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फादर्स डे स्पेशल: एक पिता ऐसा भी... अपने बेटे के सपने के लिए छोड़ा शहर और अपनी नौकरी

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Published : Jun 18, 2022, 10:47 PM IST

a father as well
एक पिता ऐसा भी

रायपुर के विजय तिवारी ने अपने बेटे के सपने को पूरा करने के लिए अपनी नौकरी और अपना शहर छोड़ नये शहर से जुड़ गए. संघर्ष के बावजूद उन्होंने अपने बेटों का साथ (Father left the city and his job for son dream in Raipur ) दिया.

रायपुर:अपने बच्चों को उनके मुकाम तक पहुंचाने के लिए पिता ना जाने कितना कष्ट सहते हैं. तकलीफों को सहते हुए एक पिता अपने बच्चे की हर ख्वाहिश पूरी करता है. आज फादर्स डे के मौके पर हम आपको ऐसे ही पिता की कहानी बताने जा रहे हैं... जिन्होंने अपने बच्चों के सपने को पूरा करने के लिए ना सिर्फ अपनी नौकरी छोड़ी बल्कि अपना शहर भी छोड़ दिया और जुड़ गए नये शहर से. (fathers day 2022)

फादर्स डे स्पेशल

अपना शहर छोड़ मुंबई में जा बसे: दरअसल, ये कहानी है रायपुर के विजय तिवारी की... जिन्होंने अपने बच्चों को संगीत के क्षेत्र में आगे बढ़ाने के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी. अपने बच्चे को संगीत सिखाने के लिए वे अंजान शहर मुंबई में जाकर रहने लगे. विजय ने संघर्ष भरा जीवन व्यतीत करते हुए अपने बच्चों को अच्छी परवरिश दी. उन्हें संगीत सिखाया. आज उनके बच्चे सगीत के क्षेत्र में अपने परिवार के साथ छत्तीसगढ़ का नाम भी रौशन कर रहे हैं.

राहुल मुम्बई में म्यूजिक स्टूडियो चलाता है: विजय तिवारी के बेटे राहुल तिवारी आज म्यूजिक की दुनिया में एक पहचान बना चुके हैं. म्यूजिक की दुनिया में राहुल उन ऊंचाइयों पर हैं, जहां वे रियालिटी शोज और बड़े म्यूजिक डायरेक्टर के साथ काम कर रहे हैं. राहुल कॉमेडी नाइट विद कपिल शो में बतौर म्यूजिक डायरेक्टर काम कर चुके हैं. वर्तमान में वो म्यूजिक डायरेक्टर प्रीतम के साथ काम कर रहे है. मुंबई में खुद का म्यूजिक स्टूडियो भी चलाते हैं. जहां कई फिल्मी गानों और एल्बम में वे बौतर म्युजिक कम्पोजर और डायरेक्टर की जिम्मेदारी निभा रहे है.

जो भी हूं पिता की बदौलत: विजय के बेटे राहुल तिवारी ने ईटीवी भारत को बताया, "आज उनके पिता के बदौलत वो इस मुकाम पर हैं कि वे आज बड़े-बड़े लोगों के साथ काम कर रहे हैं. बचपन से ही मेरे पिताजी ने मेरा सपोर्ट किया. मेरे सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने जी जान लगा दी. एक वक्त ऐसा आया जब मुझे मुंबई आने का मौका मिला. तब मेरे पिता ने अपना काम और अपना शहर छोड़ कर बिना कुछ सोचे-समझे मुझे मुंबई लेकर आ गए. मुंबई में भी उन्होंने मुझे आगे बढ़ने के लिए लगातार मदद की. दिन-रात में मेरी देखरेख और मेरी मदद करते रहे. हमेशा मुझे गाइड करते रहे. बहुत कम ही लोग ऐसे होते हैं जिनको ऐसा पिता मिलता है जो अपने बच्चों की खुशियों के लिए इतना बड़ा त्याग करे. आज जो कुछ भी मैंने सीखा है और संगीत के क्षेत्र में जो भी कर रहा हूं... यह सब मेरे पिता और माता की बदौलत."

