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Dog terror in raipur: रायपुर में कुत्तों का आतंक, लगातार बढ़ रही डॉग बाइट्स की घटनाएं

Dog terror in raipur: रायपुर में आवारा कुत्तों का आतंक दिन ब दिन बढ़ता ही जा रहा है. इस विषय में विशेषज्ञ क्या कहते हैं? जानने के लिए पढ़िए पूरी रिपोर्ट...

Dog terror in raipur
रायपुर में कुत्तों का आतंक
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Published : Feb 12, 2022, 1:35 PM IST

Updated : Feb 12, 2022, 3:10 PM IST

रायपुर: राजधानी में लगातार आवारा कुत्तों की संख्या में इजाफा देखने को मिल रहा है. कुत्तों की बढ़ती संख्या के कारण डॉग बाइट्स की घटनाएं भी आए दिन देखने को मिल रही है. कई बार बड़े सड़क हादसों का कारण भी आवारा कुत्ते होते हैं. रायपुर नगर निगम ने कुत्तों की बढ़ती संख्या के साथ-साथ कुत्तों के आतंक पर लगाम लगाने के लिए कई अभियान भी चलाये, जिसमें कुत्तों की नसबंदी का मामला प्रमुख था. हालांकि इससे कोई खास लाभ नहीं हुआ.

रायपुर में बढ़ी डॉग बाइट्स की घटनाएं

कुत्तों की नसबंदी के लिए निगम हर साल लाखों रुपए खर्च कर रहा है. बावजूद इसके कुत्तों की बढ़ती संख्या पर नियंत्रण नहीं हो पा रहा है. आइए जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर क्या वजह है कि राजधानी में डॉग बाइट्स का मामला लगातार बढ़ रहा है? डॉग बाइट्स रोकने के लिए क्या किया जा सकता है? इसके लिए ETV भारत ने जानकारों की राय ली.

यह भी पढ़ें; समूचे छत्तीसगढ़ में नहीं हो सकती है शराबबंदी- पीसीसी चीफ मोहन मरकाम

तत्काल लेनी चाहिए डॉक्टर की सलाह

स्वास्थ्य विभाग की मानें तो रायपुर स्थित मेकाहारा अस्पताल में हर रोज 5 से 10 डॉग बाइट के मामले सामने आ रहे हैं. महीने भर की बात करें तो लगभग सवा सौ के आसपास डॉग बाइट के मरीज मेकाहारा पहुंच रहे हैं. इस विषय में मेकाहारा मेडिसिन डिपार्टमेंट के डॉक्टर आर एल खरे का कहना है कि जब भी कोई कुत्ता काटता है तो तत्काल डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए. बात अगर मेकाहारा की करें तो यहां पर्याप्त मात्रा में एंटी रेबीज के इंजेक्शन हैं. जब भी कोई कुत्ता काटे तो मेकाहारा आकर इंजेक्शन लगवा सकते हैं. साथ ही रविवार या फिर छुट्टी वाले दिन भी एंटी रेबीज के इंजेक्शन मेकाहारा में लगाए जाते हैं. यह बहुत कम लोगों को पता है. इसलिए कुत्ता काटने पर लापरवाही ना बरतें. यह जानलेवा है इसलिए इंजेक्शन जरूर लगवाएं.

चेहरा, छाती, हाथ में कुत्ते का काटना खतरनाक

डॉ. खरे कहते हैं कि अक्सर देखा गया है कि जब तक रेबीज का मरीज हमारे पास पहुंचता है, तब तक काफी देर हो चुकी होती है. तब हमारे पास सिर्फ उसकी मौत का इंतजार करने के अलावा कोई और दूसरा रास्ता नहीं होता है. कुत्ता काटने के बाद 1 से 3 माह के भीतर रेबीज के लक्षण दिखाई देने लगते हैं. बहुत कम मामलों में ही ऐसा होता है, जब लक्षण साल भर बाद दिखाई देता है. कुत्ता जितना दिमाग के नजदीक काटता है, वह उतना अधिक घातक होता है. यानी कुत्ता यदि चेहरे, छाती या फिर हाथ में काटता है तो काफी खतरनाक होता है.

