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AJA EKADASHI 2021 : अजा एकादशी आज, शनिवार को मनाया जाएगा शनि प्रदोष व्रत

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Published : Sep 2, 2021, 10:52 PM IST

Updated : Sep 3, 2021, 9:47 AM IST

सितंबर में पूरे महीने त्योहारों की बरसात होगी. इसकी शुरुआत भी हो गई है.

अजा एकादशी कल
अजा एकादशी कल

रायपुर: आज अजा एकादशी मनाई जाएगी. अजा एकादशी (AJA EKADASHI)को जया एकादशी भी कहा जाता है. यह पर्व जीवंतिका पूजन के नाम से भी प्रचलित है. इस शुभ दिन भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी की भी पूजा-आराधना की जाती है. इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है. पुनर्वसु नक्षत्र व्यतिपात योग और बालव कौलव करण का योग बन रहा है. कई लोग इस दिन पर्यूषण पर्व का प्रारंभ होना भी मानते हैं. शुक्रवार के दिन अजा एकादशी का होना अनेक सुखद संयोग देने वाला है.

अजा एकादशी

उदया तिथि में मनाई जाएगी अजा एकादशी

एकादशी तिथि 2 सितंबर गुरुवार से सुबह 6:21 से ही प्रारंभ है, लेकिन उदया तिथि 3 सितंबर शुक्रवार को होने की वजह से अजा एकादशी का पर्व शुक्रवार को मनाया जाएगा. इस व्रत में श्री हरि विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है. श्री हरि विष्णु और विद्यालक्ष्मी को कमल का फूल चंदन अबीर गुलाल रोली बंधन पंचामृत नैवेद्य ऋतु फल गंगाजल आदि का भोग लगाया जाता है. इस एकादशी में घी के दीपक से श्री नारायण की पूजा की जाती है.

संपूर्ण दिन खंडित हुए बिना जलना चाहिए घी का दीपक

संपूर्ण दिन यह घी का दीपक खंडित हुए बिना जलना चाहिए. इस व्रत का पालन करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. इस दिन पीले कपड़े पहनने का भी विधान है. भगवान को पीले फूल, पीले चावल, पीत वर्ण के पदार्थ और पीले पुष्पों की माला चढ़ाई जाती है, जिससे श्री हरि नारायण की प्रसन्नता भक्तों को प्राप्त होती है. साथ ही इस दिन सात्विकता का पालन किया जाना चाहिए. मुकदमा, लड़ाई-झगड़ा आदि से दूर रहने का प्रयास करना चाहिए.

अजा एकादशी के पारण का समय शनिवार सुबह 8:24 के पहले

इस त्योहार का पारण 4 सितंबर शनिवार सुबह 8:24 के पहले करने का विधान है. भगवान श्री हरि विष्णु के चरण कमल को को छूकर उनकी आरती गाकर और मिट्टी के दीपक जलाकर यथा योग्य दक्षिणा देकर इस व्रत का पारण करना चाहिए. शुक्रवार होने की वजह से चांदी के बने हुए लक्ष्मी नारायण की भी पूजा का विधान है.

शनिवार का दिन होने के कारण शनि प्रदोष व्रत कहा जाता है

वहीं शनि प्रदोश व्रत शनिवार को मनाया जाएगा. शनिवार को प्रदोष होने की वजह से इसका नाम शनि प्रदोष व्रत कहा जाता है. पुष्य नक्षत्र में वरियान और तैतिल और गर करण के सुयोग में यह प्रदोष व्रत पड़ रहा है. प्रदोष व्रत अनादि शंकर की महिमा का पर्व है. इस दिन भोलेनाथ जी का अभिषेक पूजन-आरती किया जाना शुभ माना जाता है. इस दिन प्रातः स्नान करके शिवालय में रूद्र को दुग्ध जल नर्मदा गंगा आदि के जल से अभिषेक करना चाहिए. इस बार पर्व कर्क राशि के चंद्रमा में मनाया जा रहा है. कर्क राशि चंद्रमा की प्रिय राशि है इसलिए या प्रदोष व्रत अनेक अभिलाषाओं को पूर्ण करने वाला माना गया है.

जिन कन्याओं के विवाह में बाधा आ रही हो, वे जरूर करें यह व्रत

शुभ शुभ पुष्य नक्षत्र और शनि प्रदोष व्रत एक दूसरे के पूर्ण सहयोगी हैं. जिन कन्याओं के विवाह में बाधा आ रही हो, उन्हें निश्चित तौर पर इस व्रत को करना चाहिए. इस व्रत में सायंकाल में गोधूलि बेला में प्रदोष काल का शुभ मुहूर्त पड़ता है. अनेक मान्यताओं के अनुसार सूर्यास्त से 72 मिनट पूर्व और 72 मिनट बाद के काल को शुभ प्रदोष काल माना गया है. आज के दिन शाम 5:01 से शाम 7:25 तक सुबह प्रदोष काल रहेगा. पौराणिक कथाएं बताती हैं कि इस समय भगवान भोलेनाथ बहुत प्रसन्न होकर कैलाश पर्वत में आनंद और उमंग के साथ नृत्य करते हैं. इस संध्या की बेला में कामधेनु गाय को स्मरण कर शिव की पूजा आराधना साधना और स्तुति करनी चाहिए. शिव चालीसा रुद्राष्टकम महामृत्युंजय मंत्र रुद्री आदि का पाठ करना बहुत शुभ माना गया है.

प्रदोष व्रत करने से भगवान शिव का मिलता है आशीष

इस व्रत को करने पर भगवान शिव का आशीष मिलता है. निराहार रहकर भी इस व्रत को किया जा सकता है. शक्ति और सामर्थ्य के अनुसार इस व्रत को करना चाहिए. शाम के समय फलाहार के साथ भोजन करना चाहिए. ओम नमः शिवाय मंत्र का जाप करना बहुत शुभ माना गया है. भवानी शंकर योग के आदि गुरु माने गए हैं. इस दिन योग-साधना, आसन और प्राणायाम व्यायाम करना भी बहुत ही पक्षकारी माना जाता है.

Last Updated : Sep 3, 2021, 9:47 AM IST
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