ETV Bharat / city

कौन थे सर्वपल्ली राधाकृष्णन, जानिए उनसे जुड़ी अनकही बातें

author img

By

Published : Sep 5, 2021, 5:14 PM IST

छात्रों को हर साल 5 सितंबर का बेसब्री से इंतजार रहता है. मौका होता है शिक्षक दिवस( (Teacher day) के रूप में गुरुजनों का सम्मान करने का. यह शिक्षक दिवस देश के पूर्व राष्ट्रपति स्व. सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन (Sarvepalli Doctor Radhakrishnan)के मधुर स्मृतियों को याद करते हुए मनाया जाता है. कौन थे सर्वपल्ली राधाकृष्णन, आइए जानते हैं उनसे जुड़ी कुछ अनकही बातें..

Who was Sarvepalli Radhakrishnan, know untold things related to him
कौन थे सर्वपल्ली राधाकृष्णन, जानिए उनसे जुड़ी अनकही बातें

रायपुर/हैदराबादः पूर्व राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन (Sarvepalli Doctor Radhakrishnan) का मानना था कि पूरी दुनिया एक स्कूल है. जहां लोग कुछ न कुछ सीखने के लिए ही आते हैं. सवाल सिर्फ यह है कि वह क्या और कितना कुछ सीख पाता है. शिक्षक(teacher) सिर्फ हमें पढ़ाते नहीं बल्कि अच्छे-बुरे का फर्क (difference between good and bad) भी सिखाते हैं.

देश का भविष्य ही शिक्षकों के हाथों में होता है जो एक कुशल कुम्हार की तरह अपने सृजनकारी (creative education) शिक्षा से नई पीढ़ी रुपी भविष्य का निर्माण करते हैं. डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का बच्चों से अटूट स्नेह था. इन्हें वह देश की भविष्य मानते थे और उनके हर तरीके के विकास को बल देते थे. जिस तरह से उन्होंने बच्चों के जीवन में शिक्षकों का अहमियत बताई, उन्हीं की याद में इस दिन को सेलिब्रेट किया जाने लगा.

बच्चों के भविष्य निर्माण में शिक्षकों की बड़ी जिम्मेदारी

उनका कहना था कि बच्चों का भविष्य बनाने में शिक्षक का सबसे बड़ा योगदान है. शिक्षक उसके सुंदर और उज्जवल भविष्य के लिए ज्ञान देते हैं. उन्हें बताते हैं कि जीवन में उन्हें किस तरह आगे बढ़ना है, क्या अच्छा है और क्या बुरा है. एक बेहतर शिक्षा के जरिये शिक्षक अपने विद्यार्थियों को न सिर्फ बेहतर भविष्य की कामना करते हैं, बल्कि उनका हमेशा यह प्रयास रहता है कि वह जीवन में इतना तरक्की करे कि वह एक दिन उनका नाम जरूर रोशन करें. उनके इन्हीं संदेशों से प्रेरित देश के करोड़ों बच्चे शिक्षक दिवस पर गुरूजनों का सम्मान करते हैं.

एक महान दार्शनिक थे डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन (Dr Sarvapalli Radhakrishnan) एक महान भारतीय दार्शनिक (Great Indian Philosopher), विद्वान और राजनीतिज्ञ थे. उनका जन्म 5 सितंबर 1888 को तमिलनाडु के मद्रास प्रांत के थिरुत्तानी में हुआ था. उस समय भारत पर ब्रिटिश हुकुमत थी. वह एक तेलगु परिवार में जन्में थे. उनके पिता का नाम सर्वपल्ली वीरस्वामी (Sarvepalli Veeraswami) था जो अधीनस्थ राजस्व अधिकारी (Subordinate Revenue Official) थे और उनकी माता का नाम सर्वपल्ली सीता (Sarvepalli Sita) था.

उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय (University of Madras) से दर्शनशास्त्र में परास्नातक (Masters’ in Philosophy) किया और बाद में मैसूर विश्वविद्यालय और कलकत्ता विश्वविद्यालय में पढ़ाने के लिए चले गए. यहां वह छात्रों के बीच भी लोकप्रिय रहे. उनके फिलॉसफी और उपदेश ने दुनिया भर में एक बड़ा प्रभाव डाला.

1962 में मनाया गया पहला शिक्षक दिवस

इतिहास में पहला शिक्षक दिवस 1962 में मनाया गया. इसी साल उन्होंने राष्ट्रपति का पद भार संभाला. वह देश के पहले उपराष्ट्रपति थे और राजेंद्र प्रसाद के बाद दूसरे राष्ट्रपति बने. उनकी सम्मानित स्थिति का जश्न मनाने के लिए छात्रों ने सुझाव दिया कि उनके जन्मदिन को 'राधाकृष्णन दिवस' के रूप में मनाया जाए. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने इस कदम को अस्वीकार किया और सुझाव दिया कि उनका जन्मदिन मनाने के बजाय 5 सितंबर को 'शिक्षक दिवस' के रूप में मनाया जाय. यह उनका गौरवपूर्ण विशेषाधिकार होगा.

उन्होंने अपने जीवन में MA, D.Litt. (Hony.), LLD., DCL, Litt.D., DL, FRSL, FBA समेत कई डिग्रियां हासिल की. 1917 में उनकी पहली पुस्तक, द फिलॉसफी ऑफ रवींद्रनाथ टैगोर ( The Philosophy of Rabindranath Tagore ) ने भारतीय फिलॉसफी पर दुनिया को आकर्षित किया. उन्होंने चेन्नई के प्रेसीडेंसी कॉलेज और कलकत्ता विश्वविद्यालय में पढ़ाई की. 1918–21 तक मैसूर और 1931-41 तक कोलकाता में फिलॉसफी के प्रोफेसर के रूप में काम किया.

TEACHERS DAY : शिक्षिका सुनीता ने कोरोना काल में शुरू की मोहल्ला लाइब्रेरी, ताकि जारी रहे बच्चों की पढ़ाई

1931 से 1936 तक रहे आध्रां विवि के वीसी

उसी बीच 1931 से लेकर 1936 तक वह आध्रां विवि के कुलपति भी रहे.1936 से 1952 तक वह इंग्लैंड में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय ( University of Oxford in England ) में पूर्वी धर्मों और नैतिकता के प्रोफेसर रहे. 1939 से 1948 तक वह भारत की बनारस हिंदू विश्वविद्यालय ( Banares Hindu University - BHU) के कुलपति थे.उन्होंने 1946-52 में भारत का UNESCO प्रतिनिधित्व किया और 1949-1952 तक USSR में भारतीय राजदूत रहे. राधाकृष्णन को साहित्य में नोबेल पुरस्कार के लिए 16 बार और नोबेल शांति पुरस्कार के लिए 11 बार नामांकित किया गया था. उन्होंने 1968 में साहित्य अकादमी फेलोशिप (Sahitya Akademi fellowship) जीती, जो की साहित्य अकादमी द्वारा एक लेखक को दिया जाने वाला 'सर्वोच्च सम्मान' है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.