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बिहार में SC/ST एक्ट के मामलों में ना के बराबर हो रही सजा, जानिए इसके पीछे का कारण

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Published : Aug 28, 2021, 2:30 PM IST

बिहार में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत दर्ज होने वाले मामलों में सजा (Punishment Under SC-ST Act) नहीं के बराबर हो रही है. इसकी बड़ी वजह पीड़ित और अभियुक्त पक्ष के बीच समझौता होना या बयान से पटलना है. पढ़िए पूरी खबर

SC ST Act In Bihar
SC ST Act In Bihar

पटना: बिहार में एससी/एसटी एक्ट (SC ST Act In Bihar) के तहत दर्ज होने वाले मामलों (SC-ST Act Case) में लगातार वृद्धि हो रही है. राज्य में पिछले 10 वर्षों के दौरान एससी/एसटी एक्ट के तहत 1 लाख 04 हजार 430 मामले दर्ज किए गए हैं. जिसमें से साल 2011 से लेकर जून 2021 तक राज्य के विभिन्न थानों में एससी/एसटी एक्ट के तहत दर्ज मामलों में 11.28% मामले ऐसे थे जो कि पुलिस की जांच के बाद ही बंद करने पड़े थे.

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दरअसल पुलिस मुख्यालय की कमजोर वर्ग द्वारा मिल रही जानकारी के अनुसार पुलिस जांच के बाद कई मामलों को बंद कर दिया जाता है. वहीं कई तरह के ऐसे भी मामले होते हैं जैसे कई बार होता है कि जानबूझकर फंसाने के लिए एससी एसटी एक्ट (SC ST Act Misuse Cases) लगा दिया जाता है. तो वहीं कई बार साक्ष्य के अभाव में केस को बंद कर दिया जाता है जबकि कई बार जमीन विवाद विवाद मामलों को एससी एसटी एक्ट के तहत दर्ज कराने पर जांच के बाद बंद कर दिया जाता है.

बीते 10 सालों में राज्य में पुलिस जांच के बाद 11750 केस बंद कर दिए गए हैं. दरअसल एससी एसटी के खिलाफ किसी भी दूसरी जाति द्वारा अपराध किया जाता है तो अनुसूचित जाति एवं जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत मामले दर्ज होते हैं. अपराध की श्रेणी के हिसाब से इसमें करीब 11 धाराएं हैं.

एससी एसटी एक समुदाय के व्यक्ति के साथ सार्वजनिक स्थल पर जाति सूचक शब्द का प्रयोग कर नीचा दिखाना, अपशिष्ट पदार्थ बल पूर्व खिलाना, निवास स्थान से बेदखल करना, बेगारी कराना, भूभाग को खलल करना, सावर्जनिक समारोह में शिरकत करने से रोकना, लैंगिक शोषण इत्यादि मामले जुड़े हुए हैं. नियमानुसार मामला दर्ज होने के 60 दिनों के अंदर पुलिस को अनुसंधान पूरा करते हुए चार्जशीट दायर करना होता है.

अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत दर्ज होने वाले मामलों में सजा नहीं के बराबर हो रही है. इसकी बड़ी वजह पीड़ित और अभियुक्त पक्ष के बीच समझौता होना या बयान से पलट ना माना जा रहा है. एससी एसटी एक्ट से दो तिहाई से ज्यादा कांडों का यही हाल है.

ट्रायल पूरा होने से पहले ही अधिकतर मामले में समझौता हो जाते हैं या फिर केस करने वाला शख्स ही पलट जाता है. पुलिस मुख्यालय के आंकड़े के मुताबिक वर्ष 2019 में एससी एसटी एक्ट से जुड़े 2187 मामलों का ट्रायल पूरा हुआ. इनमें 2046 मामलों में एक में भी सजा नहीं हुई. 1012 मामलों में पीड़ित और अभियुक्त पक्ष के बीच सुलहनामा हो गया जिस वजह से मामले को खत्म कर दिया गया.

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वहीं 814 मामलों में केस करने वाला शख्स अपने बयान से पलट गया. 220 कांडों में साक्ष्य नहीं होने के चलते अभियुक्त को लाभ मिला और आरोप से बरी कर दिया गया. साल 2019 में 2187 मामलों में सिर्फ 141 अभियुक्तों को सजा सुनाई गई है.

पुलिस मुख्यालय द्वारा मिल रही जानकारी के अनुसार एससी एसटी एक्ट के तहत अब तक दर्ज मामलों में कुल 49865 केस में चर्चित फाइल की गई है. इन मामलों में अभी तक किसी भी आरोपी की गिरफ्तारी नहीं हुई है. पुलिस मुख्यालय के आंकड़े के मुताबिक साल 2021 के जून में कुल 508 मामले दर्ज किए गए थे. इनमें से 13 मामले हत्या, 130 मामले गंभीर चोट, सात मामले बलात्कार और विविध में 455 मामले दर्ज हुए थे. जिसमें से पुलिस के द्वारा 315 मामलों में चार्जशीट फाइल की गई है. 4 जून के अंत तक 3765 मामले लंबित थे.

दरअसल 20 मार्च 2018 को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 (Scheduled Caste and Scheduled Tribe (Prevention of Atrocities) Act, 1989) के हो रहे दुरुपयोग के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने इस अधिनियम के तहत मिलने वाले शिकायत पर एफआईआर, गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी. जिसके बाद संसद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलटने के लिए कानून में संशोधन किया गया था. इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी.

अब पहले के मुताबिक ही एफआईआर दर्ज करने से पहले वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों या नियुक्त पदाधिकारियों से अनुमति जरूरी नहीं होगा. कुल मिलाकर बात करें तो पिछले 10 सालों में 104430 मामले मामले दर्ज किए गए हैं जिनमें से 49865 मामले चार्जशीट हुए हैं और इतने मामले में से 11785 केस पुलिस जांचोपरांत बंद हुए हैं.

बिहार में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति से जुड़े करीब 6000 मामले प्रतिवर्ष दर्ज होते हैं. राज्य में सभी 40 पुलिस जिलों में अलग से एससी एसटी थाना पदस्थापित और यहां के प्रभारी भी अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के पुलिस अधिकारी ही होते हैं.

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