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ऐसे मनाया जाता है छत्तीसगढ़ का 'फ्रैंडशीप डे' यानी भोजली महोत्सव

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Published : Aug 16, 2019, 11:39 PM IST

एक ओर जहां आज की युवा पीढ़ी पश्चिमी संस्कृति की ओर झुकती चली जा रही है, वहीं दूसरी ओर प्रदेश में कुछ ऐसे त्यौहार हैं जो सभी पुरानी परंपराओं को जीवित रखे हुए हैं. ऐसा ही एक त्यौहार 'भोजली' आज पूरे प्रदेश में मनाया गया. जिसे छत्तीसगढ़ का 'फ्रैंडशीप डे' भी कहा जाता है. आइए जानते है इस रोचक त्यौहार के बारे में.....

छत्तीसगढ़ का मित्रता दिवस भोजली महोत्सव

कवर्धा: छत्तीसगढ़ का मित्रता दिवस कहा जाने वाला भोजली त्योहार बड़े ही धूमधाम से मनाया गया. इस दौरान क्षेत्र के लोगों ने एक-दूसरे के कानों में भोजली लगाकर जीवनभर दोस्ती निभाने का वचन लिया.

अनूठी है भोजली की परंपरा
एक ओर जहां पूरे देश में फ्रैंडशिप डे पर बैण्ड बांधने का चलन है, वहीं दूसरी ओर अपनी अनोखी परंपराओं के लिए मशहूर छत्तीसगढ़ में कान में भोजली लगाने की एक अनूठी परंपरा है. भोजली के दिन लोग एक दूसरे के कान में भोजली लगाकर जीवनभर दोस्ती निभाने का वचन देते हैं.

धूमधाम से मनाया गया भोजली का त्यौहार

राजमहल में किया जाता आयोजन
छत्तीसगढ़ मे रक्षाबंधन के दूसरे दिन मनाएं जाने वाली इस भोजली त्योहार को प्रदेश का मित्रता दिवस कहा जाता है. राजमहल में भोजली पर्व को लेकर कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. नगर की महिलाएं गाजे-बाजे के साथ सिर पर भोजली रख कर राजमहल पहुंचती हैं. जहां पर राजपरिवार के सदस्य भोजली की पूरे विधि विधान से पूजा अर्चना करते हैं. इसके बाद भोजली को महल में राजा-महाराजाओं द्वारा बनवायी गयी भोजली तालाब में जाकर विसर्जन कर दिया जाता है.

साल 1730 से चली आ रही परंपरा
महल में भोजली पर्व मनाने कि परम्परा साल 1730 से चली आ रही है, जो आज भी कायम है. राजपरिवार की पूर्व महारानी कृतिदेवी सिंह, अपने बेटे राजकुमार मैखलेश्वराज सिंह के साथ महल परिसर में मौजूद रहती है. जो आने वाले लोगों से मुलाकात करतीं हैं और उनका अभिवादन स्वीकार करती हैं. इसे देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग आते हैं. इस दौरान महल में आने वाले लोगों के लिए भजन किर्तन का भी आयोजन किया जाता है.

सैकड़ों साल पुरानी है ये परंपरा
इस परम्परा को आदि काल से मनाया जा रहा है. यह परंपरा सैकड़ों साल पुरानी है. राजमहल में भी जब से राजा महराजा रह रहे है तब से यह त्योहार मनाया जा रहा है.

Intro:छत्तीसगढ़ का परम्परागत त्योहार भोजली इस मित्रता दिवस भी कहा जाता है। इस त्योहार को बडे धुमधाम से मनाया गया इस दौरान अनेकों महिलाओं ने अपने बच्चे दोस्त के रुप मे भोजली कानो मे लगाकर वचन लिया और पुरे जीवन दोस्ती निभाने का वादा किया।


Body:एकंर- कवर्धा मे छत्तीसगढ़ की परम्परागत त्योहार भोजली बडे धुमधाम से मनाया गया। आपको बता दें कि छत्तीसगढ़ मे रक्षाबंधन के दुसरे दिन मनाएं जाने वाले इस त्योहार को भोजली को प्रदेश का मित्रता दिवस भी कहा जाता है, राज महल मे भोजली वर्प को लेकर आयोजन किया जाता है। नगर कि महिलाएं सिर मे भोजली रख कर राजमहल पहुंचती है , जहां पर राजपरिवार के सदस्य भोजली की पूरे विधि विधान से पूजा अर्चना करते है। इसके बाद महल के पास बने राजा महराजाओं द्वारा बनवाया गया भोजली तलाब मे लिजा कर विसर्जन कर दिया जाता है। महल मे भोजली पर्व मनाने कि परम्परा सन् 1730 से चली आ रही है, जो आज भी कामय है। कवर्धा राजपरिवार की पूर्व महारानी कृतिदेवी सिंह, अपने बेटे राजकुमार मैखलेश्वराज सिंह के साथ महल परिसर मे मौजूद रहती है, जो आने वाले लोगों से मुलाकात करती है और उनका अभिवादन स्वीकार करते है, इसे देखने के लिए बडी संख्या मे लोग मौजूद रहते है। इस दौरान महल मे आने वाले लोगों के लिए भजन किर्तन का भी आयोजन रखा जाता है।


Conclusion:राजपरिवार के महराज बताते है कि ऐ पर्व आदि माता भवनी का रुप माना जाता है इस परम्परा को आदी काल से मनाया जा रहा है और राजमहल मे भी जब से कवर्धा मे राजा महराजा रह रहे सौकड़ों वर्षो से मनाया जा रहा है। बाईट01 जोती यादव, महिला बाईट02 सनत कुमार शर्मा ,महराज
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