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National Girl Child Day : नारी शक्ति के रूप में याद किया जाता है आज का दिन, जानिए कब से हुई शुरुआत

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Published : Jan 24, 2022, 7:32 AM IST

Updated : Jan 24, 2022, 11:50 AM IST

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National Girl Child Day

राष्ट्रीय बालिका दिवस या नेशनल गर्ल चाइल्ड डे (National Girl Child Day 2022 ) हर साल 24 जनवरी को मनाया जाता है. पहली बार इसे मनाने की शुरुआत 2008 में हुई थी. महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाने का उद्देश्य बालिकाओं के प्रति समाज में फैले भेदभाव को खत्म करना और उनकी शिक्षा के प्रति लोगों को जागरूक करना है.

पटना: वैसे तो बेटियों के लिए हर दिन खास होता है लेकिन बेटियों को महत्व देने के लिए एक खास दिन बनाया गया है. जिसे हमलोग राष्ट्रीय बालिका दिवस (National Girl Child Day) के रूप में मनाते हैं. यह दिवस प्रत्येक वर्ष 24 जनवरी के दिन मनाया जाता है. इस दिन परिवार के लोग अपने बेटियों के साथ अपना समय बिताते हैं. ये सत्य है, बेटियां तो भाग्य वालों को ही मिलती हैं. प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक जब जब बेटियों को मौका मिला है, उन्होंने अपनी वीरता और कौशल की अनूठी मिसाल कायम की है.

कहने को हमारा देश आज स्मार्ट इंडिया की श्रेणी में अग्रसर है, लेकिन आज भी कई जगहों पर बेटी की महत्व नहीं बढ़ पाई है. बेटी के जन्म पर आज भी लोग बधाई देने से पहले कई बार सोचते हैं. इसके साथ ही समाज की बेटियों के अधिकारों व सम्मान की जंग आज भी बरकरार है. समाज में लड़कियों की यही परिस्थितियों को देखते हुए, राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाने का निर्णय लिया गया. इसे मनाने की शुरुआत 2008 में की गयी थी. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को 24 जनवरी के दिन नारी शक्ति के रूप में याद किया जाता है. इस दिन इंदिरा गांधी ने पहली बार प्रधानमंत्री के रूप में कर्यभाल संभाला था, इसलिए इस दिन को राष्ट्रीय बालिका दिवस के रूप में मनाया जाता है.

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इस वर्ष भारत में 14वां राष्ट्रीय बालिका दिवस 2022 मनाया जा रहा है. राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाने का उद्देश्य बालिकाओं को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करना है. राष्ट्रीय बालिका दिवस का महत्व बहुत अधिक है, यह बालिकाओं को शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के प्रति जागरूक करता है. हर साल राष्ट्रीय बालिका दिवस की थीम अलग होती है. बालिका दिवस 2021 की थीम 'डिजिटल जनरेशन, अवर जेनरेशन' थी.

वर्ष 2020 में बालिका दिवस की थीम 'मेरी आवाज, हमारा साझा भविष्य' थी. यह दिवस समाज में बालिकाओं की उन्नति का मार्ग प्रशस्त करने के लिए मनाया जाता है. इस दिन समाज में मौजूद बालिकाओं के प्रति विभिन्न प्रकार के क्षेत्रों में मौजूद भेदभावों को रोकने, बालिकाओं की देश में आवश्यकता के प्रति जागरूकता बढ़ाने व बालिकाओं के प्रति होने वाले शोषण को रोकने के उद्देश्य से कार्य किया जाता है.

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तमाम जागरुकता कार्यक्रम और पहल जैसे 'सेव गर्ल चाइल्ड, एजुकेट गर्ल चाइल्ड', बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ आदि के बाद भी देश में अभी तक लिंगानुपात में समानता नहीं है. इसके लिए अभी भी कई प्रयासों की आवश्यकता है. राष्ट्रीय बालिका दिवस के खास दिन पर लोगों की सोच में परिवर्तन लाने और इसे सेलिब्रेट करने के लिए शुभकामनाएं दी जाती है. भारत में राष्ट्रीय बालिका दिवस 24 जनवरी और 11 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस के रूप में मनाया जाता है.

भारत के राष्ट्रीय परिवार और स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (NFHS-5) की रिपोर्ट के अनुसार भारत में पहली बार लिंगानुपात 1,020:1,000 के साथ महिलाओं की संख्या पुरुषों से आगे निकल गई है. भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रवक्ता के अनुसार यह भारत में हो रहे बड़े जनसांख्यिकीय बदलाव की ओर इशारा करता है. देश की आबादी में पहली बार पुरुषों की आबादी की तुलना में महिलाओं की आबादी ज्यादा (Sex Ratio in India) हो गई है. नोबेल प्राइज विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने 1990 में एक लेख में भारत में महिलाओं की कम आबादी के लिए 'मिसिंग वूमन' (Missing Women) शब्द का इस्तेमाल किया किया था। लेकिन धीरे-धीरे भारत में चीजें बदली हैं और अब देश में महिलाओं की आबादी पुरुषों से ज्यादा हो गई है.

1990 के दौरान भारत में प्रति हजार पुरुषों की तुलना में महिलाओं का अनुपात 927 था. 2005-06 में यह आंकड़ा 1000-1000 तक आ गया। हालांकि, 2015-16 में यह घटकर प्रति हजार पुरुषों की तुलना में 991 पहुंच गया था लेकिन इस बार ये आंकड़ा 1000-1,020 तक पहुंच गया है. सर्वे में एक और बड़ी बात निकलकर सामने आई है. प्रजनन दर (Total Fertility Rate) या एक महिला पर बच्चों की संख्या में कमी दर्ज की गई है. सर्वे के अनुसार औसतन एक महिला के अब केवल 2 बच्चे हैं, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर के मानकों से भी कम है. माना जा रहा है कि भारत आबादी के मामले में पीक पर पहुंच चुका है. हालांकि, इसकी पुष्टि को नई जनगणना के बाद ही हो पाएगी.

सर्वे में कहा गया है कि बच्चों के जन्म का लिंग अनुपात (Gender Ratio) अभी भी 929 है. यानी अभी भी लोगों के बीच लड़के की चाहत ज्यादा दिख रही है. प्रति हजार नवजातों के जन्म में लड़कियों की संख्या 929 ही है। हालांकि, सख्ती के बाद लिंग का पता करने की कोशिशों में कमी आई है और भ्रूण हत्या में कमी देखी जा रही है। वहीं, महिलाएं पुरुषों की तुलना में ज्यादा जी रही हैं.

बालिकाओं के हित में अधिकार

  • बालिकाओं का बाल विवाह न किया जाए.
  • बालिकाओं के हित में राज्य सरकार द्वारा नई-नई योजनाओं की शुरुआत करना.
  • लिंग भेदभाव के लिए अल्ट्रासाउंड परीक्षण का उपयोग न किया जाए, इसके लिए भी कानून को मजबूत करना.
  • बालकों की तरह बालिकाओं को भी समानता प्रदान करना.

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Last Updated :Jan 24, 2022, 11:50 AM IST
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