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18 मार्च को होली, जानिए पूजा-पाठ का शुभ मुहूर्त और रंग खेलने का तरीका

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Published : Mar 16, 2022, 8:32 PM IST

Holi Special 2022 : होली का त्योहार का अपना अलग ही महत्व है. इस दिन गिले शिकवे भूलाकर लोग एक दूसरे को रंग लगाकर पर्व को मनाते हैं.

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18 मार्च को पूरे भारतवर्ष में मनाई जाएगी होली

रायपुर : भारत में होली हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है. इसे भारत में धुलीवंदन के नाम से भी जाना जाता है. धुलीवंदन, होली, होलाष्टक समाप्ति, धूलेड़ी नामों से त्योहार मनाया जाता है.आज के दिन से ही होलाष्टक काल समाप्त हो जाता है विशेष रुप से व्यास रवि सतलज के तटवर्ती क्षेत्र और राजस्थान में होलिका दहन से 8 दिन पूर्व सभी शुभ कार्य निषेध माने जाते हैं. रंगों का यह त्योहार हमारे जीवन में सात रंगों को भर देता है. जिसमें दोस्ती मित्रता नए संबंध उल्लास हर्ष और आनंद समाहित रहते हैं. पुराने संबंधों का नवीनीकरण यार दोस्तों के बीच गपशप खाना-पीना और उठना बैठना और एक दूसरे को प्रेम और उमंग से रंग लगाना ही होली त्यौहार की प्रमुख विशेषता है. जिस तरह से संगीत में सात स्वर होते हैं वैसे ही सात रंग प्रमुख माने गए हैं. इन सभी रंगों से मिलकर होली हमारे जीवन को उत्साह के रंग से भरती है.



आज के शुभ दिन शरीर में तेल की मालिश कर बाल और पूरे शरीर में तेल लगाकर इस त्यौहार को मनाने का विधान है. ताकि केमिकल युक्त पदार्थों का प्रभाव हमारे शरीर पर कम से कम पड़े. होलिका दहन में कंडों की माला का विशेष महत्व है. सूरज चंद्रमा उपग्रह जैसे आकृतियों में कंडों को सजाकर माला बनाई जाती है. होली के भस्म को आज के शुभ दिन पूरे शरीर में लगाने का विधान है. होली का भस्म आत्मा शरीर को आरोग्यता से भर देती है. ऐसा माना जाता है कि होली के भस्म में औषधीय गुण पाए जाते हैं. इस भस्म का नियमित सेवन करने पर अनेक रोगों से हमारी रक्षा होती है. साथ ही यह भस्म एक दूसरे के सम्मान में तिलक लगाने के लिए भी उपयोग में लाई जाती है.

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यह ध्यान रहे कि आज के दिन केमिकल पदार्थों का न्यूनतम उपयोग करना चाहिए . साथ ही प्राकृतिक तत्वों से बने हुए रंगों का इस्तेमाल होना चाहिए. आज के दिन छोटे-छोटे बच्चे एक-दूसरे को पिचकारी पानी और रंग से भरे हुए गुब्बारों के साथ होली मनाते हैं.आज के शुभ दिन माता पिता को तिलक लगाकर उन्हें प्रणाम कर इस त्यौहार की शुरुआत करनी चाहिए. साथ ही जिस भगवान के प्रति आस्था है उन्हें भी विनयशील होकर रंग गुलाल गरिमामय ढंग से लगाकर त्यौहार को शुरू किया जाता है. इसदिन कई असामाजिक तत्व भी कई तरह की असामाजिक क्रिया करते हैं. इन सभी से हमें दूर रहने का प्रयास करना चाहिए. होलिका दहन के समय बुराई के रूप में चना बूट को होली में सुपुर्द किया जाता है. जलने के बाद उसमें से निकले हुए बूट या चने को खाने का विधान है. यह पूर्णिमा काल में मनाया जाता है. इसलिए घरों में खीर का भी प्रसाद बहुत ही लोकप्रिय होता है. पूर्णिमा के प्रभाव के कारण दही, लस्सी, छाछ, समोसा, कचोरी, गुजिया, बालूशाही, जैसे स्वादिष्ट व्यंजनों के साथ मित्रों के बीच इस पर्व को मनाया जाता है. होली का वास्तव में ऋतु परिवर्तन, संक्रमण काल और नई फसल के आगमन से संबंध हैं.



उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र गंड योग शुभ योग और बालव करण के साथ ही सिंह और कन्या राशि के संयोग में इस पर्व को मनाया जाएगा संपूर्ण उत्तर भारत में होली का पर्व बहुत उत्साह से मनाते हैं. वृंदावन की होली सर्वाधिक लोकप्रिय मानी जाती है. आज के दिन सभी महिलाएं गोपी गांव के रूप में पुरुषों को ग्वाले के रूप में अट्टहास और आनंद के बीच रंग गुलाल लगाती हैं .वृंदावन की लठमार होली तो सारे विश्व में बहुत ही लोकप्रिय है. यहां पर बहुत ही उमंग उत्साह अपनत्व आत्मीयता और संबंधों की घनिष्ठता को आनंद के साथ प्रदर्शित करने का प्रवाह है.


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