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बिहार: मजदूरों के दर्द पर कुछ ऐसे लगाया मरहम, अपने ढाबे को बना दिया लंगर

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Published : May 17, 2020, 9:52 AM IST

बिहार की ताजा खबर
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कोरोना महामारी के इस दौर में प्रवासी मजदूरों की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं. बिहार-यूपी बॉर्डर पर अन्य प्रदेशों से आ रहे प्रवासी मजदूरों सुकून भरी सांस जरूर ले रहे हैं. लेकिन यहां पहुंचने के बाद भी उनकी जिंदगी को लेकर जद्दोजहद जारी है.

छपरा: कोरोना महामारी के इस दौर में सभी वर्ग के लोग परेशान हैं. केंद्र से लेकर राज्य सरकार इस ओर निरंतर कदम उठा रही हैं. वहीं, प्रवासी मजदूर, जो अपने राज्य वापस लौट रहे हैं. उन्हें कुछ सुकून तो जरूर मिल रहा है लेकिन उनका दर्द कम नहीं हो रहा है. ऐसे में बिहार-यूपी बॉर्डर पर स्थित एक ढाबा वापस लौट रहे मजदूरों को भर पेट खाना खिला रहा है. ढाबा संचालक का यह प्रयास तमाम मजदूरों के दर्द पर मरहम लगा रहा है.

छपरा में आने वाले प्रवासी मजदूरों के लिए अपने ढाबा संचालक ने अपने ढाबे में लंगर चला कर भूखे लौट रहे मजदूरों को खाना और नाश्ता उपलब्ध करवाने की व्यवस्था की है. बिहार-यूपी बॉर्डर पर सारण जिले के रिविलगंज थाना क्षेत्र में राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे स्थित 'आदित्य राज ढाबा' यूपी से आने वाले प्रवासी मजदूरों के लिए सुकूनस्थली बना हुआ है. ढाबे के संचालक बसंत सिंह ने इस ढाबे को लंगर का रूप दे दिया है.

ढाबे में रोजाना तकरीबन 500 से ज्यादा प्रवासी मजदूरों को प्रतिदिन खाना और नाश्ता परोसा जा रहा है. मांझी के पास मझनपुरा गांव में स्थित इस ढाबा के मालिक ने लॉकडाउन के बाद होटल में खाने वाले लोगों के लिए कैश काउंटर को बंद कर दिया है. ढाबा के संचालक सिंह कहते हैं, ऐसा करने से उन्हें आत्मिक संतोष मिलता है और यही तो मानवता है.

  • 'सरकार ने नहीं की मदद लेकिन बिहार तक आ गए न, तो अब पैदल घर भी चले जाएंगे'
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    — ETVBharat Bihar (@ETVBharatBR) May 16, 2020 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

नहीं थे मजदूरों के पास रुपये फिर...
होटल संचालक ने बताया कि जैसे ही लॉकडाउन लागू किया गया. उसके बाद यूपी के रास्ते रोजाना बिहार की ओर बड़ी संख्या में मजदूर आने लगे. एक रोज कुछ मजदूरों का जत्था उनके ढाबे पर पहुंचा. इनके पास खाने के लिए रुपये तक न थे. लिहाजा, सभी ने खाना खिलाने का आग्रह दिया. उन सभी को खाना खिला जो सुकून मिला, उसके बाद से यह सिलसिला प्रारंभ हो गया. संचालक ने बताया कि मजदूर को कई दिनों तक भूखा रहना पड़ रहा है. इसके चलते उन्होंने अपने ढाबे को लंगर में तब्दील कर दिया है.

नाश्ते में गुड़ और चूड़ा, खाने में पौष्टिक आहार
लंगर में तब्दील हुए ढाबे में आने वाले मजदूरों को सुबह में चूड़ा और गुड़ दिया जाता है, जबकि दोपहर से चावल, दाल और सब्जी परोसा जा रहा है. यह देर रात तक चलता है. इसके साथ ही ढाबे को समय-समय पर सैनिटाइज भी किया जाता है.

मिल रहा ग्रामीणों का सहयोग
संचालक की माने तो पहले कुछ बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ा. लेकिन अब ग्रामीणों का सहयोग मिल रहा है. गांव वाले ही सब्जी, चावल और दाल दान कर रहे हैं. खाना बनाने वाले कारीगर भी अपना मेहनताना न लेकर श्रमदान कर आने वाले लोगों की मदद करने की बात कर रहे हैं.

बन गए कोरोना योद्धा
वहीं, ढाबे पर पहुंचे मजदूरों ने बताया कि वापस लौटते समय जगह-जगह पूड़ी और कचौड़ी खाने को मिली या फिर बिस्किट-केला फूड पैकेट में मिला. अपने प्रदेश वापस लौटते ही चावल-दाल और चोखा मिला. यह बहुत दिन बाद खाया. काफी अच्छा लगा.

वहीं, गांव मुखिया और समाजसेवी ढाबा संचालक के इस प्रयास की सराहना करते हैं. सभी का कहना है कि काम प्रशंसनीय है. ये कोरोना योद्घा के रूप में सामने आए हैं. अपने ढाबे में लंगर चला रहे हैं और इस काम में ग्रामीण भी मदद कर रहे हैं.

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