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Politics of Sharad Yadav : जब मधेपुरा में शरद यादव से हार गए थे लालू, जानिए रोचक किस्सा

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Published : Jan 13, 2023, 5:39 PM IST

शरद यादव का निधन
शरद यादव का निधन

Sharad Yadav Passed Away समाजवादी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव अपने अनंत सफर पर निकल पड हैं. अपने राजनीतिक जीवन में शरद यादव भले ही किंग नहीं बन पाए हों, लेकिन बिहार से लेकर केंद्र में किंग मेकर की भूमिका में वे जरूर रहे. शरद यादव सात बार लोकसभा से सांसद रहे. लेकिन लेकिन बिहार की मधेपुरी लोकसभा सीट (Madhepura Loksabha Seat) से वे चार बार चुनाव जीते थे. मध्यप्रदेश से बिहार की सियासत में और खासकर मधेपुरा में उन्होंने अपना एक अलग स्थान बनाया था. पढ़ें पूरी खबर

पटना: वरिष्ठ समाजवादी और पूर्व केन्द्रीय मंत्री शरद यादव का जन्म भले ही मध्यप्रदेश में हुआ हो, लेकिन उनकी सियासत की 'कर्मभूमि' बिहार रही. सात बार सांसद रहे शरद यादव बिहार के मधेपुरा से वे चार बार लोकसभा सदस्य के रूप में चुने गए. एक बार शरद यादव ने मधेपुरा सीट पर लालू यादव को मात दी थी. लेकिन, साल 2014 के लोकसभा चुनावों में मोदी लहर में उन्हें मधेपुरा सीट पर हार का सामना करना पड़ा. लेकिन, दिलचस्प बात ये है कि लालू यादव, शरद यादव को 'बड़े भाई' कहकर पुकारते थे.

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'शरद यादव के कारण ही लालू बने थे मुख्यमंत्री' : बिहार के मधेपुरा के बारे में एक कहावत है- 'रोम पोप का तो मधेपुरा गोप (यादव) का'. दरअसल, मधेपुरा लोकसभा सीट यादवों का गढ़ माना जाता है. इसी का फायदा शरद यादव को मिलता रहा और यहां से चार बाद जीतकर संसद पहुंचे थे. जिस मधेपुरा सीट पर शरद यादव ने लालू यादव जैसे दिग्गज को शिकस्त दी, उसी सीट पर उन्होंने आखिरी बार लोकसभा चुनाव में जेडीयू नेता दिनेश चंद्र यादव से हार का सामना करना पड़ा था. आरजेडी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी (RJD Leader Shivanand Tiwari) कहते है कि एक वक्त था जब शरद यादव के कारण ही लालू यादव मुख्यमंत्री बन पाए थे.

''शरद यादव बिहार आए और बिहार के ही होकर रह गए. बिहार में भले ही लालू प्रसाद यानी आरजेडी की सरकार रही हो या नीतीश कुमार की सरकार रही हो, लेकिन इन सरकारों में अधिकांश समय तक केंद्र बिंदु में शरद यादव ही रहे हैं.'' - शिवानंद तिवारी, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, आरजेडी

शिवानंद तिवारी ने बताया, 'वो' किस्सा: आरजेडी नेता शिवानंद तिवारी ने बताया कि पार्टी के बड़ नेताओं में से कुछ लोग रामसुंदर दार को मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे. रघुनाथ झा भी मैदान में थे. ऐसे में शरद यादव ने मोर्चा संभाला और लालू प्रसाद यादव मुख्यमंत्री बने. आरजेडी नेता ने कहा कि शरद यादव की इच्छा राजनीति में सबको एक साथ जोड़कर रखने की रही. वे एनडीए के संयोजक भी रहे और इसका दायित्व बूखबी निभाया.

