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देश की राजनीति में 'वक्त की नजाकत' को समझ रहे नीतीश? समझें क्यों विपक्ष लगा रहा दाव पेंच

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Published : Mar 1, 2022, 8:05 PM IST

Nitish Kumar presidential candidate
Nitish Kumar presidential candidate

बिहार में नीतीश कुमार को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाने को लेकर सियासी ड्रामा चल रहा है. जब से नीतीश ने चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर से अपनी मुलाकात का खुलासा किया है, तब से इसने सत्ता के गलियारे में उथल-पुथल मचा दी है. इस मुलाकात के मायने और भविष्य में बिहार की राजनीति में होने वाले बदलाव को जानने के लिए पढ़ें ब्यूरो चीफ अमित भेलारी की ये रिपोर्ट..

पटना: सीएम नीतीश को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार (Politics over presidential candidacy) बनाए जाने की अटकलें शहर में चर्चा का विषय बन गई हैं. राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि नीतीश को बिहार की राजनीति के चाणक्य के रूप में भी जाना जाता है और जुलाई 2022 में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव (Nitish Kumar presidential candidate) से पहले मूड को मापने के लिए सब कुछ एक पूर्व नियोजित रणनीति के तहत हो रहा है. बिहार में नीतीश की राजनीति आने वाले दिनों में ज्यादा दिनों तक चलने वाली नहीं है क्योंकि कई मुद्दों पर उनका भगवा पार्टी से पहले से ही मतभेद चल रहा है.

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नीतीश कुमार की रणनीति: राजनीतिक जानकारों का मानना है कि इससे पहले कि बीजेपी उन्हें बाहर निकलने के लिए कहे, नीतीश खुद उनके चंगुल से बाहर निकलकर और अपमान से बचना चाहते हैं. ये सारी अफवाहें और नीतीश को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाने की अटकलें उसी रणनीति का हिस्सा हैं. शुरू से ही यह समझना होगा कि आखिर नीतीश कुमार भाजपा से इतना असहज क्यों हैं? बीजेपी का प्रदेश नेतृत्व गाहे बगाहे नीतीश के तथाकथित सुशासन पर सवाल उठाते रहते हैं, जिस पर उन्हें गर्व है.

जदयू और बीजेपी का विवाद: बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने राज्य में कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर नाराजगी जाहिर करने के लिए दरअसल सोशल मीडिया का सहारा लिया था. भाजपा मंत्री जनक राम ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि बिहार में नौकरशाही का बोलबाला है. भाजपा कोटे के एक अन्य कैबिनेट मंत्री सम्राट चौधरी ने कहा था कि गठबंधन में सरकार चलाना संभव नहीं है. सत्ता में रहते हुए भी भगवा नेता उन मुद्दों पर नीतीश की नाक में दम करते रहते हैं जो नीतीश को कभी पसंद नहीं आते. धीरे-धीरे नीतीश का बीजेपी के प्रति गुस्सा चरम पर होता जा रहा है. हालांकि, नीतीश के पास फिलहाल ज्यादा विकल्प नहीं हैं, इसलिए वेट एंड वाच की नीति के साथ सब कुछ आगे बढ़ रहा है.

नीतीश ने किया अटकलों का खंडन: यही कारण है कि नीतीश ने स्पष्ट रूप से इस अटकलों का खंडन करते हुए दावा किया कि उनकी दिलचस्पी नहीं है राष्ट्रपति बनने में. नीतीश ने यहां तक कहा कि उनकी ऐसी कोई इच्छा नहीं और और उन्होंने अफवाहों पर आश्चर्य व्यक्त किया. नीतीश ने यह भी कहा था कि राष्ट्रपति बनने की उनकी कोई आकांक्षा नहीं है.

