टुन्ना पांडे का रुख महागठबंधन की ओर, पहले भी कई नेता बदल चुके हैं पाला

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Published : Jun 7, 2021, 2:13 AM IST

बिहार की राजनीति

भाजपा के निलंबित विधान पार्षद टुन्ना पांडे ने महागठबंधन में जाने के संकेत दे दिए हैं. टुन्ना पांडे से पहले कई नेता महागठबंधन खेमें में जा चुके हैं. श्याम रजक ने मंत्री रहते हुए इस्तीफा दिया था और महागठबंधन में शामिल हुए थे. ऐसे नेताओं की फेहरिस्त लंबी है. जिनका मोहभंग हुआ और वे महागठबंधन में शामिल हुए.

पटना: राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से नेताओं का मोहभंग होने का सिलसिला जारी है. टुन्ना पांडे का मोह भी भंग हुआ. भाजपा से निलंबित विधान पार्षद ने महागठबंधन में जाने के संकेत दिए हैं पूर्व में भी कई नेता महागठबंधन में शामिल हो चुके हैं. मंत्री रहते हुए श्याम रजक ने जदयू से इस्तीफा दिया था और राजद में शामिल हुए थे. विधानसभा चुनाव से पहले बाहुबली विधायक अनंत सिंह, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी, पूर्व मंत्री रमई राम सीताराम यादव, पूर्व मंत्री बागी कुमार वर्मा और आजाद गांधी महागठबंधन में शामिल हुए थे.

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टिकट की चाह में भी गए थे कुछ नेता
कुछ ऐसे भी नेता थे, जो टिकट की चाह में महागठबंधन खेमे में गए थे लेकिन उन्हें निराशा हाथ लगी थी. सलीम परवेज और दसई चौधरी भी महागठबंधन में आए थे. लेकिन टिकट नहीं मिलने के बाद महागठबंधन छोड़ दिया.

भाई बिरेंद्र, मुख्य प्रवक्ता, राजद
भाई बिरेंद्र, मुख्य प्रवक्ता, राजद

'नेताओं को अब जदयू में भविष्य नहीं दिखाई दे रहा है. लिहाजा बड़ी संख्या में नेता राजद में शामिल होना चाहते हैं. विधानसभा चुनाव से पहले ही सिलसिला शुरू हो चुका है. आगे भी बड़ी संख्या में नेता एनडीए खेमे से महागठबंधन में शामिल होने के लिए कतार में हैं.' -भाई बिरेंद्र, मुख्य प्रवक्ता, राजद

नवल किशोर यादव, भाजपा नेता
नवल किशोर यादव, भाजपा नेता

'हर आदमी फैसले लेने के लिए स्वतंत्र है. कोई भी किसी दल में जा सकता है. नेताओं के दल छोड़ने से गठबंधन या दल के सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता.' -नवल किशोर यादव, भाजपा नेता

डॉ. संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक
डॉ. संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक

'राजनेता किसी नीति यह सिद्धांत के लिए दल या गठबंधन नहीं बदलते हैं. कुर्सी की चाह में नेता सुविधा की राजनीति करते हैं और जहां उन्हें संभावना दिखाई देती है, वहां पाला बदल कर चले जाते हैं. विपक्ष भी ऐसे मौकों को भुनाने में पीछे नहीं रहती.' -डॉ. संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक

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