मिलिए धमतरी के ऐसे शिक्षकों से जिनकी शिक्षा ने आदिवासी बच्चों को नवोदय विद्यालय तक पहुंचाया

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Published : Jan 11, 2022, 4:12 PM IST

Record breaking of government school education in Dhamtari

व्यवसायिक शिक्षा और तकनीकी हो चली जिंदगी के बीच लोगों का सरकारी स्कूलों से मानों विश्वास ही उठ चुका है. शिक्षा के इन्हीं विसंगतियों के बीच छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य इलाका धमतरी शासकीय प्राथमिक शाला में शिक्षकों की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से हर साल बच्चों का चुनाव जवाहर नवोदय विद्यालय और एकलव्य विद्यालय के लिए हो रहा है.

धमतरीः कहावत है कि जज्बा अगर कुछ कर दिखाने में हो तो पूरी कायनात साथ देती है. गुरु और शिष्य में गुरु के योगदान को शिष्य जीवन भर याद रखता है. कुछ ऐसा ही कर दिखाया है कि धमतरी के आदिवासी क्षेत्र अंतर्गत बरबांधा शासकीय प्राथमिक शाला में गुरूजन और बच्चों ने. शिक्षक इन बच्चों की अतिरिक्त कक्षाएं लेकर उनकी प्रतिभा को तराशने में लगे हैं. ताकि इन बच्चों का सेलेक्शन जवाहर नवोदय विद्यालय और एकलव्य विद्यालय में हो सके.

धमतरी के सरकारी स्कूल की पढ़ाई तोड़ रहा रिकॉर्ड

शिक्षक कृष्ण कुमार कोटेन्द्र हर दिन एक से डेड़ घंटा अतिरिक्त कक्षाएं बच्चों की लेते हैं. वह नवोदय और एकलव्य स्कूल की तैयारी करवाते हैं. इसके लिए शिक्षक कई पुस्तकों की भी व्यवस्था करवाते हैं. ऑनलाइन प्रश्न पत्र मंगवाकर बच्चों की तैयारी करवाई जा रही है. परिणाम स्कूल के बच्चों का हर साल एकलव्य स्कूल और नवोदय स्कूल के लिए तीन से चार की संख्या में चयन हो रहा है.

नवोदय स्कूल और जवाहर विद्यालय के लिए अभी तक 10 बच्चों का चुनाव किया जा चुका है. खास यह है कि स्कूल की स्वस्थ गुरू-शिष्य परंपरा और शैक्षणिक गतिविधियों को देखते हुए दूसरे शिक्षक भी निजी स्कूलों को सिरे से खारिज हुए अपने बच्चों का एडमिशन इसी स्कूल में करवाना शुरू कर दिए हैं.

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बच्चों को केंद्रीय स्कूलों तक पहुंचाने का है संकल्प

बरबांधा शासकीय प्राथमिक शाला के शिक्षक बताते हैं कि कृष्ण कुमार कोटेन्द्र की कोशिश रहती है कि यहां पढ़ने वाले बच्चों का एडमिशन केंद्रीय स्तर के स्कूलों में हो. उन्हें इस प्रयास में काफी सफलता भी मिली है. दूसरे शिक्षक भी गर्वान्वित महसूस कर रहे हैं. उनका कहना है कि हमने अपने बच्चों का यहां एडमिशन करवाया और उनका चयन एकलव्य विद्यालय और जवाहर नवोदय स्कूलों के लिए हुआ.

दूसरों से ली सीख

इधर, शिक्षक कोटेंद्र बताते हैं कि जब उन्हें पांचवीं के बच्चों को 2015-16 में पढ़ाने का मौका मिला तो उन्होंने मुहिम छेड़ी. वह अखबारों में दूसरे स्कूलों से जवाहर नवोदय के लिए बच्चों के चयन की सूचना पढ़ा करते थे. बकौल कोटेंद्र आदिवासियों के पास पैसे नहीं होते. बच्चों की शिक्षा भी उनके लिए मुश्किल होती है. मैं आदिवासी अंचल क्षेत्र में बच्चों को पढ़ाता हूं. ऐसे में गरीब बच्चों के आगे के भविष्य को संवारने का मैंने संकल्प लिया. तीन टीचरों के बच्चे आज इसी स्कूल में पढ़ रहे हैं. हमने सोचा कि दूसरे के बच्चों को क्यों न अपने बच्चों को शिक्षा दें.

हम चाहते तो दूसरे बड़े स्कूलों में शिक्षा दे सकते थे. लेकिन हमने सोचा कि जिस तरीके से हम अपने बच्चों के लिए संजीदा रहते हैं, उसी तरह दूसरे बच्चों के लिए भी रहना चाहिए और यही नतीजा है कि हमने बच्चों की गुणवत्तायुक्त शिक्षा शुरू की. साथ ही दूसरे शिक्षकों ने भी निजी स्कूलों को छोड़ इसी स्कूलों में अपने बच्चों का नामांकन दिलवाया.

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