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क्या कहना है लेखक और वरिष्ठ पत्रकार का: इंडियन एक्सप्रेस के सहायक संपादक संतोष सिंह ने कहा, 'पहली बात यह सब प्रशांत किशोर (Poll Strategist Prashant Kishor) से मिलने के साथ शुरू हुआ और हमेशा याद रखें कि जब दो राजनेता मिलते हैं तो शिष्टाचार भेंट नाम की कोई चीज नहीं होती है. इसके पीछे हमेशा एक राजनीतिक मकसद होता है. आप इस बैठक को राजनीतिक के रूप में ले सकते हैं जिसमें संभावना है नीतीश (Nitish Kumar and Prashant Kishor meeting) के राष्ट्रपति बनने की. मेरे हिसाब से पूरे प्रकरण को तीन भागों में समेट सकते हैं.'

'पहली बीजेपी है. अगर बीजेपी को पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में संख्या बल नहीं मिलता है, तो नीतीश कुमार सर्वसम्मति से राष्ट्रपति उम्मीदवार के रूप में हो सकते हैं क्योंकि उनके पास एन. चंद्रबाबू नायडू, एमके स्टालिन, नवीन पटनायक और ममता बनर्जी जैसे विपक्षी दलों के साथ अच्छा रेपो है. यह ऐसा ही प्रयोग होगा जो अटल बिहारी वाजपेयी के शासन काल में एपीजे कलाम को राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में चुनने के दौरान हुआ था. उस समय कांग्रेस और मुलायम सिंह यादव को उनके नाम के लिए हां करना पड़ा था.'

उन्होंने आगे कहा, 'दूसरा- बीजेपी को बार्गेन में क्या मिलेगा? बिहार पर पूर्ण नियंत्रण और राज्य में भाजपा का अपना मुख्यमंत्री होगा. बिहार के लिए यह बहुत गर्व की बात होगी कि राजेंद्र बाबू के बाद नीतीश राष्ट्रपति बनेंगे. हालांकि क्या जदयू इस शर्त को मानेगी? बड़ा सवाल उठता है कि जेडीयू में नीतीश के बाद कौन है? ऐसे में जदयू 2025 के चुनाव के पहले बिखर जायेगा. तीसरा- नीतीश विपक्ष का उम्मीदवार नहीं बनना चाहेंगे क्योंकि राजद वहां है जिसके नेता भ्रष्टाचार के मामलों में दोषी हैं. विपक्षी खेमे में जाने के बाद नीतीश को भरोसे की कमी का सामना करना पड़ेगा. नीतीश विपक्ष के समर्थन से एनडीए का सर्वसम्मति से उम्मीदवार बनना चाहेंगे. विपक्ष को इसका फायदा ये मिलेगा कि लंबे समय बाद गैर-बीजेपी और गैर-संघी राष्ट्रपति बनेंगे. यही विपक्ष की जीत होगी।'

जदयू ने अपनाई ये रणनीति: बीजेपी ने अब तक कभी भी ऐसी राजनीति नहीं की है कि लोग उसके बारे में पहले से प्रिडिक्ट कर सके और एक आम आदमी उसके इर्दगिर्द भी सोच सके. दूसरी ओर जदयू नेता दावे को खारिज नहीं कर रहे हैं और परोक्ष रूप से धीमी आवाज में सकारात्मक प्रतिक्रिया दे रहे हैं कि राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार गैर-विवादास्पद हो जिनका ट्रैक रिकॉर्ड अच्छा हो. जदयू अफवाह फैलाकर बीजेपी और अन्य राजनीतिक दलों का मूड नाप रही है. यही कारण है कि नीतीश इस मुद्दे पर ख़ामोश नहीं हैं और अच्छे मूड में मीडिया से बात कर रहे हैं. इस मुद्दे पर नीतीश दिलचस्पी दिखा रहे हैं. राजनीतिक थर्मामीटर से स्थिति को मापने की जदयू की यह बहुत पुरानी रणनीति रही है.

