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रामविलास की सियासी विरासत पर कब्जे को लेकर चाचा-भतीजा में मची होड़

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Published : Jul 7, 2022, 10:27 AM IST

देश में राजनीतिक समझ रामविलास पासवान में कूट-कूट कर भरी हुई थी. उनकी इसी समझ से लोग उन्हें 'सियासी मौसम वैज्ञानिक' भी कहते थे. लेकिन, उनके निधन के बाद उनकी लोक जनशक्ति पार्टी के 'वोट-बैंक' को हथियाने की कोशिशें शुरु हो गई,. इसी चक्कर में पार्टी दो फाड़ हो गई. एक हिस्सा भाई और केंद्रीय पशुपति पारस ले गए, बचा खुचा हिस्सा चिराग के हाथ लगा. अब पार्टी रामविलास के समर्थकों को साधने में जुटी है. पढ़ें पूरी खबर-

रामविलास की सियासी विरासत
रामविलास की सियासी विरासत

पटना: पूर्व केंद्रीय मंत्री और लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के संस्थापक रहे रामविलास पासवान (Political legacy of Paswan )के निधन के करीब दो साल गुजर जाने के बाद भी उनकी सियासी विरासत पर कब्जा जमाने (Political legacy of Ram Vilas) को लेकर उनके भाई और बेटे में होड़ मची है. जमुई के सांसद और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान (MP Chirag Paswan) और उनके चाचा, केंद्रीय मंत्री और राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (रालोजपा) के प्रमुख पशुपति कुमार पारस (Union Minister Pashupati Paras) भले ही अलग-अलग राजनीति कर रहे हों, लेकिन दोनों पूर्व केंद्रीय मंत्री और दलित नेता पासवान की विरासत का खुद को दावेदार बाता रहे हैं. यही कारण है कि पासवान की जयंती भी हाजीपुर और पटना में अलग-अलग मनाई गई.

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चिराग ने मनाई पिता रामविलास की जयंती: रामविलास की जयंती के मौके पर चिराग जहां पशुपति पारस के संसदीय क्षेत्र हाजीपुर के चौहरमल चौक पर पासवान की आदमकद प्रतिमा का अनावरण किया, वहीं पारस पार्टी के पटना कार्यालय में एक समारोह आयोजित कर अपने भाई का जनमदिन मनाया. चिराग का पूरा परिवार हाजीपुर में पासवान की प्रतिमा का अनावरण कार्यक्रम में शामिल रहा. इस दौरान चिराग भावुक भी हो गए तब परिवार के लोगों ने उन्हें संभाला. चिराग ने आने वाले महीनों में सभी जिला मुख्यालयों पर अपने पिता की और प्रतिमा स्थापित करने की योजना बनाई है.

वोटबैंक की लड़ाई: बता दें कि हाजीपुर रामविलास की कर्मस्थली रही है. पासवान वहां से 1977 में रिकार्ड मतों से जीतकर लोकसभा पहुंचे थे. हाजीपुर के लोग भी पासवान के साथ निकटता से जुड़े थे. पिछले लोकसभा चुनाव में पारस हाजीपुर से जीतकर सांसद बने. रामविलास पासवान के निधन के बाद लोजपा दो भागों में बंट गई. एक गुट का नेतृत्व जहां चिराग कर रहे हैं वहीं एक गुट का नेतृत्व पारस कर रहे हैं. बिहार में पासवान समुदाय चार प्रतिशत से कुछ अधिक वोट हैं. चिराग और पारस दोनों जानते हैं कि राज्य में एक दलित नेता के लिए जगह तैयार है. ऐसे में दोनों इस वोटबैंक को हथियाने को लेकर जुटे हैं.

पारस जहां खुलकर एनडीए के साथ हैं वहीं चिराग दोनों गठबंधनों से समान दूरी रखे हुए है. चिराग हालांकि बिहार सरकार पर निशाना साधते रहे हैं. ऐसे में भी वे कभी भी भाजपा के खिलाफ मुखर होकर बयान नहीं दिया है. चिराग तो यहां तक कहते हैं कि उनके लिए बिहार का विकास प्राथमिकता है. उन्होंने कहा कि अपने पिताजी रामविलास जी के सपनों को पूरा करना है.

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