हर दिन आते हैं ऐसे मामले

डॉ. खरे कहते हैं कि 'ब्रीडिंग सीजन के समय में कुत्ते कई बार लोगों को काटने दौड़ जाते हैं. उस दौरान 5 से 10 मामले हर दिन अस्पताल में आते रहते हैं. यदि नॉर्मल दिनों की बात की जाए तो 3 से 5 केस देखने को मिलते हैं. खासकर ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले मरीजों के साथ एक परेशानी देखने को मिलती है कि वे पहले बैगा से इलाज करवाते हैं. वह बैगा कुत्ते काटने वाली जगह पर एसिड डालकर वायरस खत्म करने का दावा करता है और झाड़-फूंक करने वालों के द्वारा उस जगह को जलाने की बात भी देखने को मिली है. इससे यह वायरस मरता नहीं है बल्कि शरीर में फैल जाता है. इसलिए कुत्ता काटने पर ऐसा नहीं करना चाहिए.

यूं करें प्राथमिक उपचार

सबसे पहले कुत्ता काटने वाली जगह को साफ पानी से साफ करना चाहिए. उस घाव को साबुन से धोना चाहिए. यदि घाव बड़ा है तो उसे खुला छोड़ दें. क्योंकि टांके नहीं लगाए जाते हैं. इसके बाद इसके उपचार के लिए डॉक्टर की सलाह लें. ज्यादातर कुत्ते उन जगहों पर देखने को मिलते हैं जहां मांस, मटन या अंडे की दुकानें होती है. क्योंकि यहां मांस के टुकड़े पड़े होते हैं. उसे खा कर वे कुत्ते हेल्थी होते हैं और अग्रेसिव भी. उस जगह से रात में कोई गुजरता है तो ये कुत्ते उन लोगों पर हमला करते देते हैं. ऐसे जगहों में जाने से बचना चाहिए.

कुत्तों के आतंक से बचने को डॉग बाइट टीम गठित

रायपुर नगर निगम अपर आयुक्त सुनील चंद्रवंशी का कहना है कि 'रायपुर में कुत्तों के आतंक से बचने के लिए डॉग बाइट टीम गठित की गई है. एक वाहन भी है जो कुत्तों को पकड़कर रोज नसबंदी करता है. यह प्रक्रिया लगातार जारी है. लगाभग 20 कुत्तों की नसबंदी हर रोज हो रही है. इसके लिए वेटनरी के दो डॉक्टरों को रखा गया है, जो नियमित रूप से इस काम को कर रहे हैं. अब तक तकरीबन 45 से 50 फीसद कुत्तों की नसबंदी की जा चुकी है'.

पशु क्रूरता अधिनियम का होता है पालन

चंद्रवंशी कहते हैं कि 'कुत्तों के आतंक को कम करने की कोशिश के दौरान पशु क्रूरता अधिनियम का पालन किया जाता है. नसबंदी के लिए जहां से कुत्ते पकड़े जाते हैं, नसबंदी के बाद उन्हीं क्षेत्रों में उन कुत्तों को वापस छोड़ दिया जाता है. इसके लिए उनके कान पर एक निशान भी लगाया जाता है. कुत्तों की ब्रीडिंग बहुत तेज होती है. एक साथ यह चार से 6 या फिर इससे ज्यादा बच्चे भी जन्म देते हैं. ये भी इनकी जनसंख्या वृद्धि का एक कारण माना जा रहा है .

