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First Somwar Of Sawan 2023: सावन के पहले सोमवार पर जानिए दुर्ग के देवबलौदा शिव मंदिर की महिमा, यहां आज भी स्थापित है प्राचीन शिवलिंग !

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Published : Jul 10, 2023, 6:21 AM IST

First Somwar Of Sawan 2023
सावन का पहला सोमवार

First Somwar Of Sawan 2023: सावन का पहला सोमवार भोले बाबा के भक्तों के लिए काफी अहम है. इस दिन श्रद्धालु शिवालयों और मंदिरों में भगवान शिव की पूजा अर्चना करते हैं. इस अवसर पर हम आपको दुर्ग के देवबलौदा शिव मंदिर की विशेषता बताने जा रहे हैं. Glory Of Devbaloda Shiva Temple

दुर्ग: भगवान शिव को सावन का महीना बहुत प्रिय है. शिवभक्त सावन को शिव का सावन के तौर पर मानते हैं. ऐसे में सावन के पहले सोमवार पर बात करते हैं देवबलौदा शिव मंदिर की. इस मंदिर को 13वीं शताब्दी में कलचुरी राजाओं ने बनवाया था. इसे छहमासी शिव मंदिर के तौर पर भी जाना जाता है. यह दुर्ग जिले चरोदा रेलवे लाइन के किनारे देवबलौदा गांव में स्थित है.

