सहरसा: बिहार के सहरसा में किसानों ने तीन एकड़ में खस की खेती (Poppy Cultivation In saharsa) शुरू की. किसानों ने परंपरागत खेती को छोड़कर आधुनिक खेती करने में जुटे हैं. इसी क्रम में इलाके का एक गांव बनगांव है. बताया जाता है कि कोशी का इलाका जो कभी बाढ़ तो कभी सुखाड़ से प्रभावित होता है. इसके अलावे कई जंगली जानवर भी भी परेशान करते हैं. इससे किसानों को लागत कम और मुनाफा ज्यादा होता है.
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खस की खेती से किसान खुश: महिला किसान ने बताया कि जंगली जानवर के कारण हमलोग खस की खेती कर रहे है. इससे हमें काफी लाभ हो रहा है. मिथिलायम एफपीओ के सीईओ प्रसेनजीत कुमार ने बताया कि कोशी के इलाके में होने के कारण यहां परंपरागत खेती करने में कठिनाई होती है. जिस कारण हमलोग आईसीआर के निदेशक से संपर्क कर चुके हैं. इसके माध्ययम से कृषि विज्ञान केंद्र अगवानपुर से संपर्क किया है.
परंपरागत खेती को छोड़ रहे किसान: इस तरह की खेती से किसानों को काफी लाभ हो रहा है. उन्होंने बताया कि अगर हमारे क्षेत्र के किसान परंपरागत खेती छोड़कर खस की खेती करे तबकाफी लाभ होगी. खस की फसल के कई प्रजाति होते हैं. जिसमें खुसनालिक, केएएस वन वृद्धि, समिर्द्धि, खुलाबी, केशरिया जैसे प्रजातियों की फसल होती है. अगर कोई भी किसान अपने एक एकड़ में इस फसल को लगाते है तब ऐसे किसान साल के ढेर लाख रुपये कमा सकते है.
लाखों रुपये की आमदनी: सबसे बड़ी खासियत है कि इस खेती पर न तो बाढ़ का असर होता है. साथ ही सुखाड़ से भी कोई आमदनी में कमी नहीं आती है. खस के तेल मार्केट में करीब 20 हजार रुपया लीटर मिलता है. किसान को खस की एक एकड़ की खेती में डेढ़ से दो लाख की आमदनी होती है. वही एक एकड़ में खस का फसल लगाने में किसानों को तकरीबन 48 हजार रुपये खर्च होता है.