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कोरबा: बढ़ते प्रदूषण का मछलियों पर बुरा असर, 10 प्रजातियों पर अस्तित्व का संकट

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Published : Nov 17, 2020, 8:00 AM IST

Updated : Nov 17, 2020, 9:19 AM IST

कोरबा में नदी, तालाबों और स्थानीय नालों में मछलियों की जो प्रजातियां बड़े पैमाने पर पाई जाती थीं, अब उनका अस्तित्व खत्म होता जा रहा है. छत्तीसगढ़ में मछलियों को स्वादिष्ट व्यंजन के तौर पर परोसा जाता रहा है, लेकिन अब ये विलुप्त होने की कगार पर हैं और इसकी वजह है बढ़ता प्रदूषण.

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मछलियों पर बुरा असर

कोरबा: अब से एक दशक पहले तक नदी-तालाबों और स्थानीय नालों में मछलियों की जो प्रजातियां बड़े पैमाने पर पाई जाती थीं, अब उनके अस्तित्व पर खतरा मंडराता दिख रहा है. बढ़ते औद्योगिक प्रदूषण ने कई जलीय जीव-जंतुओं को खत्म कर दिया है. कोरबा में भी नदी-तालाबों, नालों में मिलते औद्योगिक कचरे ने जलीय जंतुओं के अस्तित्व पर संकट खड़ा कर दिया है. कुछ साल पहले जहां यहां की साफ-सुथरी कल-कल बहती नदियों में रंग-बिरंगी मछलियां अठखेलियां करती थीं, तो वहीं आज हालात ये हैं कि मछलियों की कई प्रजातियां खत्म हो चुकी हैं और 10 प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर हैं.

मछलियों पर बुरा असर
प्रदूषण की मार झेल रही हसदेव नदी हो या फिर स्थानीय तालाब, ऐसे सभी स्थानों पर पारंपरिक तौर पर पाई जाने वाली मछलियों की प्रजातियों पर संकट पैदा हो गया है. मछलियों का सेवन छत्तीसगढ़वासी बड़े चाव से करते हैं, लेकिन जिन मछलियों को स्वादिष्ट व्यंजन के तौर पर परोसा जाता रहा है, अब उनका अस्तित्व खत्म होने पर पहुंच चुका है. मत्स्य विभाग के अधिकारियों की मानें, तो लगभग 10 प्रजातियां या तो विलुप्त होने की कगार पर हैं या इनमें से कुछ तो विलुप्त हो चुकी हैं. इस विषय में और भी गहन अध्ययन की आवश्यकता है. बढ़ते औद्योगिक प्रदूषण ने जलीय जनजीवन को बुरी तरह से प्रभावित किया है. मछलियों का प्राकृतिक घर चाहे बड़ी नदियां, छोटे नाले या फिर तालाब हों, सभी इसकी चपेट में हैं. पढ़ें- कोरबा: मछली बीज वितरण में गड़बड़ी की शिकायत, दोषियों पर होगी कार्रवाई


आर्सेनिक जैसे घातक केमिकल बेहद खतरनाक

खासतौर पर कोरबा में छोटे-बड़े मिलाकर कुल 14 पॉवर प्लांट हैं. इसके अलावा कोयला खदानों की भी भरमार है. जहां से बड़े पैमाने पर केमिकल युक्त पानी नदी-नालों में बहाया जाता है. जिसमें आर्सेनिक जैसे घातक केमिकल शामिल होते हैं. इस तरह के केमिकल जलीय जीव-जंतुओं के लिए बेहद नुकसानदायक हैं. उन पर इसका बेहद बुरा प्रभाव पड़ता है.

मछलियों की इन प्रजातियों पर संकट

छत्तीसगढ़ में आसानी से सुलभ हो जाने वाली देसी मांगुर, चिंगरी, पढिना, भुंडा, लपची, सारंगी भेदो जैसी मछलियों की लगभग 10 प्रजातियां या तो लुप्त हो चुकी हैं या तो विलुप्त होने की कगार पर हैं. चिंगरी का विकास पिछले कुछ सालों की तुलना में रुक गया है. इसके आकार में भी काफी परिवर्तन हुआ है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार कई मछलियों की प्रजातियां अब देखने को नहीं मिलतीं, जो करीब एक दशक पहले तक आसानी से किसी भी नदी-नाले में मिल जाती थी. विशेषज्ञों का कहना है कि अगर ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो इस तरह की कई मछलियों के अस्तित्व पर और भी खतरा उत्पन्न हो सकता है.

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प्रदेश में मछलियों की 107 प्रजातियां

रोहू और कतला के साथ ही छत्तीसगढ़ में मछलियों की कुल 107 प्रजातियों के पाए जाने का आंकड़ा मिलता है. इनमें से प्रमुख रूप से रोहू, कतला, मृगल, चिलघटी, कोतरी, कुरसा, कालपोस, बोराई, जरही, कोतरी, डरई, सिंघी, टेंगना, डुडूम, बामन, चीतल, कुबड़ी, पढिना, खोक्सी प्रमुख हैं.


कई तरह के हो सकते हैं कारण

मछली की प्रजातियों के विलुप्त होने के और भी कई कारण हो सकते हैं. औद्योगिक प्रदूषण के साथ ही विशेषज्ञों की राय है कि कई स्थानों पर छोटे जाल से मछलियों को पकड़ा जाता है. छोटे जाल के प्रयोग से मछलियों के अंडे और इस्पान खत्म हो जाते हैं. प्रजनन काल में मछलियों का शिकार करने से भी मछलियों का प्राकृतिक आवास प्रभावित होता है. एक सर्वे के मुताबिक विश्वभर में मछलियों की 21 हजार 723 प्रजातियां पाई जाती हैं. जिनमें से भारत में 2 हजार 500 प्रजातियों के पाए जाने का उल्लेख मिलता है. मीठे पानी में 930 और समुद्री जल में 1500 से ज्यादा मछलियों की प्रजातियां पाई जाती हैं.

Last Updated : Nov 17, 2020, 9:19 AM IST
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