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वंदे मातरम् को लेकर बिहार की राजनीति में फिर भूचाल, जानें क्या कहता है संविधान

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Published : Feb 16, 2022, 7:22 PM IST

Vande Mataram Controversy In Bihar
Vande Mataram Controversy In Bihar

'वंदे मातरम्' गाने से इनकार करने के बाद से एआईएमआईएम विधायक अख्तरुल इमान (Vande Mataram Controversy In Bihar) पर लगातार हमले हो रहे हैं. एक बार फिर से उन्होंने बजट सत्र से पहले साफ कर दिया है कि वंदे मातरम नहीं गाएंगे. संविधान में ये अनिवार्य नहीं बताया गया है. क्या कहता है संविधान आइये जानते हैं.

पटना: बिहार विधानसभा का बजट सत्र (Bihar Budget 2022) 25 फरवरी से शुरू होने वाला है. इसको लेकर तैयारी जोर-शोर से चल रही है. बजट को लेकर एआईएमआईएम के प्रदेश अध्यक्ष और विधायक अख्तरुल इमान (AIMIM MLA Akhtarul Iman On Vande Mataram ) ने कहा कि हम तो अल्प विपक्ष में हैं. सरकार को हम सुझाव देंगे कि सीमांचल पर विशेष ध्यान दिया जाए. हर साल बाढ़ की त्रासदी से लोग परेशान होते हैं. इन सब पर हमारा ध्यान है.

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अख्तरुल इमान ने साफ कहा है कि पिछले सत्र में भी हमने वंदे मातरम् नहीं गाया था और इस बार भी नहीं गाएंगे. विधानसभा अध्यक्ष को जो कार्रवाई करनी है करें, उनके पास ताकत है. वंदे मातरम को लेकर अख्तरुल इमान ने एक बार फिर से बयान दिया है कि, विधानसभा में इसे नहीं गाएंगे. पिछले सत्र में भी अख्तरुल इमान ने इसका विरोध किया था.

बजट सत्र 25 फरवरी से शुरू हो रहा है और अख्तरुल इमान ने कहा है कि सीमांचल की समस्याओं को हम उठाएंगे जरूर लेकिन वंदे मातरम को लेकर हमारा विरोध रहेगा. अख्तरुल इमान ने कहा कि धार्मिक आस्था किसी पर थोपना नहीं चाहिए, नाहीं आघात पहुंचाना चाहिए. आस्था का पालन और दूसरे का आदर हमारे पूर्वजों ने सिखाया है, लेकिन उनके पास (विधानसभा अध्यक्ष) ताकत है तो ताकत के बल पर जो करना चाहे कर लें.

पिछले सत्र में भी अख्तरुल इमान के बयान के बाद खूब सियासत हुई थी. विधानसभा अध्यक्ष ने कार्रवाई करने की बात कही थी. ऐसे में देखना है कि, बजट सत्र में वंदे मातरम नहीं गाने पर अख्तरुल इमान और एआईएमआईएम के अन्य सदस्यों को लेकर विधानसभा अध्यक्ष क्या फैसला लेते हैं.

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'हमारा रुख साफ है, हम विरोध करेंगे और विधानसभा में इसे नहीं गाएंगे. धार्मिक आस्था किसी पर थोपना नहीं चाहिए और नहीं अघात पहुंचाना चाहिए. आस्था का पालन और दूसरे का आदर हमारे पूर्वजों ने सिखाया है, लेकिन उनके पास ताकत है तो ताकत के बल पर जो करना चाहे कर ले. लेकिन इसको लेकर हमारे बुजुर्गों ने पहले ही फैसला ले रखा है. यहां तक कि संविधान सभा में भी चर्चा हुई है सेकुलर देश में सबको साथ लेकर चलने की कोशिश होनी चाहिए.'- अख्तरुल इमान, एआईएमआईएम विधायक

वंदे मातरम को साल 1875 में बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने बंगाली भाषा में लिखा था. जिसे उन्होंने साल 1881 में अपनी नॉवल आनंदमठ में भी जगह दी. पहली बार इसे राजनीतिक संदर्भ में रबींद्रनाथ टैगौर ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 1896 के सत्र में गाया था. बन्दे मातरम बंगाली का शब्द है. बंगाली लिपी में व नही होता ब होता है. संस्कृत में 'बन्दे मातरम्' का कोई शब्दार्थ नहीं है और 'वंदे मातरम्' कहने से 'माता की वन्दना करता हूं' ऐसा अर्थ निकलता है, इसलिए देवनागरी लिपि में इसे वंदे मातरम् कहा गया.

क्या कहता है संविधान: ऐसे में आइए जानते हैं कि क्या किसी पर कोई राष्ट्रवाद थोप सकता है. क्या राष्ट्रगान, राष्ट्रगीत गाने के लिए किसी को बाध्य किया जा सकता है. इसकी कानूनी वैधता क्या है? संविधान के अनुच्छेद 51 a के अनुसार, यह लोगों का मौलिक कर्तव्य है कि वह राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान का प्रचार-प्रसार कर उसे बढ़ावा दे. लेकिन कानून में कहीं भी इसकी बाध्यता नहीं है. साफ है कि कानून के मुताबिक भारत माता की जय बोलना हमारे संस्कारों में आ सकता है लेकिन इस वाक्य को न बोलना किसी कानून का उलंघन नहीं है. यह सिर्फ देश के सम्मान से जुड़ा एक और नारा है लेकिन देश के सम्मान को दर्शाने के लिए ज़रूरी नहीं कि भारत माता की जय ही कहा जाए. इसके लिए भारत ज़िंदाबाद, जयहिन्द या इंग्लिश में लौंग लिव इंडिया भी कहा जा सकता है.

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