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बोले सुनील कुमार पिंटू- गरीब लोगों को समझ नहीं आती अंग्रेजी, लोकल लैंग्वेज में हो अदालत की कार्यवाही

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Published : Dec 6, 2021, 8:00 PM IST

बिहार से सीतामढ़ी सांसद सुनील कुमार पिंटू ने सोमवार को संसद में न्यायालय की कार्यवाही हिंदी भाषा (Hindi Language in Civil Court) में होने की मांग उठाई. जहां उन्होंने कहा कि इससे गरीब लोगों को न्याय की भाषा समझने में आसानी हो सकेगी.

लोकसभा में बोले सुनील कुमार पिंटूं
लोकसभा में सुनील कुमार पिंटूं

नई दिल्ली/पटनाः संसद के शीतकालीन सत्र (winter session of Parliament) का आज छठा दिन है. जहां लोकसभा में शुन्य काल के दौरान सोमवार को बिहार के सीतामढ़ी सांसद सुनील कुमार पिंटू (MP Sunil Kumar Pintu) ने जनहित से जुड़े मुद्दे पर सवाल उठाए. उनका जवाब देते हुए पदेन पीठासीन अधिकारी राजेंद्र अग्रवाल ने कहा की उनकी मांग पर विचार किया जाएगा.

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सीतीमढ़ी से जेडीयू सांसद सुनील कुमार पिंटू ने लोकसभा में न्याय के मंदिर यानी स्थानीय अदालत और उच्च न्यायालय में लोकल भाषा में वकीलों के द्वारा बहस कराए जाने की मांग उठाई. उन्होंने ये भी कहा कि किसी भी मामले में जो फैसले कोर्ट में आते हैं, उसे आम जनता समझ नहीं पाती है, गरीब लोगों को न्याय की भाषा समझने में आसानी हो सके. इसलिए अदालत की कार्यवाही स्थानीय भाषा में होनी चाहिए. इससे आम लोगों को फायदा होगा.

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जेडीयू सांसद ने ये भी कहा कि पीएम मोदी ने अंग्रेजों के जमाने के कई बेकार और धूमिल पड़ जुके कानूनों को निरस्त कर दिया है. इसलिए मैं सदन से मांग करता हूं कि स्थानीय अदालतों में अग्रेजी में होने वाली बहस और फैसले के नियमों को बदला जाए और लोकल लैंग्वेज को अहमियत दी जाए.

हालांकि इस बीच पीठासीन अधिकारी राजेंद्र अग्रवाल ने कई बार सांसद को बीच में टोकते हुए समय का ध्यान रखने की बात कही, लेकिन सांसद नहीं माने और जोरदार तरीके से अपनी बात को सदन में रखा. बता दें कि हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं के पक्षधर बहुत समय से यह मांग उठाते आ रहे हैं कि अदालतों के कामकाज की भाषा ऐसी हो जिसे आम आदमी भी समझ सके और वह हर बात के लिए वकीलों पर निर्भर न रहे.

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वहीं, 2015 में एक जनहित याचिका पर विचार करते हुए भारत के प्रधान न्यायाधीश जस्टिस टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने स्पष्ट कर दिया था कि सुप्रीम कोर्ट की भाषा अंग्रेजी ही है. इसकी जगह हिन्दी को लाने के लिए वह केंद्र सरकार या संसद को कानून बनाने के लिए नहीं कह सकता, क्योंकि ऐसा करना विधायिका और कार्यपालिका के अधिकारक्षेत्र में दखल देना होगा. फिर भी जनहित मुद्दे के तौर पर ये सवाल देश की संसद में आज भी उठाए जाते हैं.

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