  1. सावन और शिवरात्रि में देवबलौदा शिव मंदिर में होती है विशेष पूजा: शिव के इस धाम की महिमा ऐसी है कि जो भी भक्त यहां मनोकामना मांगते हैं. वह पूरी हो जाती है. सावन के महीने और महाशिवरात्रि के अवसर पर यहां खास आयोजन होता है. सावन महीने में श्रद्धालु दूर दूर से यहां जलाभिषेक करने आते हैं. इस मंदिर के प्रति श्रद्धालुओं की अपार श्रद्धा है. इसलिए यहां हर साल देवबलोदा महोत्सव आयोजित किया जाता है. सावन के महीने में यह मंदिर बोल बम के नारों से गूंज उठती है.
    Ancient Shivling in Devbaloda Shiva Temple
    देवबलौदा शिव मंदिर में प्राचीन शिवलिंग
  2. नागर शैली में बना है देवबलौदा शिव मंदिर: इतिहास और धर्म के जानकार बताते हैं कि, देवबलौदा शिव मंदिर का निर्माण नागर शैली में हुआ है. इसमें नवरंग मंडप नागर शैली का इस्तेमाल किया गया है. जिससे यह शिवालय लोगों की आस्था का केंद्र बनता जा रहा है. इस मंडप में 10 स्तंभ है. जिसमें शैव द्धारपाल के रूप में विभिन्न आकृतियां उकेरी गई हैं. इस मंडप का छत भी पत्थरों से बना है. देवबलौदा शिव मंदिर के निर्माण में कलचुरी काल के स्थापत्य कला के नमूने देखने को मिलते हैं.
    Devbaloda Shiva temple built in Nagara style
    नागर शैली में बना देवबलौदा शिव मंदिर
  3. देवबलौदा शिव मंदिर के बारे में भारतीय पुरातत्व विभाग की राय: भारतीय पुरातत्व विभाग और राष्ट्रीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग भी इस मंदिर को बेहद अमूल्य धरोहर मानता है. भारतीय पुरातत्व विभाग के मुताबिक" देवबलौदा शिव मंदिर का निर्माण कलचुरी राजाओं ने 13वीं शताब्दी में कराया था. मंदिर की बनावट काफी भव्य है. इस मंदिर की दीवारों पर कई तरह की नक्काशियां की गई है."
  4. देवबलौदा शिव मंदिर के दीवारों पर रामायण का जिक्र: इसके साथ ही दीवारों पर पशु, पक्षी, पर्यावरण और रामायण को उकेरा गया है. रामायण के पात्र को इसमें दिखाया गया है. इसके अलावा संगीत की जानकारी भी मदिर के दीवारों पर दी गई है. मंदिर के बरामदे का निर्माण बड़े बड़े शिलाओं को काटकर किया गया है. गर्भ गृह मंदिर के नीचे 6 फीट अंदर है. इसमें जाने के लिए सीढियां बनाई गई है. यहां पर भगवान भोलेनाथ और अन्य देवी देवताओं की मूर्तियां हैं.
    Many types of carvings on the walls of the temple
    मंदिर की दीवारों पर कई तरह की नक्काशियां
  5. देवबलौदा शिव मंदिर के गर्भ गृह में प्राचीन शिवलिंग स्थापित: देवबलौदा शिव मंदिर को जो बात सबसे ज्यादा पूज्य बनाती है. वह है इस मंदिर का शिवलिंग. इस मंदिर में आज भी प्राचीन शिवलिंग विराजमान है. इस शिवलिंग की प्रतिदिन विधि विधान से पूजा की जाती है. इसके अलावा भगवान शिव के साथ भगवान जगन्नाथ, माता पार्वती समेत कई देवी देवताओं की मूर्तियां यहां विराजमान है. इस शिवधाम के मुख्य द्धार पर भगवान गणपति की दो बड़ी मूर्तियां हैं. मंदिर के ठीक सामने भगवान नंदी की मूर्ति है. पुरातत्व विभाग इसका संरक्षण करती है.
  6. मंदिर परिसर के पास खुदाई में मिली कई मूर्तियां: इस मंदिर परिसर के पास कुछ साल पहले खुदाई की गई थी. जिसमें कई और मूर्तियां मिली है. इन मूर्तियों को लेकर शोध जारी है. जानकार बताते हैं कि यहां से जो मूर्तियां और प्रतिमाएं मिली हैं. उससे कलचुरी काल की जानकारी मिलती है. यह मंदिर कलचुरी कालीन स्थापत्य कला की पहचान को उजागर करता है.
  7. देवबलौदा शिव मंदिर के निर्माण से जुड़ी कहानी: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के रिटायर कर्मचारी गंगाधर नागदेवे ने इस मंदिर के जुड़ी कहानी बताई है. उन्होंने बताया कि" इस मंदिर के निर्माण से जुड़ी एक मान्यता यह भी है कि, जब शिल्पकार इस मंदिर को बना रहा था. तो वह इसके निर्माण में इतना रम गया कि उसे कपड़े तक का होश नहीं था. मूर्ति बनाते वक्त कब उसके शरीर से कपड़ा गिर गया उसे पता ही नहीं चला. उस शिल्पकार के लिए उस दिन उसकी पत्नी की जगह बहन खाना लेकर आई. जब उस मूर्तिकार ने अपनी बहन को देखा तो वह बेहद शर्मिंदा हो गया और उसने खुद को छिपाने के लिए मंदिर के ऊपर से कुंड में छलांग लगा दी. इस घटना के बाद उसकी बहन ने भी बगल के तालाब में कूदकर प्राण त्याग दिए. आज भी इस मंदिर में कुंड और तालाब मौजूद है. तालाब का नाम करसा तालाब है. क्योंकि जब शिल्पकार की बहन उसके लिए खाना लेकर आ रही थी. तब उसके हाथ में भोजन और सिर पर पानी का कलश था. इस तालाब के बीच में आज भी कलशनुमा पत्थर है."
    Kund of Devbaloda Shiva Temple
    देवबलौदा शिव मंदिर का कुंड
  8. देवबलौदा शिव मंदिर को 6 मासी शिव मंदिर क्यों कहा जाता है: देवबलौदा मंदिर के निर्माण से जुड़ी एक जानकारी यह भी है कि" इस मंदिर का निर्माण लगातार 6 महीने तक जारी रहा था. इस दौरान 6 महीने तक रात ही थी. इसलिए इसे 6 मासी मंदिर कहा जाता है. जानकार बताते हैं कि 6 महीने तक जब इस मंदिर का निर्माण किया जा रहा था. तब रात थी. राजा ने रात में ही इस मंदिर का निर्माण करने के लिए शिल्पकार को कहा था. लेकिन 6 महीने रात का समय गुजर गया. जिसके बाद ऊपर के गुंबद का काम अधूरा छोड़ दिया गया.मंदिर के अंदर करीब तीन फीट नीचे गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग और मंदिर के बाहर बने कुंड को लेकर कई कहानियां और मान्यताएं आज भी प्रचलित है. इस मंदिर का निर्माण करने वाला कारीगर इस मंदिर को अधूरा छोड़कर गुप्त सुरंग के जरिए आरंग भाग गया. लेकिन वहां पहुंचने के बाद वह श्राप की वजह से पत्थर का हो गया. उस शिल्पकार की मूर्ति आज भी आरंग में मौजूद है".
  9. देवबलौदा शिव मंदिर के कुंड में है सुरंग: देवबलौदा शिव मंदिर के कुंड में एक सुरंग भी है. यह सुरंग गुप्त है. जो आरंग के मंदिर के पास निकलती है. बताया जाता है कि यहां मौजूद कुंड के भीतर दो कुएं हैं. जानकारों का कहना है कि एक कुएं का संबंध सीधे पाताललोक से है. जबकि दूसरे कुएं का पानी कभी नहीं सूखता है. जब शिल्पकार इस कुंड में कूदा तो वह सुरंग में समा गया और उसके सहारे वह आरंग निकल गया. इस कुंड में कुल 23 सीढ़ी है. इसके साथ ही एक कुंड में पाताल तोड़ कुआं है. जिससे लगातार पानी निकलता रहता है.
    Kund of Devbaloda Shiva Temple
    देवबलौदा शिव मंदिर का कुंड

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