फुलो देवी नेताम और उनका ड्राइवर भी जमीन पर लेट गया. इसी बीच महेंद्र कर्मा जमीन में लेटे हुए धीरे-धीरे द्विवेदी के पास पहुंचे. इसके बाद करीब 5:00 बजे के आसपास फायरिंग थमी और सौ से डेढ़ सौ नक्सली पहाड़ियों पर से उतर कर काफिले के पास पहुंचे. जहां नक्सलियों ने काफिले में मौजूद सभी लोगों को हाथ ऊपर करके खड़े होने के लिए कहा. इसके बाद एक-एक कर सभी गाड़ियों की तलाशी लेने लगे.

तब महेंद्र कर्मा खड़े हुए और उन्होंने नक्सलियों से पूछा कि आखिर इन लोगों को क्यों मार रहे हो. इस पर नक्सलियों ने पूछा कि तुम कौन हो और इधर से जवाब आया कि मैं महेंद्र कर्मा हूं. क्योंकि नक्सली महेंद्र कर्मा को पहचानते नहीं थे इसलिये इतना बोलने के बाद ही नक्सलियों ने तुरंत सभी हाथ ऊपर करने के लिए कहा और हम चारों को जंगल के अंदर ले गए. 4 लोगों में शिव नारायण द्विवेदी, महेंद्र कर्मा, फूलो देवी नेताम और ड्राइवर शामिल था. अंदर जाने के बाद नक्सलियों ने हम लोगों को नीचे लेट जाने के लिए कहा. उसके तुरंत बाद एक महिला नक्सली महेंद्र कर्मा के पास पहुंची और उनके गले पर एक गोली मार दी'. जिसके बाद महेंद्र कर्मा वहीं गिर गए. नक्सलियों ने महेंद्र कर्मा को मारने में 1 सेकंड भी देरी नहीं की.

द्विवेदी ने बताया कि घटना के समय मौजूद नक्सली शायद कवासी लखमा को जानते थे. इसलिए जब घटना के समय उन्होंने यह कहा कि "मैं कवासी लखमा हूं गोली चलाना बंद करो" तो उसके बाद नक्सलियों की ओर से कुछ देर के लिए फायरिंग थम गई". इसके बाद फिर नक्सलियों की ओर से अंधाधुंध फायरिंग की गई और यह सभी नक्सली माओवादी जिंदाबाद, ग्रीन हंट बंद करो के नारे लगाते रहे.

सवाल: क्या नक्सलियों के पास कांग्रेस नेताओं की कोई सूची थी.

जवाब: द्विवेदी ने बताया कि मुझे लगता है कि शायद नक्सलियों को पहले ही कांग्रेसी नेताओं की सूची दे दी गई होगी. द्विवेदी ने बताया कि इस पूरी घटना को देख कर अनुमान लगाया जा सकता है कि यह सुपारी किलिंग है. ये बात को कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सहित अन्य नेताओं के द्वारा भी कही गई है. यह नक्सली हमला नहीं बल्कि सुपारी लेकर हत्या की गई है.

विपक्ष में रहते हुए जो कांग्रेस इस नक्सली हमले को लेकर सवाल करती थी. आज सत्ता में आने के बाद लगभग ढाई साल बीत चुके हैं , अब तक इस मामले में कांग्रेस सरकार न्याय नहीं दिला सकी है. यदि अब भी कांग्रेस न्याय नहीं दिला सकी तो आने वाले समय में कब न्याय मिलेगा. क्योंकि ढाई साल निकल चुके हैं और ढाई साल कांग्रेस सरकार को शेष बचे हैं.

द्विवेदी ने बताया कि सरकारे आती जाती रहती हैं. लेकिन 8 साल पहले जो कांग्रेसी नेता मरे हैं. आज नंदकुमार पटेल के बेटे मंत्री हैं. योगेंद्र शर्मा की पत्नी विधायक हैं. देवती कर्मा विधायक हैं. यह सभी लोग सत्ता में हैं लेकिन झीरम मामले को लेकर इन लोगों ने आवाज उठाना ही बंद कर दिया.

