Ajit jogi family caste matter क्या कभी खत्म नहीं हो पाएगा जोगी परिवार की जाति का मामला !

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Published : Nov 17, 2022, 10:42 PM IST

Updated : Nov 18, 2022, 7:29 AM IST

jogi family caste matter once again in discussion

Ajit jogi family caste matter छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी अपने जाति को लेकर हमेशा सुर्खियों में रहे हैं. राजनीतिक कैरियर शुरुआत होने से पहले ही अजीत जोगी की जाति पर सवाल खड़े होने लगे थे. लेकिन छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री बनने के बाद से उनके जाति का मामला गरमा गया. उनके खिलाफ कई दफा हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. अजीत जोगी से आयोग ने कई बार जवाब तलब किया. लेकिन अजीत जोगी के अंतिम दिनों तक उनकी जाति का मामला नहीं सुलझ पाया.

रायपुर: छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी हमेशा सुर्खियों में रहे हैं. खास तौर पर तब जब उनके आदिवासी नहीं होने का मामला उछाला (jogi family caste matter once again in discussion) गया था. अजीत जोगी के रहते उनके बेटे अमित जोगी की जाति पर भी सवाल खड़े होते रहे हैं. वहीं अब जोगी परिवार की बहू ऋचा जोगी का जाति प्रमाण पत्र भी फर्जी बताते हुए उनके खिलाफ मुंगेली में एफआईआर दर्ज की गई है. अजीत जोगी के निधन के बाद साल 2020 में मरवाही उपचुनाव के दौरान ऋचा जोगी ने नामांकन दाखिल किया था. लेकिन जिला निर्वाचन अधिकारी ने जाति प्रमाण पत्र को फर्जी बताते हुए उनका नामांकन रद्द कर दिया था. 2021 में जाति मामले पर उच्च स्तरीय प्रमाणीकरण छानबीन समिति ने रिचा जोगी के अनुसूचित जनजाति प्रमाण पत्र को निरस्त कर दिया था. Ajit jogi family caste matter

अजीत जोगी की जाति से शुरू हुआ मामला: छग के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने अपने करियर में कभी भी जातिगत आरक्षण का लाभ नहीं लिया. स्टूडेंट्स लाइफ से लेकर आईएएस बनने तक के सफर में उन्होंने अपनी काबिलियत पर प्रशासनिक जिम्मेदारियां निभाई. लेकिन अपने राजनीतिक करियर में अजीत जोगी ने अनुसूचित जनजाति के आरक्षण का प्रतिनिधित्व किया.

राजनीति में आते ही अजीत जोगी की जाति पर उठने लगे सवाल: राजनीतिक कैरियर शुरुआत होने के बाद सबसे पहले अजीत जोगी की जाति पर सवाल खड़े होने लगे. अजीत जोगी की जाति को लेकर 1986 में इंदौर हाई कोर्ट में पहला मामला आया था. हालांकि एक साल बाद हाई कोर्ट द्वारा शिकायत को खारिज कर दिया गया.

मुख्यमंत्री बनने के बाद उठा जाति का मामला: सन् 2001 में अजीत जोगी छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री (former CG CM Ajit jogi family caste matter) बने. उस दौरान भाजपा के नेता संत कुमार नेताम ने 21 जनवरी 2001 को मुख्य चुनाव आयुक्त और राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग के सामने अजीत जोगी की जाति प्रमाण पत्र की वैधता के खिलाफ शिकायत पत्र दिया था. जाति के मामले को लेकर लंबी सुनवाई चली और अजीत जोगी से आयोग ने कई बार जवाब तलब किया.

