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आजादी की लड़ाई में रायपुर की वानर सेना ने भी खाई थी लाठियां

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Published : Aug 11, 2022, 8:05 PM IST

Vanar Sena of Raipur
रायपुर की वानर सेना

देश को आजादी दिलाने हर कोई अपने अपने स्तर पर जूझ रहा था. हर किसी के दिल में भारत की आजादी की चिंगारी धधक रही थी. ऐसे में बच्चे कैसे इससे अछूते रह जाते. आजादी की लड़ाई में रायपुर की वानर सेना भी कूद पड़ी. ये सूचनाएं यहां से वहां पहुंचाते थे. स्वतंत्रता संग्राम के पोस्टर चिपकाते थे. कई बार इस वानर सेना ने रैली भी निकाली इस दौरान अंग्रेजों की लाठी और बेंत भी इन्हें खाना पड़ा.

रायपुर: देश को स्वतंत्रता दिलाने के लिए बहुत से महापुरुषों का योगदान रहा है. लेकिन क्या आपको पता है आजादी की इस लड़ाई में बच्चों ने भी बढ़चढ़ कर भाग लिया था. इनकी मौजूदगी की वजह से अंग्रेज भी परेशान हो गए थे. आजादी के अमृत महोत्सव के मौके पर ETV भारत आपको रायपुर की वानर सेना के बारे में बता रहा है जिसने स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. उम्र में बहुत छोटे और देश प्रेम की भावना से ओतप्रोत रायपुर के स्कूली बच्चों ने देश को स्वतंत्रता दिलाने में कई लाठियों और बेंत की मार खाई थी. (Vanar Sena of Raipur )

रायपुर की वानर सेना: देश को आजाद कराने के लिए बच्चों का यह दल वानर सेना के नाम से जाना जाता था. इस दल का संस्थापक 14 साल का बालक बलीराम दुबे आजाद था. इस बच्चे का नाम आजाद कैसे पड़ा ये भी आपको बताएंगे. इस वानर सेना का काम सूचनाओं का आदान- प्रदान करना, स्वतंत्रता संग्राम से सम्बंधित पोस्टर चिपकाना और पर्चों को बांटने का काम करना होता था. सन्देश पहुंचाने के साथ-साथ ये छोटी सभाएं भी लिया करते थे. Indian Independence Day

अंग्रेज भी हो गए थे परेशान: इतिहासकार आचार्य रमेंद्र नाथ मिश्र (Historian Acharya Ramendra Nath Mishra) ने बताया "बलिराम दुबे आजाद के बच्चों का दल वानर सेना कहलाता था. यह बहुत छोटे थे लेकिन स्वतंत्रता आंदोलन में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है. बीच-बीच में यह दल रैली भी निकाला करता था. जब पुलिस आती तब यह गलियों में फुर्ति के साथ छुप जाया करते थे. क्योंकि शुरुआती समय में पुलिस बच्चों पर शक नहीं करती थी. लेकिन बाद में वानर सेना के लगातार स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रहने के बाद अंग्रेज पुलिस बच्चों को पकड़ने लगी और पिटाई भी करने लगी."

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शहर से बाहर छोड़ आती थी पुलिस: इतिहासकार ने बताया "वानर सेना से परेशान होकर पुलिस बच्चों को पकड़ने लगी. उन्हें पकड़कर शहर से 15 -20 किलोमीटर बाहर छोड़ दिया जाता था. उस समय रायपुर शहर गलियों का मोहल्ला हुआ करता था. जिनमें पुरानी बस्ती, कंकालीपार, ब्राह्मणपारा, बुढ़ापारा यह सब गलियों का मोहल्ला हुआ करता था. वानर सेना शहर में इतना सक्रिय हो गई थी कि वे रैली निकालने के साथ-साथ अंग्रेजों पर पथरबाजी भी कर देती थी. पुलिस उन्हें गलियों में खोजते रह जाते थे. वानर सेना छोटे लोगों का ग्रुप होते हुए भी आजादी की लड़ाई में अच्छा काम कर रहे थे." (Vanar Sena of Raipur in freedom struggle )

वानर सेना की बेंत से पिटाई: आजादी की लड़ाई में वानर सेना इतना सक्रिय हो गई थी कि वे अंग्रेजों को देखकर ही नारे बाजी करने लग जाते थे. शुरुआती दिनों में बच्चा समझकर अंग्रेज कोई कार्रवाई नहीं करते थे लेकिन वानर सेना से परेशान होने के बाद अंग्रेज बच्चों की बेंत से पिटाई करने लगे. 28 अगस्त 1932 को अंग्रेज प्रशासन की तरफ से आंदोलनकारियों पर लाठीचार्ज किया गया. इस दौरान उन्होंने बच्चों को भी नहीं छोड़ा. बड़ों के साथ बच्चों को भी गिरफ्तार कर लिया. जिसमें बलिराम आजाद और रामाधार नाई को 9 महीने की जेल हुई. इससे पहले भी 13 मार्च 1932 को बलिराम दुबे आजाद को भाषण देते हुए पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था. उस दौरान उनकी बेंत से जमकर पिटाई की गई थी.

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बलीराम आजाद के नाम से पड़ा शहर के आजाद चौक का नाम: वरिष्ठ पत्रकार शशांक शर्मा ने बताया " बलीराम दुबे 14 साल में बेहद सक्रिय थे. वे चंद्रशेखर आजाद से बेहद प्रभावित थे. इस वजह से वे अपने नाम के पीछे आजाद लिखते थे. उन्हें साहब बलिराम आजाद के नाम से ही पुकारते थे. 1942 में जब भारत छोड़ो आंदोलन चल रहा था उस दौरान बलीराम और उनकी वानर सेना पोस्टर पर्चे बांटने के साथ जो सेनानी अंडर ग्राउंड हुआ करते थे उन्हें खबरें देने का काम करते थे. एक बार पुलिस ने ब्राम्हणपारा चौक के पास बलीराम की जमकर पिटाई की. पुलिस लगातार उनसे जानकारियां निकालना चाहती थी लेकिन मार खाने के बाद भी उन्होंने कुछ नहीं बताया. उसके बाद से ही उस चौक का नाम आजाद चौक रखा गया."

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