द्विवेदी ने कहा कि कांग्रेस सरकार कहती है कि NIA दस्तावेज नहीं दे रही है. NIA ने तो मेरा भी बयान नहीं लिया है. इसलिए मैंने NIA को पत्र लिखा है. मैं अपना बयान देना चाहता हूं. मुझे ऐसा लग रहा है कि यह साजिश है "इस पूरे मामले में किसकी साजिश है इसका खुलासा वे NIA के सामने बयान में करेंगे" यदि NIA मेरा बयान लेती है तो निश्चित रूप से इस पूरी घटना से पर्दा उठेगा.

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सवाल: आपने कहा कि महेंद्र कर्मा को आपके सामने एक गोली मारी गई, लेकिन उनके शरीर पर कई गोलियां लगी थी. तो क्या यह गोलियां आपके सामने मारी गई थी या आपके जाने के बाद?

जवाब: द्विवेदी ने कहा कि घटना के बाद तत्काल हम सभी जमीन पर लेट गए. लेकिन उसके पहले ही बहुत से लोगों को गाड़ी में ही गोली लग गई और उनकी मौत हो चुकी थी. हमें तो भगवान को बचाना था तो भगवान ने हीं बचाया. द्विवेदी ने बताया कि लगभग डेढ़ घंटे तक फायरिंग चली उस दौरान मंजर काफी दर्दनाक था. हम लोग काफी प्यासे थे, गला सूख रहा था और जिधर भी नजर घूमाते थे, वहां खून की धारा बहती नजर आती थी. जिस गाड़ी पर भी नजर डालते थे उस गाड़ी से केवल खून की धारा बहती दिखती थी.

सवाल: जब नक्सलियों द्वारा अंधाधुंध फायरिंग की गई थी तो क्या इस फायरिंग के दौरान गाड़ी में मौजूद महेंद्र कर्मा को भी गोली लगी थी या फिर उन्हें नक्सलियों ने अंदर ले जाकर मारा था.

जवाब: महेंद्र कर्मा ने मुठभेड़ के दौरान परिचय दिया कि मैं महेंद्र कर्मा हूं. उसके बाद उन्हें जंगल के अंदर ले जाकर गोली से मारा गया. इस दौरान हम लोग भी वहां मौजूद थे. जब हम चारों को जंगल में ले जा रहे थे तो इस दौरान नक्सली कर्मा को यह भी कहते नजर आए कि पिछली बार तो तुम बच गए थे लेकिन इस बार नहीं बचोगे उसके बाद रोड से लगभग 100 फीट अंदर ले जाकर नक्सलियों ने तुरंत कर्मा को गोली मार दी.

सवाल: आपके सामने महेंद्र कर्मा को नक्सलियों ने कितनी गोली मारी थी.

जवाब: नक्सलियों ने कर्मा को पकड़े जाने के बाद तत्काल एक गोली गले में मारी और वे वहीं गिर गए थे. इसके बाद कमांडर ने मुझसे पूछा कि जो गोली लगने के बाद नीचे गिरे हैं कौन है, जिस पर मैंने कहा कि वह महेंद्र कर्मा है. इसके बाद वे जोर जोर से कहने लगे कि महेंद्र कर्मा मर गए. इसके बाद उन्होंने महेंद्र कर्मा के शव के साथ जो बर्बरता की वह याद कर आज भी वे कांप उठते हैं.

सवाल: क्या कारण था कि नक्सली महेंद्र कर्मा से इतनी खुन्नस निकाल रहे थे.

जवाब: एक बार यह मान भी लिया जाए कि नक्सलियों की महेंद्र कर्मा से खुन्नस रही और इसलिए उन्हेंने उनके साथ बर्बरता की. लेकिन दिनेश पटेल ने क्या किया था, उनके साथ इस तरह का बर्ताव नक्सलियों के द्वारा क्यों किया गया. घटना के बाद नक्सली दिनेश पटेल का लैपटॉप ले गए. 20 से 25 लाख रुपये नकद थे उसे भी ले गए. दिनेश पटेल को इतनी बेरहमी से क्यों मारा कर्मा की दुश्मनी तो समझ में आती है.

