कोरबा: भारतीय संस्कृति में धर्म और आस्था से जुड़ी अनेक किंवदंती हैं. चैत्र नवरात्रि के मौके पर हम आपको अलग-अलग मान्यताओं और अनोखी परंपराओं से अवगत कराएंगे. कोसगईगढ़, छत्तीसगढ़ का इकलौता माता का दरबार है, जहां श्वेत ध्वज चढ़ाया जाता है. इसी वजह से मां कोसगई को शांति का प्रतीक माना जाता है. माता कोसगई के विषय में पुरातन काल से कई मान्यताएं विख्यात है. यहां सफेद ध्वज चढ़ाने से माता प्रसन्न होती हैं.
600 फीट ऊंचे पहाड़ पर है माता का दरबार : माता कोसगई के मंदिर तक पहुंचना आसान नहीं है. यहां 600 फीट ऊंचे पहाड़ पर निर्मित किले में कोसगाई मां का मंदिर है. यहां भक्तजन शांति का प्रतीक सफेद ध्वज माता को अर्पित करते हैं. हरी-भरी वादियों और प्राकृतिक छटा के बीच माता कोसगाई माता का यह दरबार सजता है. पहाड़ की 50 फीट की ऊंचाई पर भीमसेन की प्रतिमा भी मौजूद है, जो यहां पहुंचने वाले श्रद्धालुओं के लिए एक आकर्षण का केंद्र है.
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माता के दरबार पर नहीं है छत: कोसगई देवी को छुरी राजघराने की कुलदेवी माना जाता है. पहाड़ के ऊपर मां का मंदिर तो बना है, लेकिन यहां कोई छत नहीं है. मान्यता है कि मां कोसगई को छत पसंद नहीं है. स्थानीय लोगों का यह भी कहना है कि "मां कोसगई के मंदिर पर छत बनाने के प्रयास कई बार हुए, कभी आंधी तूफान की वजह से, तो कभी किसी और कारण से छत बन ही नहीं पाई. तब से ग्रामीणों ने यह प्रयास करना ही छोड़ दिया."
सोलहवीं सदी में हुआ था मंदिर का निर्माण: जिला पुरातत्व संग्रहालय के मार्गदर्शक हरि सिंह क्षत्री कहते हैं कि "सोलहवी शताब्दी में हयहयवंशी राजा बहारेन्द्र साय ने मां कोसगई मंदिर की स्थापना की थी. इन्हें ही कलचुरी राजा भी कहा जाता है. वह रतनपुर से खजाना लेकर आए थे. इस खजाने को कोसगई में छुपाया था. "कोस" का मतलब होता है खजाना और "गई" का मतलब घर. इसलिए कोसगई का अर्थ है खजाने का घर है. खजाने की रक्षा और क्षेत्र में शांति की स्थापना के लिए कोसगई के मंदिर को स्थापित किया गया. एक और मान्यता यह है कि यहां कभी भी छत नहीं बन पाई. जिन लोगों ने भी मां कोसगई दरबार के ऊपर छत बनाने का प्रयास किया, वे सफल नहीं हो पाए. माता कोसगई को शांति के प्रतीक के तौर पर पूजा जाता है. इसलिए यहां शुरुआत से ही श्वेत ध्वज ही चढ़ाया जाता है."