''बिहार में जब समाजवादी नेता दो धड़ों में बंट गए, उस दौरान शरद यादव, जॉर्ज फर्नांडिस और नीतीश कुमार के साथ आ गए. उस दौरान जब लालू यादव की शरद यादन से ठन गई तो मधेपुरा से शरद यादव लालू को 1999 के लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त दी. साल 2005 में नीतीश की सत्ता में वापसी में शरद यादव का अहम योगदान था. फिर शरद का नीतीश से मनमुटाव और फिर उन्होंने साल 2018 में लोकतांत्रिक जनता दल का गठन किया. इसके बाद 2019 में उन्होंने अपनी पार्टी का आरजेडी में लगभग विलय करा दिया. उन्होंने 2019 में मधेपुरा से फिर चुनाव लड़ा लेकिन सफलता नहीं मिल सकी.'' - शिवानंद तिवारी, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, आरजेडी

शरद यादव का राजनीतिक सफर : शरद यादव का जन्म 1 जुलाई 1947, मध्यप्रदेश के होशंगाबाद के अखमाउ गांव में हुता था. शरद यादव का जन्म भले ही मध्यप्रदेश में हुआ लेकिन राजनेता के तौर पर वे बिहार की सियासत से जुड़े रहे और मधेपुरा लोकसभा सीट से चार बार संसद पहुंचे. पहली बार शरद यादव 1947 में लोकसभा के लिए चुने गए. मध्यप्रदेश के जबलपुर से दो बार सांसद बने. यूपी के बदायूं से एक बार लोकसभा चुनाव चुने गए. उच्च सदन राज्यसभा में भी वे तीन बार सदस्य रहे.

अंतिम पड़ाव में लालू के साथ शरद यादव: शरद यादव 2003 में जेडीयू के गठन के बाद से 2016 तक इसके अध्यक्ष रहे. बाद में पार्टी (जेडीयू) ने उन्हें संगठन विरोधी गतिविधियों के आरोप में पार्टी से निकाल दिया था और राज्यसभा की सदस्यता के लिए उनको आयोग भी करार दिया गया. जेडीयू से निकाले जाने के बाद उन्होंने 2018 में लोकतांत्रिक जनता दल नाम से अपनी पार्टी बनाई थी.

ऐसे दो दुश्मन बने दोस्त: मार्च 2020 में अपनी पार्टी का अपने जीवन के अंतिम पड़ाव में लालू प्रसाद यादव की पार्टी आरजेडी में विलय कर दिया. इसी के साथ, लालू यादव के पुरानी सियासी रंजिश पर विराम लग गया. इसके बाद शरद यादव नई दिल्ली के तुगलक रोड 307 नंबर कोठी लंबे समय तक उनका आवास रहा, यहां उन्होंने करीब 23 साल बिताए. हालांकि बाद में उन्हें सरकारी आवास खाली करना पड़ा. आइये जानते है बिहार से कितनी बार उन्हें लोकसभा चुनाव में जीत हार का सामना करना पड़ा.

1991 में पहली बार मधेपुरा सीट से लड़ा चुनाव : शरद यादव ने मधेपुरा से पहली बार 1991 में जनता दल के टिकट पर लोकसभा चुनाव जीता था. इसके बाद शरद यादव बिहार के होकर रह गए. 1991 के लोकसभा चुनाव में जनता दल के शरद यादव ने 4 लाख 37 हजार 483 और विरोधी आनंद मोहन को 1 लाख 52 हजार 106 वोट मिले.

1996 में दूसरी बार सांसद बने शरद यादव : इसके बाद 1996 में हुए आम चुनाव में शरद यादव मधेपुरा सीट से दूसरी बार सांसद बने. सातवें लोकसभा चुनाव में शरद यादव ने आनंद मंडल को हराया. शरद यादव ka करीब 3 लाख 81 हजार 190 वोट मिले. जब कि आनंद मंडल (एसएपी) को 1 लाख 44 हजार 46 वोट. यहां बड़े मार्जिन से आनंद मंडल चुनाव हार गए.