यह भी पढ़ेंः Bilaspur newborn mutilated dead body case: मां ने ही की थी नवजात की हत्या, दो टुकड़े में मिला था शव

बेवजह कुत्तों को लोग न करें परेशान

चंद्रवंशी ने लोगों से अपील भी की है कि कुत्तों को अनावश्यक परेशान ना किया जाए. लोगों को यह समझना होगा कि वह भी एक सामाजिक प्राणी है. यह एक वफादार जानवर होता है इसलिए उनके साथ सौहार्दपूर्ण व्यवहार करें. कुत्ते तभी काटते हैं, जब उन पर कोई हमला करता है. पत्थर से मारता है या फिर उनके साथ छेड़छाड़ करता है. या फिर जब वे खाना खा रहे होते या ब्रीडिंग करते हैं, उस दौरान अपनी सुरक्षा में ये लोगों को दौड़ाते हैं या फिर काटते हैं. ऐसे में इन कुत्तों को परेशान ना करें और इनका सहयोग करें.

हर साल निगम करती है इतने खर्च

शहर में कुत्तों की बढ़ रही संख्या को कम करने और उससे संबंधित कामों के लिए निगम द्वारा लगभग 40 से 50 लाख रुपए हर साल खर्च किए जाते हैं. साल 2021 में भी लगभग 40 लाख रुपए खर्च किए गए थे.

यह भी पढ़ें: Naxalite encounter in Bijapur: बीजापुर में नक्सली मुठभेड़ में CRPF के असिस्टेंट कमांडर शहीद

कुत्तों की नसबंदी का फार्मूला पहले भी रहा है फ्लॉप

नगर निगम ने कुत्तों की नसबंदी का अभियान (Raipur dog sterilization campaign) साल 2009-10 में शुरू किया था. उस दौरान शहर के आवारा कुत्तों की संख्या करीब 10 हजार आंकी गई थी. इस अभियान के दौरान 10 हजार में से महज 17 सौ कुत्तों की नसबंदी की गई. इसके लिए लगभग 15 लाख से अधिक की राशि खर्च की गई. 17 सौ कुत्तों की नसबंदी के लिए लगभग 8 से 10 माह का समय लगा था. नसबंदी में प्रति कुत्ता लगभग 900 रुपये का खर्च आया था. हालांकि बाद में यह अभियान फेल हो गया था. उसके बाद उस अभियान से सीख लेते हुए निगम द्वारा चलाए जा रहे नए नसबंदी अभियान में कई शर्तों को जोड़ा गया है. अब नगर निगम द्वारा शुरू किए गए अभियान के तहत पिछले 3 वर्षों में लगभग 15 हजार कुत्तों की नसबंदी की जा चुकी है. कुल मिलाकर देखा जाए तो लाखों खर्च के बाद भी राजधानी में कुत्तों की समस्या जस की तस बनी हुई है.

रायपुर: राजधानी में लगातार आवारा कुत्तों की संख्या में इजाफा देखने को मिल रहा है. कुत्तों की बढ़ती संख्या के कारण डॉग बाइट्स की घटनाएं भी आए दिन देखने को मिल रही है. कई बार बड़े सड़क हादसों का कारण भी आवारा कुत्ते होते हैं. रायपुर नगर निगम ने कुत्तों की बढ़ती संख्या के साथ-साथ कुत्तों के आतंक पर लगाम लगाने के लिए कई अभियान भी चलाये, जिसमें कुत्तों की नसबंदी का मामला प्रमुख था. हालांकि इससे कोई खास लाभ नहीं हुआ.

रायपुर में बढ़ी डॉग बाइट्स की घटनाएं

कुत्तों की नसबंदी के लिए निगम हर साल लाखों रुपए खर्च कर रहा है. बावजूद इसके कुत्तों की बढ़ती संख्या पर नियंत्रण नहीं हो पा रहा है. आइए जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर क्या वजह है कि राजधानी में डॉग बाइट्स का मामला लगातार बढ़ रहा है? डॉग बाइट्स रोकने के लिए क्या किया जा सकता है? इसके लिए ETV भारत ने जानकारों की राय ली.

