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Raksha Bandhan 2022: कब है रक्षाबंधन? क्या है राखी पूर्णिमा का महत्व

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Published : Jul 16, 2022, 12:43 PM IST

भाई बहन के प्रेम का पर्व रक्षाबंधन (importance of Raksha Bandhan 2022 ) है. रक्षाबंधन के दिन बहने भाईयों को राखी बांधती है. बदले में भाई सारी उम्र रक्षा करने का बहन को वचन देता है. रक्षाबंधन के दिन कई शुभकार्य भी किए जा सकते हैं.

Raksha Bandhan 2022
रक्षाबंधन 2022

रायपुर: भाई बहनों के प्रेम का प्रतीक राखी का त्योहार सावन माह की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है. इस बार रक्षाबंधन पर्व 11 अगस्त, गुरुवार के दिन पड़ रहा है. पूर्णिमा तिथि का हिंदू धर्म में विशेष महत्व बताया जाता है. मान्यता है कि शुभ कार्यों के लिए पूर्णिमा तिथि उत्तम होती है. रक्षाबंधन के दिन बहनें शुभ मुहूर्त में भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं और उसकी लंबी आयु की कामना करती हैं. वहीं, भाई भी बहन को तोहफे के साथ उनकी रक्षा का वचन देते (importance of Raksha Bandhan 2022) हैं.

रक्षा बंधन 2022 शुभ मुहूर्त: हिंदू पंचाग के अनुसार 11 अगस्‍त 2022 को राखी बांधने के लिए शुभ मुहूर्त सुबह से ही शुरू हो जाएगा. इस दिन सुबह 10 बजकर 38 मिनट से लेकर रात 9 बजे तक राखी बांधने का सही समय है. इस शुभ मुहूर्त में भाई की कलाई पर राखी बांध सकती हैं. इस दौरान दोपहर 12 बजकर 06 मिनट से दोपहर 12 बजकर 57 मिनट तक अभिजीत मुहूर्त रहेगा. अमृत काल शाम 06 बजकर 55 मिनट से रात 08 बजकर 20 बजे तक होगा.

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रक्षाबंधन का महत्व: रक्षाबंधन भाई बहन के अटूट प्रेम का बंधन होता है. ये दिन भाई और बहन दोनों के लिए महत्वपूर्ण होता है. इस दिन कोई भी शुभ काम करना बेहद लाभदायक माना गया है.

बहनें रखें इस बात का ध्यान: ज्योतिष शास्त्र में रक्षाबंधन को लेकर कुछ नियमों के बारे में बताया गया है. इस दिन सुबह स्नान करने के बाद साफ कपड़े पहन लें. इस दिन स्वच्छता के नियमों का सख्ती से पालन करें. इसके साथ ही शुभ मुहूर्त में विधिपूर्वक पूजा करें. भाई के लिए राखी की थाली को अच्छे से सजाएं. राखी के दिन गलती से भी क्रोध या अंहकार न करें. भाई-बहन आज के दिन गलती से भी झगड़ा न करें. रक्षाबंधन का पर्व पूरी श्रद्धाभाव के साथ मनाएं. बड़ों का आशीर्वाद लें.

रक्षा बंधन की कथाएं: पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार जब प्रभु श्रीहरि ने वामन अवतार लेकर राजा बलि का सारा राज्य तीन पग में ही मांग लिया था और राजा बलि को पाताल लोक में रहने को कहा, तब राजा बलि ने स्वयं श्रीहरि को पाताल लोक में अतिथि के रूप में उनके साथ चलने का आग्रह किया. इस पर श्रीहरि उन्हें मना नहीं कर पाए और उनके साथ पाताल लोक चले गए. लेकिन बहुत वक्त गुजरने के बाद भी जब प्रभु नहीं लौटे तो मां लक्ष्मी को चिंता होने लगी. अन्ततः नारद जी ने मां लक्ष्मी को राजा बलि को अपना भाई बनाकर और फिर उनसे तोहफा स्वरूप श्रीहरि को मांगने के लिए कहा. माता लक्ष्मी ने वैसा ही किया और राजा बलि के साथ अपना संबंध गहरा बनाने के लिए उनके हाथ में रक्षासूत्र बांधा.

ये कथा भी है प्रचलित:राखी को लेकर एक ऐसा ही प्रसंग मध्यकालीन भारतीय इतिहास में देखने को मिलता है. उस समय चित्तौड़ की गद्दी पर रानी कर्णावती आसीन थीं. वह एक विधवा रानी थीं. चित्तौड़ की सत्ता को कमजोर हाथों में देखकर गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने उनपर हमला कर दिया. ऐसे में रानी अपने राज्य को महफूज़ रखने में असमर्थ होने लगी. तब उन्होंने चित्तौड़ की रक्षा के लिए एक राखी मुगल सम्राट हुमायूं को भेजी. हुमायूं ने भी रानी कर्णावती की रक्षा हेतु अपनी एक सेना की टुकड़ी को चित्तौड़ भेजा. अन्ततः बहादुर शाह की सेना को पीछे हटना पड़ा था.

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