तीसरी बार लालू Vs शरद यादव : लोकसभा चुनाव में मधेपुरा सीट पर शरद यादव मैदान में थे. उनके खिलाफ लालू यादव मैदान में थे. इस बार मधेपुरा की सियासत ने करवट ली और लालू ने उन्हें करीब 50 हजार से भी ज्यादा वोटों के अंतर से हरा दिया. आरजेडी उम्मीदवार लालू प्रसाद को 2 लाख 97 हजार 686 वोट मिले, जबकि जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़े शरद यादव को 2 लाख 45 हजार 703 वोट मिले.

मधेपुरा में शरद यादव से हार गए लालू : शरद यादव ने 1999 के लोकसभा चुनाव में जेडीयू के टिकट पर चुनाव लड़ा था. लेकिन इस बार शरद यादव ने लालू को पटखनी दी. शरद यादव करीब 30 हजार वोटों के अंतर से चुनाव जीते. जेडीयू उम्मीदवार शरद यादव को 3 लाख 28 हजार 761 वोट मिले, जबकि आरजेडी उममीदवार लालू प्रसाद यादव को 2 लाख 98 हजार 441 वोट मिले.

मधेपुरा में शरद यादव ने लिया बदला, हारे लालू : यहां एक बार फिर मधेपुरा लोकसभा सीट पर लालू प्रसाद यादव और शरद यादव का आमना सामना हुआ. लेकिन मौसम बदला और इसी सीट पर शरद यादव को लालू के हाथों करारी हार झेलनी पड़ी. आरजेडी उम्मीदवार लालू प्रसाद को 3 लाख 44 हजार 301 वोट मिले. जबकि जेडीयू के टिकट पर चुनाव लड़े शरद यादव को 2 लाख 74 हजार 314 वोट मिले.

2009 5वीं बार सांसद बने शरद यादव : एक बार फिर शरद यादव पांच साल बाद मधेपुरा के लोगों के बीच मौजूद थे. मधेपुरा में सियासी गर्मी बढ़ रही थी. मुकाबला कड़ा था. दो दिग्गज आमने-सामने थे. यादवों के गढ़ में यादव, इस बार किस अपना राजा चुनेगा, इसको लेकर सियासी चर्चा तेज थी. लेकिन, जब नतीजे सामने आए तो चौथी बार मधेपुरा के लोगों ने शरद यादव को अपना नेता चुनकर सांसद भेजा. शरद यादव को 3 लाख 70 हजार 585 वोट मिले, जबकि आरजेडी के प्रोफेसर रविंद्र चरण यादव को 1 लाख 92 हजार 964 वोट मिले.

2014 पप्पू यादव से हार गए शरद यादव : हालांकि इसके बाद भी शरद यादव ने मधेपुरा से चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें जीत नसीब नहीं हुई. 2014 लोकसभा चुनाव में इस बार आरजेडी के टिकट पर राजेश रजंन उर्फ पप्पू यादव मैदान में थे. पप्पू यादव ने उन्हें करारी शिकस्त दी. आरजेडी उम्मीदवार पप्पू यादव को करीब 3 लाख 68 हजार 937 मत मिले, जबकि जेडीयू उम्मीदवार शरद यादव को 3 लाख 12 हजार 728 वोट मिले.

नीतीश की पार्टी के नेता से हार गए शरद यादव : साल बदला तो दोस्त भी दुश्मन बन गए. अब शरद यादव ने लालू की लालटेन थामी और उनकी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा. लेकिन इस बार उन्हें नीतीश कुमार की पार्टी से जेडीयू उम्मीदवार दिनेश चंद्र यादव से हार का सामना करना पड़ा. दरअसल, इस चुनाव में पप्पू यादव तीसरे नंबर पर रहे. दरअसल, पप्पू यादव ने आरजेडी से अलग होकर जन अधिकार पार्टी (जाप) बनाई थी. कहा जाता है कि एनडीए विरोधी वोट के लिए शरद यादव और पप्पू यादव आमने थे. जिसका फायदा दिनेश चंद्र यादव को हुआ.

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