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बिहार के इस गांव से हुई थी होली की शुरुआत, यहां राख से खेली जाती है होली

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Published : Mar 16, 2022, 4:02 PM IST

Updated : Mar 16, 2022, 5:44 PM IST

बिहार के पूर्णिया के इसी स्थान पर भगवान नरसिंह ने अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध किया था. होलिका दहन (Holika Dahan Tradition Started In Purnia) की परंपरा की यहीं से शुरुआत हुई थी. आज भी लोग यहां रंग से नहीं बल्कि राख से होली खेलते हैं. क्या है इसके पीछे की पौराणिक मान्यता जानने के लिए पढ़िए पूरी कहानी..

Holika Dahan Festival in Banmankhi
Holika Dahan Festival in Banmankhi

पूर्णिया: पूरे भारत वर्ष में होली (Holi 2022) में होलिका दहन की परम्परा है. होलिका हिरणकश्यप की बहन थी, जो अपने भाई के कहने पर प्रह्लाद को मारना चाहती थी, लेकिन खुद मर गई. इसके बाद से ही होलिका दहन शुरू हुआ. यह कहानी सब जानते हैं. लेकिन यह बहुत ही कम ही लोग जानते हैं कि जहां पर यह घटना घटी थी वह जगह बिहार के पूर्णिया जिले में स्थित है. मान्‍यता है कि इस त्‍योहार को मनाने की शुरुआत बिहार के पूर्णिया जिले से ही हुई थी.

दरअसल, बिहार के पूर्णिया जिले के बनमनखी के सिकलीगढ़ धरहरा (Sikligarh Dharahara Of Banmankhi In Purnea) में आज भी होलिका दहन से जुड़े अवशेष बचे हैं. जहां भक्त प्रहलाद को बचाने के लिए खम्भे से भगवान नरसिंह का अवतार हुआ था और प्रहलाद को बचा लिया गया था. बनमनखी में होलिका दहन महोत्सव ( Holika Dahan Festival in Banmankhi) धूमधाम से राजकीय महोत्सव के रूप में मनाया जाता है. आज भी यहां के लोग रंगों से नहीं बल्कि राख से होली (Purnea Me Rakh ki Holi) खेलते हैं.

देखें रिपोर्ट

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भक्त प्रहलाद की जगह भस्म हो गई थी होलिका: कहा जाता है कि भगवान विष्णु ने भक्तों के कल्याण के लिए अपने अंश प्रहलाद को असुरराज की पत्नी कयाधु के गर्भ में भेज दिया. जन्म से ही भक्त प्रहलाद विष्णु भक्त था. जिससे हिरण्यकश्यप उसे अपना शत्रु समझने लगा था. अपने पुत्र को खत्म करने के लिए हिरण्यकश्यप ने होलिका के साथ प्रहलाद को अग्नि में जलाने की योजना बनाई. होलिका के पास एक ऐसी चादर थी जिसपर आग का कोई प्रभाव नहीं पड़ सकता था. योजना के अनुसार हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को वही चादर लपेटकर प्रहलाद को गोद में बैठाकर आग जला दी. तभी वहां मौजूद खम्भे से भगवान नरसिंह का अवतार हुआ. भक्त प्रहलाद बच गए और तेज़ हवा ने होलिका की चादर उड़ा दी. जिससे वो अग्नि में जल गई. ये वही स्थल है जहां होलिका दहन हुआ था और भक्त प्रहलाद बाल बाल बच गए थे. तभी से इस तिथि पर होली मनाई जाती है.

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भगवान नरसिंह ने यहीं किया था हिरण्यकश्यप का वध : नरसिंह अवतार के इस मंदिर का दर्शन करने दूर दूर से श्रद्धालु आते हैं और उनकी सभी मुरादें पूरी होती हैं. यहां हर वर्ष धूमधाम से होलिका दहन होता है और यहां होलिका जलने के बाद ही दूसरी जगह होलिका जलाई जाती है. यहां पर वह खंभा आज भी मौजूद है जिसके बारे में धारणा है कि इसी पत्थर के खंभे से भगवान नरसिंह ने अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध किया था.

भगवान नरसिंह के अवतार से जुड़ा खंभा है मौजूद : जिला मुख्यालय से करीब 40 किमी दूर बनमनखी प्रखंड स्थित धरहरा गांव में एक प्राचीन मंदिर है. पौराणिक कथाओं के अनुसार यहीं भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए एक खंभे से भगवान नरसिंह ने अवतार लिया था. भगवान नरसिंह के अवतार से जुड़ा खंभा (माणिक्य स्तंभ) आज भी यहां मौजूद है. कहा जाता है कि इसे कई बार तोड़ने का प्रयास किया गया. इससे ये टूटा तो नहीं, लेकिन ये स्तंभ झुक गया. भगवान नरसिंह के इस मनोहारी मंदिर में भगवान ब्रह्मा, विष्णु व शंकर समेत 40 देवताओं की मूर्तियां स्थापित है.

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होली के दिन जुटती है लाखों की भीड़ : भगवान नरसिंह के अवतार से जुड़ा ये खंभा कभी 400 एकड़ में फैला था, आज ये घटकर 100 एकड़ में ही सिमट गया है. श्रद्धालुओं का कहना है कि यहां सभी मन्नतें पूरी हो जाती है. साथ ही होली के दिन इस मंदिर में धूड़खेल होली खेलने वालों की मुरादें सीधे भगवान नरसिंह के कानों तक पहुंचती है. इस वजह से होली के दिन यहां लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ होली खेलने और भगवान नरसिंह के दर्शन के लिए जुटती है.

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राख-मिट्ठी से खेली जाती है होली : सिकलीगढ़ धरहरा की विशेषता है कि यहां राख और मिट्टी से होली खेली जाती है. कहते हैं कि जब होलिका जल गई थी और प्रहलाद चिता से सकुशल वापस आ गए थे तब लोगों ने राख और मिट्टी एक-दूसरे पर लगाकर खुशियां मनाई थीं. तभी से होली प्रारम्भ हुई. स्थानीय लोगों ने बताया कि यहां होलिका दहन के समय लाखों लोग उपस्थित होते हैं और जमकर राख और मिट्टी से होली खेलते हैं. होलिका दहन की परम्परा से जुड़ी पूर्णिया के इस ऐतिहासिक स्थल पर हर वर्ष विदेशी सैलानी आते हैं और कई फिल्मों की शूटिंग भी यहां हो चुकी है.

मंत्री ने कही ये बात : फिलहाल, इलाके के विधायक और बिहार सरकार के पूर्व पर्यटन मंत्री कृष्ण कुमार ऋषि ने इस स्थल को पर्यटन स्थल का दर्जा दिलाया और होली के मौके पर राजकीय समारोह घोषित (Rajkiya Samaroh In Holi At Banmankhi Purnea ) किया. लेकिन पिछले दो वर्ष से कोरोना काल को लेकर राजकीय महोत्सव नहीं मनाया गया था. वहीं इस बाबत कला संस्कृति मंत्री आलोक रंजन ने कहा कि इस बार होलिका दहन राजकीय समारोह के साथ मनाया जाएगा.

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Last Updated : Mar 16, 2022, 5:44 PM IST
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