बच्चों के लिए रात भर जागते थे: वहीं, विजय के छोटे बेटे आर्यन कहते हैं, "आज हम दोनों भाई जो कुछ भी है...हमारे पिता के बदौलत हैं. मेरे बड़े भाई से जब मैंने पूछा कि वे मुंबई कैसे पहुंचे, तो उन्होने बताया था कि पिताजी ने बहुत संघर्ष किया है. मेरे भाई जब छोटे थे तब उन्हें मुम्बई के एक रिलालिटी शो के लिए ऑफर आया था. उस दौरान मेरे पिता जी ने अपना काम छोड़ा और जिस रायपुर शहर में बस चुके थे उसे छोड़कर वे मुम्बई जाकर एक अनजान शहर में रहना बड़ी चुनौती थी...उस दौरान हमारे पिता के पास कोई बड़ा काम नहीं हुआ करता था. वे ज्यादातर मेरे भैया के शो में जाते और रातभर जागकर अपने बच्चे को आगे बढ़ाने के लिए लगे रहे."

आज भी मेरे साथ शो में जाते हैं पापा: आर्य ने बताया कि उन्होंने अपने भाई और अपने पिता को देखकर म्यूजिक सीखने की शुरुआत की. आज उनके पिता उनके साथ हर शो में जाते हैं. मेरे पिता संगीतकार नहीं है लेकिन उनका सेंस जो रहा है सुनकर देखकर मुझे मोटिवेट करते रहते हैं. उनके कहे अनुसार मैंने म्यूजिक में कदम रखा और आज मुम्बई में क्लब शो करता हूं. कई रिलालिटी शो कंटेस्टेंट के साथ वे काम कर रहे हैं." विजय तिवारी ने बताया, "जब राहुल 5 साल का था. उस दौरान लोगों ने बताया कि उसमें संगीत का नॉलेज है. उस दौरान मेरी हैसियत नहीं थी..जितना मुझसे बन पाता मैं स्पोर्ट करता. धीरे-धीरे राहुल अपने मुकाम पर पहुंचता गया. मुझे इस बात का गर्व है कि मेरे बच्चे मेरा नाम रौशन करें और दोनों ही ऐसा कर रहे हैं.

जहां चाह वहीं राह: विजय तिवारी ने बताया कि अपने बेटे को मुंबई लेकर जाना एक चुनौती भरा सफर रहा. नये शहर में रहना और वहां पर नौकरी की तलाश करना बड़ा मुश्किल था. लेकिन जहां चाह है वहा राह है. हमने पहले से ही सोच कर रखा कि हमारे बच्चे कुछ ना कुछ जरूर करेंगे और वह आज बहुत अच्छा कर रहे हैं.

किस्त में खरीदा था बेटे के लिए पहला की-बोर्ड: विजय ने बताया, "वे एक होटल में काम करते थे. जहां उन्हें एक हजार रुपए सैलेरी मिलती थी. उस समय म्यूजिक इंस्टूमेंट लेना बहुत मुश्किल हुआ करता थी. उस दौरान मैंने अपने दोस्त की मदद से 2500 रुपए का की बोर्ड राहुल के लिए खरीदा था. ताकि वह इसे सीखना शुरू करें और जो 1 हजार रूपए सैलरी मिलती थी.. उसमें से उसका इंस्टॉलमेंट भरता था."

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बच्चे पर था पूरा विश्वास: विजय ने बताया, "रायपुर शहर को छोड़कर मुंबई में जाना, वहां के माहौल को समझना और वहां काम मिलना एक बड़ी चुनौती थी. लेकिन मुझे अपने बच्चे पर विश्वास था कि उसके अंदर कितना टैलेंट है. कुछ ना कुछ वह कर लेगा. और उसका परिणाम आज हमें मिल रहा है. मेरे बेटे पर छत्तीसगढ़ वासियों का आशीर्वाद और उनके गुरु रोमियो जैकब और बाकी सभी गुरुओ का आशीर्वाद है. मैं अपने आप को बहुत ही खुश नसीब मानता हूं. बहुत कम ही लोगों को यह मौका मिलता है कि उनके पिता को उनके बच्चों के नाम से जाना जाए. जब लोग मुझे कहते हैं कि यह राहुल के पिताजी हैं तो मुझे बड़ा गर्व होता है."

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