बस्तर में लकड़ियों की तस्करी रोकने के लिए मुस्तैद वन विभाग

author img

By

Published : Sep 18, 2021, 6:04 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 7:57 AM IST

night patrol

घने जंगलों में लकड़ियों की तस्करी को रोकने के लिए वन विभाग ने अपनी कमर कस ली है. लेकिन वन विभाग के कर्मचारियों के पास तस्करों से निपटने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं है. इसके बाद भी वन विभाग के कर्मचारी सीमित संसाधन के बिना रात के समय वनों में गश्त लगाते हैं.

जगदलपुर: छत्तीसगढ़ के बस्तर को वनों का द्वीप कहा जाता है, यहां के सालवन विश्व प्रसिद्ध है. पूरी तरह से वनों से घिरे बस्तर में वन तस्करों की भी नजर रहती है. खासकर बस्तर संभाग के बीजापुर और बस्तर जिले के माचकोट इलाके में बड़ी संख्या में तस्कर मौजूद रहते हैं और धड़ल्ले से वनों की कटाई करते हैं. इन तस्करों से निपटने के लिए विभाग अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठा पाया है. लिहाजा वन तस्करों को पकड़ने के लिए कई बार ग्रामीण अंचलों में बने वन समिति के लोगो और वन कर्मचारियों को तस्करों का सामना करना पड़ता है और तस्करों को पकड़ने में कई बार वन कर्मचारी गंभीर रूप से घायल भी हुए हैं.

तस्करी रोकने के लिए मुस्तैद वन विभाग

तस्करी से वनों को काफी नुकसान

आलम यह है कि दूसरे राज्यों के तस्कर बड़ी संख्या में बस्तर जिले के माचकोट एरिया में वनों की कटाई (Deforestation in Machkot area) करते हैं और जिससे वनों को काफी नुकसान होता है. वन कर्मचारियों के पास हथियार और अन्य संसाधनों की कमी की वजह से इन तस्करों को पकड़ पाने में वन कर्मचारी (forest worker) नाकामयाब साबित हो रहे हैं. इसके साथ ही इन तस्करों के हमले का भी लगातार शिकार हो रहे हैं.

dense forest
घने जंगल

तस्करों के हमले

बस्तर जिले का माचकोट जंगल लंबे समय से सीमावर्ती उड़ीसा राज्य के तस्करों (smugglers from orissa) के निशाने पर है. उड़ीसा के तस्कर यहां के साल वृक्षों पर कुल्हाड़ी चला रहे हैं. वन कर्मियों की ओर से रोके जाने पर तस्कर घातक हथियारों से हमला कर देते हैं. इनके प्राणघातक हमले से बस्तर जिले में पिछले 5 सालों में 25 से अधिक वन कर्मचारी व अधिकारी गंभीर रूप से घायल हो चुके हैं.

लेकिन वन रक्षक जान की परवाह किए बिना तस्करों से इस खूबसूरत जंगल को बचाने में दिन-रात जुटे हैं. विभाग ने तस्करों को रोकने के लिए माचकोट के परिक्षेत्र में छत्तीसगढ़-उड़ीसा सीमा (Chhattisgarh-Orissa border) पर 18 किलोमीटर लंबी कांटेदार तारों की फेसिंग भी लगाई है. लेकिन इसको काटकर तस्कर यहां प्रवेश कर रहे हैं. ऐसे में माचकोट वन प्रबंधन समिति के एक दर्जन से ज्यादा वनरक्षक डंडों से अपने जंगलों को बचाने में डटे हैं.

dense forest
घने जंगल

वनों की अंधाधुंध कटाई

वन विभाग के बड़े अधिकारियों का भी मानना है कि लगातार माचकोट एरिया में तस्कर सक्रिय हैं और वनों की अंधाधुंध कटाई भी कर रहे हैं. साथ ही वन कर्मियों के पास हथियार नहीं होने की वजह से तस्करों के हमले से कई वन कर्मी और अधिकारी के साथ ही समिति के सदस्य भी बुरी तरह से घायल भी हुए हैं.

बस्तर के सीसीएफ ने बताया कि केवल माचकोट ही नहीं बल्कि बीजापुर जिले के इंद्रावती टाइगर रिजर्व एरिया (Indravati Tiger Reserve Area) में भी महाराष्ट्र की सीमा लगे होने की वजह से यहां भी बड़ी मात्रा में वन तस्करी की सूचना मिलती आई है. हालांकि वन अमला अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रही है कि कैसे भी वनों की तस्करी को रोका जाए और तस्करों की धरपकड़ की जाए. लेकिन वन कर्मचारियों के पास पर्याप्त संसाधन और हथियार नहीं होने की वजह से कई तस्कर तड़के सुबह या रात में वनों की तस्करी कर फरार हो जाते हैं.

dense forest
घने जंगल

घातक हथियार से लैस तस्कर

बस्तर के सीसीएफ मो. शाहिद ने बताया कि पहले बस्तर में वन अधिकारियों के साथ ही सीमावर्ती इलाकों में ड्यूटी करने वाले वन कर्मियों के पास भी वायरलेस की सुविधा थी लेकिन जब से मोबाइल की सुविधा मिली है. तब से वायरलेस सेट की सुविधा समाप्त कर दी गई. लेकिन जिस तरह से अब लगातार वन तस्करों की ओर से वन कर्मचारियों पर प्राणघातक हमला किया जा रहा है. ऐसे में फिर से वन अधिकारी और कर्मचारियों को वायरलेस सेट देने पर विचार किया जा रहा है. इसके अलावा वन कर्मियों के पास बंदूक जैसे हथियार को लेकर कहा कि बस्तर नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने की वजह से यहां वन कर्मचारियों को बंदूक नहीं दिया जा रहा है. हालांकि इसके लिए भी राज्य शासन को पत्र लिखा गया है और अब तक इस पर कोई जवाब नहीं मिल पाया है.

रात में गश्त

गौरतलब है कि वनों की तस्करी रोकने के लिए वन विभाग में पिछले 5 महीनों से रात्रि गश्त की शुरुआत की है और इस दौरान वन परीक्षेत्र अधिकारी के समय डिप्टी रेंजर, बीट गार्ड और वन कर्मचारियों को अपने क्षेत्र में रातभर गश्त के आदेश भी दिए गए हैं. लेकिन आधे अधूरे संसाधन से यह टीम गश्त तो करती है. लेकिन तस्करों से आमना सामना होने पर उनसे निपटने के लिए वन अधिकारियों और कर्मचारियों पर डंडे के अलावा और कोई दूसरे हथियार नहीं है. वहीं वन तस्कर पूरी तरह से धारदार हथियारों से लैस होते हैं. यही वजह है कि कई बार बस्तर के वन कर्मचारी तस्करों के शिकार हुए हैं और गंभीर रूप से घायल भी हुए हैं.

संसाधनों की मांग तेज

इधर बस्तर जैसे सघन वन क्षेत्र में वनों की रक्षा वन विभाग के कर्मचारियों के लिए काफी चुनौतीपूर्ण है. उनकी मांग है कि अगर तस्करों से निपटने के लिए उन्हें हथियार समेत पूरे संसाधन दिए जाते हैं तो काफी हद तक बस्तर में वनों की तस्करी रोकी जा सकती है. फिलहाल वर्तमान में वन रक्षकों के साथ ही वन अधिकारी और वन प्रबंधन समिति (forest management committee) के सदस्य दिन-रात बिना संसाधन के इन वनों की रक्षा के लिए जुटे हैं.

Last Updated :Jul 25, 2023, 7:57 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.