एक अन्य वरिष्ठ पत्रकार और द हिंदू के सहायक संपादक अमरनाथ तिवारी ने कहा कि नीतीश ने गठबंधन सहयोगियों को दबाव में लाने के लिए यह रणनीति अपनाई है. 'नंबर एक, राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार माइनस बीजेपी और माइनस कांग्रेस नहीं हो सकता क्योंकि नंबर पक्ष में नहीं जाएंगे. बीजेपी बिहार में नीतीश की सहयोगी है और वे जदयू से आमने-सामने की लड़ाई में है'

उन्होंने कहा कि- 'बीजेपी का एक छोटा नेता भी नीतीश पर हमला करता है. एनडीए के पहले चरण में नीतीश का जिस तरह का नियंत्रण था वह दूसरे चरण में नहीं है. भाजपा को दबाव में लाने के लिए, नीतीश को राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में पेश करने वाली यह खबर नीतीश के खेमे द्वारा ही राजनीतिक चर्चा पैदा करने के लिए फैलाई गई है. मुझे नहीं लगता कि इस चर्चा से नीतीश को कोई राजनीतिक लाभ मिलेगा. प्रशांत किशोर एक राजनीतिक रणनीतिकार होने के साथ-साथ व्यवसायी भी हैं. प्रशांत किशोर इन सभी कामों को करने के अलावा राजनीतिक जगह भी तलाश रहे हैं. प्रशांत किशोर राज्यसभा में जाना चाहते हैं और वे उस अवसर को हथियाने की संभावना तलाश रहे हैं. वह सिर्फ राजनीतिक दायरे में अपनी प्रासंगिकता का अहसास करा रहे हैं ताकि लोग उन्हें याद रखें क्योंकि जनता चीजों को बहुत जल्दी भूल जाती है. मुझे संदेह है कि नीतीश को इस अफवाह से कोई फायदा मिलेगा.'

यह अनुमान लगाया जा रहा है कि तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर जुलाई में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव से पहले सभी विपक्षी दलों को एकजुट करने का प्रयास कर रहे हैं. इसे 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए जमीन तैयार करने की दिशा में पहला कदम माना जा रहा है. तेलंगाना के मुख्यमंत्री ने हाल ही में कहा था कि मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार को उसकी "जनविरोधी" नीतियों के लिए हटा दिया जाना चाहिए और वह भाजपा विरोधी दलों को एकजुट करने में एक प्रमुख भूमिका निभाएगा.

एक अन्य राजनीतिक विशेषज्ञ डॉ संजय कुमार ने जोर देकर कहा कि एक अनुभवी राजनेता होने के नाते नीतीश अपनी योजना का खुलासा तब तक नहीं करेंगे जब तक कि वह खुद सुनिश्चित नहीं हो जायें. संजय ने कहा, 'विपक्ष चाहता है कि वह राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बने और यही कारण है कि सभी विपक्षी दल समन्वय की भूमिका में हैं. वे भाजपा को यह भी संदेश देना चाहते हैं कि राष्ट्रपति के बारे में फैसला करने वाले वे अकेले नहीं हैं. पूरे प्रकरण में प्रशांत किशोर मध्यस्थ हैं जिन्हें सभी विपक्षी दलों के साथ बातचीत करने की जिम्मेदारी दी गई है.'

उन्होंने कहा कि- नीतीश एक परिपक्व और अनुभवी राजनेता होने के नाते राष्ट्रपति चुनाव जीतने के लिए आवश्यक संख्या होने के मामले में पूरी गारंटी चाहते हैं. अगर नीतीश को पता चल गया कि उनके पास सभी नंबर हैं तो उन्हें विपक्ष के लिए राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनने में कोई आपत्ति नहीं होगी और अगर जादुई आंकड़े तक नहीं पहुंचने की थोड़ी सी भी संभावना होगी तो नीतीश कोई मौका नहीं लेंगे और एनडीए के साथ रहेंगे'

संजय ने आगे कहा, 'नीतीश इन हथकंडों का इस्तेमाल बीजेपी पर दबाव बनाने के लिए भी कर सकते हैं और उन्हें यह संदेश दे सकते हैं कि अगर उन्हें उचित सम्मान नहीं मिलेगा तो उनके पास विपक्ष में शामिल होने का खुला प्रस्ताव है. जब तक नीतीश को कन्फर्मेशन नहीं मिलेगा तब तक वो चुप रहेंगे लेकिन एक बात तय है कि 10 मार्च के बाद बिहार की सियासत बदल जाएगी”. यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में चीजें कैसे सामने आती हैं क्योंकि राष्ट्रपति चुनाव चार महीने बाद होने वाले हैं.'

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