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बीमार बेटे के लिए मां बन गई 'भगवान', किडनी देकर बचाई 'जिगर के टुकड़े' की जान

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Published : Mar 14, 2019, 6:51 PM IST

कोरिया में मां ने बेटे को किडनी डोनेट कर उसे नया जीवन दिया है. दरअसल महज 14 साल की उम्र में अमन की दोनों किडनियां खराब हो गई थी, जिसके बाद उसकी मां ने उसे अपनी एक किडनी डोनेट की

मां ने बेटे को डोनेट की किडनी

कोरिया: रब के हम पर करम नहीं होते मां नहीं होती तो हम नहीं होते. ये पंक्तियां कोरिया के मनेंद्रगढ़ में रहने वाले अमन पर एक दम सटीक बैठती हैं. अमन ने मां की बदौलत ही नई जिंदगी पाई है. 14 साल पहले जिस मां ने जन्म देकर जिंदगी दी थी, एक बार फिर उनसे किडनी देकर बेटे को पुनर्जन्म दिया है.

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जन्म के कुछ दिन बाद बिगड़ने लगी तबीयत
जन्म के कुछ दिन बाद से ही अमन की तबीयत बिगड़ने लगी. इलाज कराने पर कुछ दिन तक तो सब कुछ ठीक चलता रहा, लेकिन 4 साल की उम्र होने पर जब परिजन उसे लेकर डॉक्टर के पास पहुंचे तो, पता लगा की उसकी दोनों किडनियां खराब हो चुकी हैं. बार-बार इलाज कराने के बाद भी जब कोई फायदा नहीं हुआ तो, डॉक्टरों की सलाह पर अमन की मां ने उसे अपनी एक किडनी देने का फैसला लिया
डॉक्टर बनना चाहता है अमन
अमन का कहना है कि बड़ा होकर वो डॉक्टर बनने के साथ-साथ एक ऐसी खोज करना चहाता है जिससे आर्टीफीशियल किडनी बनाना चाहता ताकि, किसी और को किडनी ट्रांस्प्लांट की जरूरत न पड़े.
Intro:एंकर - कि रब के हम पर करम नहीं होते मां नहीं होती तो हम नहीं होते यह लाइनें कोरिया जिले के मनेंद्रगढ़ में रहने वाले एक किशोर पर पूरी तरह खरी उतरती है । अपनी मां की बदौलत ही आज अमन इस दुनिया में है । 4 साल पहले अपने बेटे को अपने कलेजे के टुकड़े को अपनी एक किडनी देकर मां ने उसे एक बार फिर से जन्म दिया ।


Body:कोरिया जिले के मनेंद्रगढ़ में रहने वाले हरीश दुलानी की दो संतान हैं । बड़ा बेटा और उसके बाद बेटी । बेटे के जन्म के कुछ दिन बाद से ही बेटे को शारीरिक समस्या होने पर उन्होंने डॉक्टर को दिखाया । दवा के भरोसे कुछ समय तक तो सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहा लेकिन लगभग 14 वर्ष की उम्र होने पर अमन को जब दिखाने के लिए उनके परिजन डॉक्टर के पास लेकर गए तो डॉक्टर ने बताया की उसके दोनों किडनी खराब हो चुकी है । यह सुनते ही मां का कलेजा भराया और अपने आंख के सामने अपने बेटे को तिल तिल मरता देख डॉक्टरों की सलाह पर अपनी एक किडनी देने का फैसला किया । किडनी देने के बाद से दोनों मां और बेटे स्वस्थ जीवन बिता रहे हैं लेकिन एक मां के रूप में एक महिला के रूप में किसी को अपनी औलाद के कितनी चिंता होती है । इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि शुरुआत के दिनों में ही अमन की मां को इस बात का पता चला कि आगे चलकर अमन को बड़ी परेशानी हो सकती है और तब यह सोच कर कि हमारे बाद अमन की देखभाल कौन करेगा उन्होंने अपनी ननद का एक बेटा गोद ले लिया कि जब दुनिया में हम नहीं होंगे तो कम से कम अपने भाई के सहारे अमन गुजर-बसर कर सकेगा लेकिन 14 वर्ष की उम्र में जवाब दे दिया उन्होंने अपनी उन्होंने अपनी जमा पूंजी से किसी प्रकार अपने अमन का इलाज कराया । इस दौरान लगभग 19 लाख रुपये उपचार में खर्च हुए और दो लाख की शासकीय सहायता भी मिली । आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर हम ऐसे मां के जज्बे को सलाम करते हैं । जिसने अपने जिगर के टुकड़े को एक बार नहीं बल्कि 2 बार जीवन दिया वही जब हमने अमन से बातचीत की उसका कहना था कि दुनिया में मां और पिता से बढ़कर कोई नहीं होता और आज अमन लगभग 18 वर्ष का हो चुका है उसे हर 3 महीने में एक बार डॉक्टर चेकअप कराना पड़ता है । ऐसे में उसने फैसला लिया है कि आगे चलकर वह किडनी का डॉक्टर बनेगा और उसके इस फैसले में उसकी बहन भी भागीदार बन रही है । दोनों एक ऐसी खोज करना चाहते हैं जिसमें किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत ही ना पड़े और पीड़ित को आर्टिफिशियल किडनी बना कर दिया जा सके ताकि वह भी अपना जीवन आम आदमी की तरह गुजर बसर कर सके। बाइट - अमन दुलानी (पीड़ित) बाइट - महक (बहन) बाइट - प्रियंका (माँ)


Conclusion:बहरहाल यह तो साफ है कि महिला चाहे मां के रूप में हो चाहे बहन के रूप में हो चाहे बेटी चाहे पत्नी के रूप में वह किसी भी रूप में हो लेकिन उसका प्रेम उसकी भावनाएं सदा अपने परिवार के लोगों को समर्पित रहती है । वक्त चाहे जितना भी बदलता रहे लेकिन अगर दुनिया में कुछ नहीं बदलता है तो वह महिलाओं का स्वभाव ही है जिसमें हमेशा प्रेम की अविरल धारा बहती रहती है ।
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