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BASTAR DUSSEHRA 2022: बस्तर दशहरा की महत्वपूर्ण रस्म मावली परघाव

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Published : Oct 5, 2022, 7:33 AM IST

Updated : Jul 25, 2023, 7:57 AM IST

BASTAR DUSSEHRA 2022: बस्तर दशहरा (bastar dussehra) में हर रोज एक-एक रस्म पूरी की जा रही है. इसी कड़ी में बीती रात मावली परघाव की रस्म पूरी की गई. बस्तर के राजकुमार कमलचंद भंजदेव (Prince Kamalchand Bhanjdev of Bastar) ने आतिशबाजी और फूलों से मावली देवी का भव्य स्वागत किया.

बस्तर दशहरा
बस्तर दशहरा

जगदलपुर: विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व की एक और महत्वपूर्ण मावली परघाव रस्म देर रात अदा की गई. 2 देवियों के मिलन के इस रस्म को जगदलपुर दंतेश्वरी मंदिर के प्रांगण कुटरूबाढ़ा में अदा की गई. परंपरा अनुसार इस रस्म में दंतेवाड़ा से मावली देवी की छत्र डोली और दंतेश्वरी के छत्र को जगदलपुर के दंतेश्वरी मंदिर लाया जाता है, जिसका स्वागत बस्तर के राजपरिवार सदस्य और बस्तरवासी करते है. कोरोनाकाल के बाद इस साल यह रस्म धूमधाम से मनाई गई. नवरात्रि के नवमी में मनाए जाने वाले रस्म को देखने हर साल बड़ी संख्या में लोगों का जनसैलाब उमड़ता है, इस रस्म को देखने बड़ी संख्या में स्थानीय लोग पहुंचे थे.

बस्तर दशहरा की महत्वपूर्ण रस्म मावली परघाव
दंतेवाड़ा से पहुंची डोली और छत्र का बस्तर के राजकुमार ने भारी आतिशबाजी और फूलों से भव्य स्वागत किया. दंतेश्वरी मंदिर के प्रांगण में मनाए जाने वाले इस रस्म को देखने हजारों की संख्या में हर साल लोग पहुंचते हैं. मान्यता के अनुसार 600 वर्ष से पूर्व रियासतकाल से इस रस्म को धूमधाम से मनाया जाता है. बस्तर के महाराजा रुद्र प्रताप सिंह डोली का भव्य स्वागत करते थे, यह परंपरा आज भी बस्तर में बखूबी निभाई जाती है.परंपराओं के अनुसार देवी मावली कर्नाटक राज्य के मलवल्य गांव की देवी हैं, जो छिन्दक नागवंशी राजा द्वारा उनके बस्तर के शासनकाल में लाई गई थीं. छिंदक नागवंशी राजाओं ने 9वीं और 14वीं शताब्दी तक बस्तर में शासन किया. इसके बाद चालुक्य वंश के राजा अन्नम देव ने जब बस्तर में अपना नया राज्य स्थापित किया, तब उन्होंने देवी मावली को भी अपनी कुलदेवी के रूप में मान्यता दी.

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मावली देवी का बस्तर दशहरा पर्व में यथोचित सम्मान और स्वागत करने के लिए मावली परघाव रस्म शुरू की गई. विशेष जानकारों के मुताबिक, नवरात्रि के नवमी के दिन दंतेवाड़ा से आई मावली देवी की डोली का स्वागत करने बस्तर राजपरिवार सदस्य, राजगुरु और पुजारी के अलावा स्थानीय जनप्रतिनिधि राजमहल से मंदिर के प्रांगण तक आते हैं. उनकी अगवानी और पूजा-अर्चना के बाद देवी की डोली को बस्तर के राजकुमार कंधों पर उठाकर राजमहल स्थित देवी दंतेश्वरी के मंदिर में लाकर रखते हैं. साथ ही दशहरे के समापन पर इसकी ससम्मान विदाई होती है.

बस्तर राजकुमार कमलचंद भंजदेव (Prince Kamalchand Bhanjdev of Bastar) ने बताया कि विश्व प्रसिद्ध दशहरा पर्व में मावली को शामिल होने के लिए नवरात्रि के पंचमी के दिन बकायदा बस्तर के राजा न्योता देने दंतेवाड़ा जाते हैं. उसके बाद महाष्टमी के शाम मावली माता की डोली और छत्र को शहर के दंतेश्वरी मंदिर प्रांगण से 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जिया डेरा नामक एक मंदिर में रखा जाता है. नवमी के दिन शाम को पूरे जोश और आतिशबाजी के साथ श्रद्धालु हाथों में दीए लिए मंदिर के प्रांगण में मावली माता का स्वागत करते हैं. बस्तर राजपरिवार सदस्य कमलचंद भंजदेव द्वारा डोली की पूजा-अर्चना की जाती है, जिसके बाद इसे दशहरा पर्व समापन होने तक मंदिर के भीतर रखा जाता है.

दशहरा के दौरान होने वाली महत्वपूर्ण रस्म भीतर रैनी और बाहर रैनी, कुटुम जात्रा, काछन जात्रा में डोली और छत्र को शामिल किया जाता है. बस्तर राजपरिवार सदस्य कमलचंद देव ने बताया कि हर्षोल्लास के साथ पूरे विधि-विधान से दशहरा के रस्मों को सम्पन्न कराया जा रहा है. मावली परघाव के रस्म की अदाएगी धूमधाम से की गई.

Last Updated : Jul 25, 2023, 7:57 AM IST
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