यह भी पढ़ें; समूचे छत्तीसगढ़ में नहीं हो सकती है शराबबंदी- पीसीसी चीफ मोहन मरकाम

तत्काल लेनी चाहिए डॉक्टर की सलाह

स्वास्थ्य विभाग की मानें तो रायपुर स्थित मेकाहारा अस्पताल में हर रोज 5 से 10 डॉग बाइट के मामले सामने आ रहे हैं. महीने भर की बात करें तो लगभग सवा सौ के आसपास डॉग बाइट के मरीज मेकाहारा पहुंच रहे हैं. इस विषय में मेकाहारा मेडिसिन डिपार्टमेंट के डॉक्टर आर एल खरे का कहना है कि जब भी कोई कुत्ता काटता है तो तत्काल डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए. बात अगर मेकाहारा की करें तो यहां पर्याप्त मात्रा में एंटी रेबीज के इंजेक्शन हैं. जब भी कोई कुत्ता काटे तो मेकाहारा आकर इंजेक्शन लगवा सकते हैं. साथ ही रविवार या फिर छुट्टी वाले दिन भी एंटी रेबीज के इंजेक्शन मेकाहारा में लगाए जाते हैं. यह बहुत कम लोगों को पता है. इसलिए कुत्ता काटने पर लापरवाही ना बरतें. यह जानलेवा है इसलिए इंजेक्शन जरूर लगवाएं.

चेहरा, छाती, हाथ में कुत्ते का काटना खतरनाक

डॉ. खरे कहते हैं कि अक्सर देखा गया है कि जब तक रेबीज का मरीज हमारे पास पहुंचता है, तब तक काफी देर हो चुकी होती है. तब हमारे पास सिर्फ उसकी मौत का इंतजार करने के अलावा कोई और दूसरा रास्ता नहीं होता है. कुत्ता काटने के बाद 1 से 3 माह के भीतर रेबीज के लक्षण दिखाई देने लगते हैं. बहुत कम मामलों में ही ऐसा होता है, जब लक्षण साल भर बाद दिखाई देता है. कुत्ता जितना दिमाग के नजदीक काटता है, वह उतना अधिक घातक होता है. यानी कुत्ता यदि चेहरे, छाती या फिर हाथ में काटता है तो काफी खतरनाक होता है.

हर दिन आते हैं ऐसे मामले

डॉ. खरे कहते हैं कि 'ब्रीडिंग सीजन के समय में कुत्ते कई बार लोगों को काटने दौड़ जाते हैं. उस दौरान 5 से 10 मामले हर दिन अस्पताल में आते रहते हैं. यदि नॉर्मल दिनों की बात की जाए तो 3 से 5 केस देखने को मिलते हैं. खासकर ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले मरीजों के साथ एक परेशानी देखने को मिलती है कि वे पहले बैगा से इलाज करवाते हैं. वह बैगा कुत्ते काटने वाली जगह पर एसिड डालकर वायरस खत्म करने का दावा करता है और झाड़-फूंक करने वालों के द्वारा उस जगह को जलाने की बात भी देखने को मिली है. इससे यह वायरस मरता नहीं है बल्कि शरीर में फैल जाता है. इसलिए कुत्ता काटने पर ऐसा नहीं करना चाहिए.

यूं करें प्राथमिक उपचार

सबसे पहले कुत्ता काटने वाली जगह को साफ पानी से साफ करना चाहिए. उस घाव को साबुन से धोना चाहिए. यदि घाव बड़ा है तो उसे खुला छोड़ दें. क्योंकि टांके नहीं लगाए जाते हैं. इसके बाद इसके उपचार के लिए डॉक्टर की सलाह लें. ज्यादातर कुत्ते उन जगहों पर देखने को मिलते हैं जहां मांस, मटन या अंडे की दुकानें होती है. क्योंकि यहां मांस के टुकड़े पड़े होते हैं. उसे खा कर वे कुत्ते हेल्थी होते हैं और अग्रेसिव भी. उस जगह से रात में कोई गुजरता है तो ये कुत्ते उन लोगों पर हमला करते देते हैं. ऐसे जगहों में जाने से बचना चाहिए.