द्विवेदी ने कहा कि यह पूरी राजनीतिक साजिश है, राजनीतिक हत्या है. इस घटना को 8 साल हो गए है. घटना के समय भी केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी. उस समय न्याय नहीं मिला. लेकिन आज प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है. अब तो न्याय मिलना चाहिए. आज न्याय नहीं मिलेगा तो कब मिलेगा.

द्विवेदी ने ETV भारत के सामने दावा किया है कि यदि अब कांग्रेस सरकार में झीरम मामले में पीड़ितों को न्याय नहीं मिला तो भविष्य में इस मामले में न्याय की उम्मीद नहीं की जा सकती.

सवाल: आपने कहा कि यह घटना सुपारी किलिंग है, आखिर इस सुपारी के किलिंग के पीछे किसका हाथ हो सकता है.

जवाब: द्विवेदी ने कहा कि इस पूरी घटना के पीछे नेता और अधिकारी शामिल हैं. क्योंकि इस घटना में यदि अधिकारी शामिल नहीं होते तो काफिले में पूरे पुलिस फोर्स को हटाया नहीं जाता. एक पुलिसकर्मी भी मौजूद नहीं था. जबकि इस पूरे काफिले और कार्यक्रम की जानकारी संबंधित थानों को थी. यदि घटना के तत्काल बाद पुलिस थाने से मदद मिलती तो हो सकता था कांग्रेस के इतने नेता नहीं मारे जाते. इस तरह कह सकते हैं कि उस समय जो पुलिस अधिकारी वहां पदस्थ है. उनकी और ऐसे कुछ नेता जो नहीं चाहते थे कि नंद कुमार पटेल प्रदेश के मुख्यमंत्री बने उनकी साजिश थी.

सवाल: कांग्रेस का इतना बड़ा काफिला चल रहा था उसमें सिर्फ नेताओं के पीएसओ ही सुरक्षा कर्मी के रूप में मौजूद थे क्या इसके अलावा भी कोई सुरक्षा व्यवस्था थी.

जवाब: एक भी पुलिसकर्मी मौजूद नहीं था. काफिले के आगे जो पायलट चल रहे थे .वही बस मौजूद थे. जो मुठभेड़ में मारे गए. काफिले की सुरक्षा के नाम पर कुछ भी नहीं मुहैया कराया गया था.

सवाल: आज इस घटना को 8 साल बीत चुके हैं यह सारा मंजर आपके नजरों के सामने गुजरा है आज उन पलों को याद कर क्या सोचते हैं.

जवाब: जब-जब 25 मई आता है तो वह सारी घटनाएं नजरों के सामने दोबारा आ जाती है. उस दौरान मैंने इतने लोगों की हत्या और शव देखा है कि मुझे घटना के बाद 2 महीने तक नींद नहीं आती थी. मैं तो उस घटना में शामिल था. लेकिन उस घटनाओं को याद कर जो शामिल नहीं थे. उन नेताओं को भी काफी समय तक नींद नहीं आ रही थी. जैसे ही 25 मई आता है तो हमारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं. आज भी जब मैं उस दिन को याद करता हूं तो मन में डर आ जाता है. आज भी जब मैं बस्तर दंतेवाड़ा माता के दर्शन करने जाता हूं और उस दौरान जो पहाड़ी नजर आती है तो डर के कारण कांप उठता हूं.

सवाल: यानी कि आज भी जब उस रास्ते से आप गुजरते हैं तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं.

जवाब: सिर्फ रोंगटे नहीं खड़े होते हैं. डर और भय लगने लगता है. जब जगदलपुर, कांकेर आता हूं, उसके बाद मुझे थोड़ा सा राहत मिलती है.

सवाल: घटना को 8 साल बीत चुके हैं. आज झीरम की बरसी के मौके पर केंद्र सहित राज्य सरकार से आपकी क्या उम्मीदें हैं.

