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लोककवि भिखारी ठाकुर आज भी उपेक्षित, घर को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की मांग अब तक अधूरी

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Published : Dec 18, 2019, 7:07 AM IST

bhikhari thakur
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भिखारी ठाकुर के लोकगीतों के केंद्र में न सत्ता थी और ना ही सत्ता पर काबिज रहनुमाओं के लिये चाटुकारिता भरे शब्द. जिंदगी भर उन्होंने समाज में मौजूद कुरीतियों पर अपनी कला और संस्कृति के माध्यम से कड़ा प्रहार किया.

सारण: भोजपुरी के शेक्सपियर और लोककवि कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर का जन्म 18 दिसंबर को बिहार के सारण जिले के कुतुबपुर दियारा गांव में हुआ. जिस लोककवि ने अपनी रचनाओं के जरिए भोजपुरी को पूरे विश्व में एक पहचान दी, अफसोस कि उसके अपने बिहार ने ही उन्हें उपेक्षित कर दिया. आलम ये है कि आज तक उनके घर को राष्ट्रीय स्मारक तक घोषित नहीं किया जा सका है.

समाज में मौजूद कुरीतियों पर किया प्रहार
भिखारी ठाकुर के लोकगीतों के केंद्र में न सत्ता थी और ना ही सत्ता पर काबिज रहनुमाओं के लिये चाटुकारिता भरे शब्द. जिंदगी भर उन्होंने समाज में मौजूद कुरीतियों पर अपनी कला और संस्कृति के माध्यम से कड़ा प्रहार किया. लोककवि के नाम और उनकी ख्याति को अपनी राजनीति का मापदंड बनाकर वोट बैंक भुनाने वाले राजनेताओं ने भिखारी ठाकुर के गांव के उत्थान को लेकर यूं तो कई वाएदे किए, लेकिन वे सभी मुंगेरी लाल के हसीन सपनों की तरह हवा-हवाई साबित हुए.यही कारण है कि सरकारी उदासीनता ने भिखारी ठाकुर की रचनाओं और उनकी प्रासंगिकता को एक बार फिर संघर्ष के दौर में लाकर खड़ा कर दिया है.

ईटीवी भारत की विशेष रिपोर्ट

रचनाओं ने लोगों के मन में बनायी खास जगह
बिदेशिया, बेटी-बेचवा, गबरघिचोर, पिया निसइल, जैसी कई रचनायें हैं जिसने न सिर्फ लोगों के मन में एक खास जगह बनायी, बल्कि समाजिक कुरीतियों पर भी कड़ा प्रहार कर आंदोलन की एक नयी राह खड़ी की. वर्तमान में बिहार सरकार के मुखिया नीतीश कुमार ने भी बाल-विवाह, दहेज प्रथा और नशामुक्ति जैसी सामाजिक कुरीतियों को जड़ से समाप्त करने के लिए मुहिम छेड़ रखी है.

लोककवि का पैतृक गांव आज भी विकास के लिए संघर्षरत
भिखारी ठाकुर ने अपने दौर में जीवंत रचनाओं के जरिए, जिस बेबाकी से सामाजिक बुराइयों की ओर ध्यान खींचा,अगर पिछली सरकारें उस ओर नजर-ए-इनायत करतीं तो शायद भोजपुरी और लोककवि दोनों ही सामाजिक सरोकार के सबसे बड़े प्रणेता और पथ प्रदर्शक बन कर उभरते. जिस भिखारी ठाकुर ने सदियों पूर्व ही समाज को एक नयी चेतना दी थी आज उनके गांव, परिवार और दुर्लभ रचनाओं को सहेजने के लिए सिवाए खोखली घोषणाओं के कुछ नहीं. आज भी लोककवि का पैतृक गांव कुतबपुर दियारा विकास के लिए संघर्षरत है.

Intro:डे प्लान वाली ख़बर हैं
SLUG:-NEGLECT VICTIM FOLK
ETV BHARAT NEWS DESK
F.M:-DHARMENDRA KUMAR RASTOGI/ SARAN/BIHAR

Anchor:-जिनके लोकगीतों के केंद्र में न सत्ता थी और नाही सत्ता पर काबिज रहनुमाओं के लिये चाटुकारिता भरे शब्द, जीवन पर्यंत समाज में व्याप्त कुरीतियों पर अपनी कला संस्कृति के माध्यम से कड़ा प्रहार करने वाले भोजपुरिया जगत के एक महान क्रांतिकारी थे लोककवि भिखारी ठाकुर. भोजपुरी के इस शेक्सपीयर को भले ही उनकी जयंती के अवसर पर फूलमालाओं और संवेदना भरे भाषणों से याद किया जाता है, लेकिन लोककवि के नाम और उनकी ख्याति को अपनी राजनीति का मापदंड बनाकर वोट बैंक भुनाने वाले राजनेताओं ने भिखारी ठाकुर के भोजपुरी रचनाओं के साथ ही उनके त्याग में हर मोड़ पर साथ निभाने वाले कुतबपुर दियारा के लोग तथा उनके गांव के उत्थान को लेकर किये गए खोखले वायदों की जो पटकथा लिखी है उसने लोककवि की रचनाओं और उसकी प्रासंगिकता को एक बार फिर संघर्ष के दौर में लाकर खड़ा कर दिया है.



Body:बिदेशिया, बेटी-बेचवा, गबरघिचोर, पिया निसइल, जैसी कई रचनायें हैं जिसने न सिर्फ लोगों के मन में एक खास जगह बनायी हैं बल्कि समाज में व्याप्त कुरीतियों पर भी कड़ा प्रहार कर आंदोलन की एक नयी राह खड़ी की हैं. वर्तमान में बिहार सरकार के मुखिया नीतीश कुमार भी बाल-विवाह, दहेज प्रथा व नशामुक्ति जैसी सामाजिक कुरीतियों को जड़ से समाप्त करने के लिए मुहिम छेड़ी हैं.



हालांकि लोककवि भिखारी ठाकुर द्वारा अपने दौर में जीवंत रचनाओं के माध्यम से जिस प्रकार अपने बेबाक अंदाज को लोकगीतों के माध्यम से बयां किया था यदि उसे पिछली सरकारों ने साकार रूप देने का काम किया होता तो शायद भोजपुरी और लोककवि दोनों ही इस सामाजिक सरोकार के सबसे बड़े पथ प्रदर्शक बन कर उभरते वैसे यह सम्भव नही हो सका.

Conclusion:जिस भिखारी ठाकुर ने सदियों पूर्व ही समाज को एक नयी चेतना प्रदान की थी आज उनके गांव,परिवार और दुर्लभ रचनाओं को सहेजने वाला कोई सामने नही आया हैं या आया भी तो केवल घोषणाओं के सिवाय कुछ भी नही किया और आज भी लोककवि का पैतृक गांव कुतबपुर दियारा विकास के लिए संघर्षरत है.

लोककवि भिखारी ठाकुर का जन्म 18 दिसंबर 1887 में सदर प्रखंड के कुतुबपुर दियरा गांव में हुआ था जबकि मृत्यु 10 जुलाई 1971 को हुआ था

Byte:-वॉक थ्रू
सुशील ठाकुर, प्रपौत्र
धर्मेंद्र कुमार रस्तोगी
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