कुत्तों के आतंक से बचने को डॉग बाइट टीम गठित

रायपुर नगर निगम अपर आयुक्त सुनील चंद्रवंशी का कहना है कि 'रायपुर में कुत्तों के आतंक से बचने के लिए डॉग बाइट टीम गठित की गई है. एक वाहन भी है जो कुत्तों को पकड़कर रोज नसबंदी करता है. यह प्रक्रिया लगातार जारी है. लगाभग 20 कुत्तों की नसबंदी हर रोज हो रही है. इसके लिए वेटनरी के दो डॉक्टरों को रखा गया है, जो नियमित रूप से इस काम को कर रहे हैं. अब तक तकरीबन 45 से 50 फीसद कुत्तों की नसबंदी की जा चुकी है'.

पशु क्रूरता अधिनियम का होता है पालन

चंद्रवंशी कहते हैं कि 'कुत्तों के आतंक को कम करने की कोशिश के दौरान पशु क्रूरता अधिनियम का पालन किया जाता है. नसबंदी के लिए जहां से कुत्ते पकड़े जाते हैं, नसबंदी के बाद उन्हीं क्षेत्रों में उन कुत्तों को वापस छोड़ दिया जाता है. इसके लिए उनके कान पर एक निशान भी लगाया जाता है. कुत्तों की ब्रीडिंग बहुत तेज होती है. एक साथ यह चार से 6 या फिर इससे ज्यादा बच्चे भी जन्म देते हैं. ये भी इनकी जनसंख्या वृद्धि का एक कारण माना जा रहा है .

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बेवजह कुत्तों को लोग न करें परेशान

चंद्रवंशी ने लोगों से अपील भी की है कि कुत्तों को अनावश्यक परेशान ना किया जाए. लोगों को यह समझना होगा कि वह भी एक सामाजिक प्राणी है. यह एक वफादार जानवर होता है इसलिए उनके साथ सौहार्दपूर्ण व्यवहार करें. कुत्ते तभी काटते हैं, जब उन पर कोई हमला करता है. पत्थर से मारता है या फिर उनके साथ छेड़छाड़ करता है. या फिर जब वे खाना खा रहे होते या ब्रीडिंग करते हैं, उस दौरान अपनी सुरक्षा में ये लोगों को दौड़ाते हैं या फिर काटते हैं. ऐसे में इन कुत्तों को परेशान ना करें और इनका सहयोग करें.

हर साल निगम करती है इतने खर्च

शहर में कुत्तों की बढ़ रही संख्या को कम करने और उससे संबंधित कामों के लिए निगम द्वारा लगभग 40 से 50 लाख रुपए हर साल खर्च किए जाते हैं. साल 2021 में भी लगभग 40 लाख रुपए खर्च किए गए थे.

यह भी पढ़ें: Naxalite encounter in Bijapur: बीजापुर में नक्सली मुठभेड़ में CRPF के असिस्टेंट कमांडर शहीद

कुत्तों की नसबंदी का फार्मूला पहले भी रहा है फ्लॉप

नगर निगम ने कुत्तों की नसबंदी का अभियान (Raipur dog sterilization campaign) साल 2009-10 में शुरू किया था. उस दौरान शहर के आवारा कुत्तों की संख्या करीब 10 हजार आंकी गई थी. इस अभियान के दौरान 10 हजार में से महज 17 सौ कुत्तों की नसबंदी की गई. इसके लिए लगभग 15 लाख से अधिक की राशि खर्च की गई. 17 सौ कुत्तों की नसबंदी के लिए लगभग 8 से 10 माह का समय लगा था. नसबंदी में प्रति कुत्ता लगभग 900 रुपये का खर्च आया था. हालांकि बाद में यह अभियान फेल हो गया था. उसके बाद उस अभियान से सीख लेते हुए निगम द्वारा चलाए जा रहे नए नसबंदी अभियान में कई शर्तों को जोड़ा गया है. अब नगर निगम द्वारा शुरू किए गए अभियान के तहत पिछले 3 वर्षों में लगभग 15 हजार कुत्तों की नसबंदी की जा चुकी है. कुल मिलाकर देखा जाए तो लाखों खर्च के बाद भी राजधानी में कुत्तों की समस्या जस की तस बनी हुई है.

Last Updated : Feb 12, 2022, 3:10 PM IST
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