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गणपति की स्वयंभू प्रतिमा है 'चिंतामन गणेश,' दूर होती है भक्तों की चिंताएं

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Published : Aug 28, 2020, 6:03 AM IST

Updated : Aug 28, 2020, 2:55 PM IST

आज हम आपको विघ्नों को हरने वाले गणेश भगवान के ऐसे मंदिर ले चलते हैं जहां गणपति बप्पा की स्वयंभू प्रतिमा के दर्शन होते हैं. गणेश चतुर्थी से लेकर अनंत चतुर्दशी तक चिंतामन गणेश मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ लगी रहती है. भक्त अपनी अपनी मन्नत लेकर मंदिर में पहुंचते हैं, मान्यता है कि भगवान गणेश से भक्तों को मनचाहा फल मिल जाता है.

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कीजिए गणपति बप्पा की स्वभूं प्रतिमा के दर्शन, भक्तों की हर चिंता दूर कर देते है 'चिंतामन गणेश'

उज्जैन : विघ्नहर्ता, मंगल कर्ता, गौरी पुत्र गणेश भगवान, गणेश के जितने नाम हैं उतना ही दिव्य उनका स्वरूप भी है. एक साल बाद बप्पा फिर अपने भक्तों के घर आ गए हैं. भक्त भी पलक बिछाकर बप्पा की पूजा अर्चना में मग्न हैं. मान्यता है कि इन 10 दिनों में भगवान गणेश अपने भक्तों के घर रहते हैं और उनके दुख हरकर ले जाते हैं तो आज हम आपको विघ्नों को हरने वाले गणेश भगवान के ऐसे मंदिर लेकर चलते हैं जहां गणपति बप्पा की स्वयंभू प्रतिमा के दर्शन होते हैं.

बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन से 6 किलोमीटर दूर जावासा गांव में भगवान गणेश का प्राचीन मंदिर है, जिसे चिंतामन गणेश के नाम से जाना जाता है. यहां पार्वती नदंन तीन स्वरूपों में विराजमान हैं. पहला रुप चिंतामन गणेश, दूसरा रुप इच्छामन गणेश और तीसरा रुप सिद्धिविनायक गणेश का है. चिंतामन गणेश का श्रृंगार सिंदूर से किया जाता है, श्रृंगार से पहले दूध और जल से उनका अभिषेक भी होता है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट.

मोदक और लड्डू का ही भोग लगता है

चिंतामन गणेश का ये मंदिर देश के प्राचीन मंदिरों में सबसे पुराना मंदिर माना जाता है. यहां गणेश जी को मोदक और लड्डू का ही भोग लगता है. मान्यता है कि बप्पा के इन तीनों आलौकिक रूपों का जो भी भक्त दर्शन करता है, बप्पा उसके सारे दुख हर लेते हैं. चिंतामन गणेश चिंताओं को दूर करते हैं, इच्छामन गणेश इच्छाओं को पूर्ण करते हैं, सिद्धिविनायक गणेश भक्तों को रिद्धि-सिद्धि देते हैं.

मंदिर से जुड़ी है कथा

उज्जैन के चिंतामन गणेश मंदिर से जुड़ी एक कथा प्रचलित है. ऐसा माना जाता है कि राजा दशरथ के स्वर्गवास हो जाने के बाद भगवान राम अपने अनुज लक्ष्मण और भार्या सीता माता के साथ यहां आए थे. भगवान राम ने चिंतामन गणेश की पूजा की, तो लक्ष्मण ने इच्छामन गणेश की पूजा की, जबकि माता सीता ने सिद्धिविनायक गणेश की पूजा की थी. तभी से इस मंदिर में बप्पा के तीनों स्वरूपों में पूजा होती आ रही है. माना जाता है कि पूजा पूरी होने तक माता सीता ने उपवास किया था. पूजा पूरी होने के बाद सीताजी को पानी पिलाने के लिए लक्ष्मण ने अपने बाण से यहां पानी निकाला था. इस कुंड को बापणी कहा जाता है. जो आज भी यहां मौजदू है.

देशभर से श्रद्धालु आते हैं मंदिर में पूजा करने

मंदिर के पीछे उल्टा स्वास्तिक बनाकर भक्त भगवान से मनोकामना मांगते हैं, तो बप्पा भी अपने भक्तों को निराश नहीं करते और उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं. जब भक्त की इच्छा पूरी हो जाती है तब वे मंदिर के पीछे फिर सीधा स्वास्तिक बनाते हैं. यही वजह है कि देशभर से भक्त अपने बप्पा के दर्शनों के लिए खिंचे चले आते हैं.

हर दुख का निवारण करते हैं बप्पा

भक्त मानते हैं की बप्पा के पास उनके हर दुख का निवारण होता है. तभी तो गणेश चतुर्थी से लेकर अनंत चतुर्दशी तक चिंतामन गणेश मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ जुटती है, क्योंकि भगवान गणेश यहां सदियों से भक्तों के दुख हरते आ रहे हैं. बप्पा का ये धाम है ही ऐसा. जहां भक्त आता तो खाली हाथ है, लेकिन जब जाता है तो बप्पा अपने भक्तों की झोली सुखों से भर देते हैं. भगवान गणेशजी की ऐसी अद्भुत और अलौकिक प्रतिमा देश में शायद कहीं देखने को मिले.

भक्तों को मिलता है मनचाहा फल

खास बात यह है कि गणेश चतुर्थी से लेकर अनंत चतुर्दशी तक चिंतामन गणेश मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ लगती है. भक्त अपनी मन्नत लेकर मंदिर पहुंचते हैं, मान्यता है कि भगवान गणेश से भक्तों को मनचाहा फल मिल जाता है.

Last Updated :Aug 28, 2020, 2:55 PM IST
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