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राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग ने जोगी के खिलाफ सुनाया फैसला: 16 अक्टूबर 2001 को राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग ने अजीत जोगी के खिलाफ फैसला सुनाया. साथ ही जाति प्रमाण पत्र को फर्जी करार देते हुए जोगी के खिलाफ 420 का मुकदमा दर्ज करने की बात कही. आयोग के फैसले के खिलाफ अजीत जोगी ने 22 अक्टूबर 2001 को हाईकोर्ट में अपील की. मामले में लंबी सुनवाई चली और 15 दिसंबर 2006 को जोगी के हक में फैसला आया. हाईकोर्ट के फैसले में कहा गया कि "आयोग को जाति निर्धारण का अधिकार नहीं है. इस तरह शिकायतकर्ता के खिलाफ जुर्माने की कार्रवाई भी की गई. फिर हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ शिकायतकर्ता संतकुमार नेताम ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. सुप्रीम कोर्ट से उन्हें बड़ी राहत मिली और जुर्माने के फैसले को निरस्त कर दिया गया.

हाई पावर कमेटी ने जाति प्रमाणपत्र को निरस्त करने योग्य माना: सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद हाई पावर कमेटी का गठन किया गया. कमेटी से जोगी को एक बार फिर झटका मिला. कमेटी ने जोगी के जाति प्रमाणपत्र को संदिग्ध मानते हुए इसे निरस्त करने योग्य माना. मामला चलता गया और एक बार फिर जोगी इस फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट पहुंच गए. उन्होंने सितंबर 2018 में हाईकोर्ट में फिर से अपील की. हालांकि अजीत जोगी जब तक जीवित रहे, उनकी जाति का मामला चलता रहा. अंत तक उनकी जाति का मामला नहीं सुलझ पाया.

अमित जोगी की जाति पर भी सवाल: अजीत जोगी के बाद उनके बेटे अमित जोगी की जाति पर भी सवाल खड़े होते रहे हैं. 2013 विधानसभा चुनाव में अमित जोगी ने मरवाही विधानसभा से जीत दर्ज की. इसके बाद भाजपा प्रत्याशी समीरा पैकरा ने अमित जोगी के जाति प्रमाण पत्र और उनके जन्म स्थान को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दर्ज की थी. समीरा पैकरा के हाईकोर्ट पहुंचने के बाद दोबारा हाई पावर कमेटी का गठन हुआ. जिसमे कमेटी ने 27 जून 2017 को रिपोर्ट में अजित जोगी के प्रमाण पत्र को फर्जी करार दे दिया. साथ ही अपराधिक प्रकरण दर्ज करने की बात कही थी. साल 2020 में मरवाही उपचुनाव के दौरान निर्वाचन अधिकारी ने अमित जोगी का नामांकन निरस्त कर दिया. उस समय यह कहा गया कि जब पिता की जाति को गैर आदिवासी वर्ग का माना गया है, तो अमित जोगी आदिवासी कैसे हो सकते हैं.

क्या कहते हैं राजनीतिक विशेषज्ञ: राजनीतिक विशेषज्ञ शशांक शर्मा का कहना है कि "राजनीति में आने के बाद से ही अजित जोगी की जाति को लेकर सवाल खड़े होते रहे हैं. उनके आदिवासी होने पर प्रश्न चिह्न लगता रहा है. उनके साथ ही उनके बेटे अमित जोगी की जाति पर भी सवाल खड़े होते रहे हैं. ऐसे में मरवाही उपचुनाव के दौरा ऋचा जोगी द्वारा जो जाति प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया गया था उस समय तत्कालीन निर्वाचन अधिकारी ने फर्जी बताते हुए उनका नामांकन निरस्त कर दिया था ,, वही एक और ऋचा जोगी अपने ऊपर हुए एफआईआर को कोर्ट में चुनौती देने की बात कह रही हैं, जाति प्रमाण पत्र असली है या नकली इस मामले पर पूरी जांच सही से होनी चाहिए पूरे अगर कोई दोषी है और वह कितना बड़ा व्यक्ति क्यों ना हो उन पर कार्रवाई होनी चाहिए,,

Last Updated :Nov 18, 2022, 7:29 AM IST
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