जवाब: इस पूरे मामले में न्याय मिलना चाहिए. यदि कोई भी छोटी घटना घटती है तो उस मामले में भी कार्रवाई होती है और लोगों को न्याय मिलता है. लेकिन इस मामले में आज तक न्याय नहीं मिला. NIA ने जांच की, उसमें न्याय नहीं मिला. इस मामले में क्यों न्याय नहीं मिल रहा है. मामले की जांच एजेंसियों के द्वारा जांच ठीक से नहीं की गई. हमारा बयान नहीं लिया गया. मुझे लगता है कि किसी का बयान भी नहीं लिया गया है. न्यायिक जांच चल रही है. उसमें बयान दिया. उनसे भी न्याय की उम्मीद है. 8 साल हो गए न्यायिक जांच की कोई रिपोर्ट नहीं आई है. ना ही NIA की रिपोर्ट आई है.

सवाल: सरकार द्वारा मामले में पीड़ित को जल्द न्याय दिलाने के लिए एसआईटी का भी गठन किया गया था.

जवाब: उदय मुदलियार के बेटे ने अलग से 8 महीने पहले दरभा थाने में पिता की हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराई है. उस आधार पर भी राज्य सरकार कार्रवाई कर सकती है. इस रिपोर्ट के माध्यम से घायलों और शहीदों के परिजनों के बयान के आधार पर आगे की जांच कर दोषियों को सजा दे सकती है.

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सवाल: नक्सली मामले की जांच को लेकर राज्य सरकार की मंशा पर भी सवाल उठाने लगे है.

जवाब: सरकार बोलती है कि हमने SIT का गठन कर दिया है. SIT गठन करने से कुछ नहीं होगा. SIT तो कितने सारे मामलों में गठित की गई है. लेकिन यह मामला उन सबसे अलग है.

द्विवेदी ने बताया कि हमें याद है कि जब केंद्र में अटल बिहारी की सरकार थी और हम लोग जोगी जी के साथ किसानों की मांग को लेकर गए थे तो तुरंत मांग पूरी हुई थी. आज राज्य में भूपेश बघेल की सरकार है. जिन्होंने आपकी मदद की उनके न्याय के लिए आप आगे नहीं आ रहे हैं, न्याय नहीं दिला पा रहे हैं. जिनके परिवार के सदस्य झीरम मामले में प्रभावित है आज भी वे लोग न्याय की मांग नहीं कर रहे हैं आखिर क्यों...

सवाल: क्या झीरम से कुछ प्रभावितों को सरकार के द्वारा जो मदद की गई हैं वह चुप रहने के लिए की गई है.

जवाब: जिनके पिता की हत्या हुई, आज वह बोल नहीं पा रहे हैं, जिनके पति खत्म हो गए थे विधायक बन गई. वह नहीं बोल रही है. लेकिन मैं न्याय के लिए आवाज उठा रहा हूं, न्याय के लिए लड़ाई लड़ रहा हूं और आज भी इसी न्याय के लिए बात कर रहा हूं.

द्विवेदी ने बताया कि उस समय राष्ट्रपति से मुलाकात की. प्रधानमंत्री से मुलाकात की सोनिया गांधी सहित सबसे मिला, लेकिन न्याय नहीं मिला.

द्विवेदी ने बताया कि हम लोगों ने बुढ़ापारा में धरना भी दिया. उस दौरान भूपेश बघेल ने कहा था कि यह कांग्रेस के खिलाफ धरना है. जबकि हमारी मांग थी कि NIA की जांच रिपोर्ट दी जाए. इसमें कांग्रेस के खिलाफ कैसे धरना हो गया. उस दौरान मुझे कांग्रेस छोड़ना पड़ा. बाद में भारतीय जनता पार्टी में गया वहां न्याय की उम्मीद थी. लेकिन वहां भी अब तक न्याय नहीं मिला. यह पूरा मामला राजनीतिक मामला बनकर रह गया है. मेरा सिर्फ यही कहना है कि इस पूरे मामले को लेकर एक बार स्थिति साफ कर देना चाहिए कि यह नक्सली हमला एक राजनीतिक साजिश थी या नहीं. जिसके बाद यह पूरा मामला साफ हो जाएगा.

Last Updated : May 23, 2021, 5:10 PM IST
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